आतंकवाद का उद्देश्य और थ्रिल केवल कम पढ़े लिखे लोगों और बेरोज़गार लड़कों को ही नहीं आकर्षित करता रहा है , बल्कि अब थोड़ी स्थिति बदल गयी है । बांगला देश के ताज़ा आतंकी वारदात के मामले में जो लड़के शामिल थे वे सभी संपन्न और पढ़े लिखे आधुनिक सोच वाले परिवार के लड़के थे । कोई गरीब , कम पढ़े और बेरोजगार लड़को का समूह यह नहीं है । बेरोज़गार और गरीब तबके के लड़के धन की लालच में आतंकी समूहों का शिकार बनते ही रहते हैं । अभी कश्मीर के कुछ पत्थरबाजों के बारे में जानकारी मिली है कि उन्हें हुर्रियत नेता गिलानी से 500 500 रूपये पत्थर फेंकने के लिए दिए गए थे । लेकिन संपन्न परिवार और पढ़े लिखे परिवारों के लड़कों का आतंक की और आकर्षित होना एक खतरनाक संकेत है ।
द नडॉन पाकिस्तान का एक प्रतिष्ठित अखबार है । इस अखबार में दो छोटे छोटे लेख प्रकाशित हुए हैं । लेख में इसी तथ्य की और ध्यान आकर्षित किया गया है और इस संकेत की समीक्षा भी की गयी है । यह लेख डॉन के ही संपादकीय मंडल द्वारा लिखा गया है । अक्सर यह माना जाता रहा है कि अपराध का का कारण विपन्नता और आवश्यकता होती है । मैं आर्थिक अपराधों की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं उन अपराधों की बात कर रहा हूँ जिन्हें समाज सच में अपराध मानता है । पर यह एक नया ट्रेंड चल निकला है । संपन्न घरों के लड़के अपराधोन्मुख हो रहे हैं ।
इस्लामी आतंकवाद का एक सीधा सा उद्देश्य है । वह है सऊदी मार्का इस्लाम को स्थापित करना । वहाबी इस्लाम जो प्रतिगामी विचारों और मक्षिका स्थाने मक्षिका के मनोभाव से इस्लाम को देखता और मानता है को ही पूरी दुनिया में। फैलाना है । यही धर्म सर्वश्रेष्ठ है का भाव ही इस्लाम को दुनिया भर में एक आतंक फैलाने वाले धर्म के रूप में प्रस्तुत कर रहा है और जिसे इस्लामोफोबिया कहते हैं वह पनप रहा है । इस्लाम में। सुधारवादी आंदोलन उपेक्षित भी रहे हैं इस लिए इस्लाम का समय के साथ साथ जो उदारवादी चेहरा सामने आना चाहिए, वह सामने नहीं आ पा रहा है । लेख में कहा गया है कि आतंक की ज़द में संपन्न और पढ़े लिखे लोगों की जमात का बाहुल्य नहीं है और वह अभी इक्का दुक्का ही है पर यह भी चिंताजनक संकेत है ।
- vss.
Bored young Killers
A new phenomenon has me rather troubled: bored youngsters embracing extremist ideologies who end up perpetrating heinous crimes. The path to radicalisation of these youngsters is not understood, hence the puzzlement and astonishment when we hear of such incidents.
A recent example is that of the Bangladesh four, who came from affluent backgrounds and had high levels of education. Earlier, we have the example of Saad Aziz and Faisal Shahzad. And even earlier there was Omar Sheikh. These are just the Pakistanis. What we don’t know is how many youngsters from other countries are also following similar paths.
In the entire galaxy of militant fighters across the world, this breed of youngsters might not be in a majority, but the increasing numbers who are taking up arms is an alarming trend. Those who join militias as basic fighters might well come from deprived backgrounds — who are not fighting in the name of any ideology. And those who are radicalised in religious seminaries similarly tend to come from backgrounds where the full spectrum of opportunities afforded by the modern world is not available to them.
But what’s going on with these affluent few? If this was a simple case of thrill-seekers who join up in a fight because they understand it to be a little like a video game, that would be one thing.
( Khurram Hussain.
The Dawn , Pakistan. )
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