आँखों के मयक़दे में
सैकड़ों ख्वाब लिए,
उम्मीदों के जाम, पैमाने में भरे,
चुप चाप बैठा,
दर पे टकटकी लगाए,
सदियों से राह देखता,
दीदार ए साकी का,
खामोशी से बैठा हूँ .
सैकड़ों ख्वाब लिए,
उम्मीदों के जाम, पैमाने में भरे,
चुप चाप बैठा,
दर पे टकटकी लगाए,
सदियों से राह देखता,
दीदार ए साकी का,
खामोशी से बैठा हूँ .
ख्वाब हैं, जाम हैं, पैमाने है,
हंसी है, ठिठोली है,
बहकता हुआ गम भी है ।
भरा है मयखाना,
लोग भी भरे भरे,
हर तरफ हमदर्द हैं,
पर, एक सन्नाटा भी ।
अफ़सोस,
न साकी है न सुकून ।
हंसी है, ठिठोली है,
बहकता हुआ गम भी है ।
भरा है मयखाना,
लोग भी भरे भरे,
हर तरफ हमदर्द हैं,
पर, एक सन्नाटा भी ।
अफ़सोस,
न साकी है न सुकून ।
कहीं दिखे साक़ी,
तो, कहना उस से,
मुन्तजिर है , कोई सदियों से,
आँखों में हज़ार ख्वाब लिए,
दर पर मयकदे के,
हर आने जाने वालों से,
दरियाफ्त ए साकी में मुब्तिला है !
पर इस दुनिया ए फानी में,
अक्स ए साकी भी मयस्सर नहीं !!
तो, कहना उस से,
मुन्तजिर है , कोई सदियों से,
आँखों में हज़ार ख्वाब लिए,
दर पर मयकदे के,
हर आने जाने वालों से,
दरियाफ्त ए साकी में मुब्तिला है !
पर इस दुनिया ए फानी में,
अक्स ए साकी भी मयस्सर नहीं !!
( विजय शंकर सिंह )
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