Friday, 1 July 2016

Ghalib - Arz keeje jauhar e andeshaa kii garamee kahaan / अर्ज़ कीजे जौहर ए अंदेशा की गरमी कहाँ - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब -11.



अर्ज़ कीजे जौहर अंदेशा की गरमी कहाँ
कुछ ख़याल आया था वहशत का, कि सहरा जल गया !!

जौहर - गुण, दक्षता, होशियारी
अंदेशा संदेह, भय , आशंका
वहशत त्रास, डर, पागलपन

Arz keeje jauhar e andeshaa kee garamee kahaan
Kuchh khayaal aayaa thaa wahashat kaa, ki saharaa jal gayaa !!
-Ghalib.

अपने सोच और कल्पना की सीमा का क्या परिचय दूं, बस ऐसे ही समझ लीजिये कि मेरी कल्पना में उन्माद और पागलपन का विचार उभरा ही था कि सहारा, बियाबान, में आग लग गयी.

साहित्य में विशेषकर कविता या पद्य कल्पना के असीम लोक की यात्रा कराती है. ग़ालिब अपनी इस मेधा को इस तरह व्यक्त करते हैं कि अभी तो उनकी चिंतन प्रक्रिया और कल्पना ने पंख भी नहीं पसारे हैं कि सहरा , रेगिस्तान में आग लग गयी. ग़ालिब बेहद स्वाभिमानी थे. उनके स्वाभिमान ने उन्हें अक्सर विपत्तियों से भी साक्षात्कार कराया है. पर वह अपने स्वाभिमान को छोड़ नहीं सके इस शेर से उन्होंने अपने चिंतन तत्व की क्षमता का परिचय ही दिया है. अतिशय्क्ति का यह एक अच्छा उदाहरण है. यह कहा भी जाता है कि जहां पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि !!
-vss
चित्र सूर्य के कोरोना का है.



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