Friday, 15 July 2016

एक कविता - यादों के ज़र्द पन्ने / विजय शंकर सिंह



यादों के ज़र्द पन्नों को,
कभी पलटना दोस्त,
तो , एहतियात बरतना !
थोडी संजीदगी के साथ,
थोड़ी दिल के धड़कनों पर,
रखते हुए काबू,
थोड़े इत्मीनान के साथ !

बीते हुए लम्हों की,
आवाज़ समेटे ये तवारीखी पन्ने,
दूर से आती हुयी प्रतिध्वनि की तरह,
खुद के ओढ़े एकांत को ,
कभी कभी एक जलसे में,
तब्दील कर देते है .

© विजय शंकर सिंह . 

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