Saturday 11 July 2015

Remembering Sardar Anjum / सरदार अंजुम ( 1941 - 2015 ) - विनम्र स्मरण / विजय शंकर सिंह



सरदार अंजुम नहीं रहे. सरदार, उर्दू और पंजाबी के लब्धप्रातिष्ठित हस्ताक्षर रहे हैं . गम हयात का झगड़ा मिटा कर वह आखिर इस दुनिया फानी से रुखसत ही हो गए. 8 जुलाई 2015 को हरियाणा के पंचकूला में उन्होंने आख़िरी सांस ली. वह 73 वर्ष के थे. सरदार व्यवस्था विरोधी आन्दोलनों में और विशेषकर पुलिस के खिलाफ वह बहुत रहते थे. लेकिन पंजाब में जब आतंकवाद और खालिस्तान समर्थक आंदोलन अपने चरम पर था, और एक समय ऐसा लगने लगा था कि पंजाब देश के लिए नासूर बन जाएगा, तब सरदार आतंकवाद के खिलाफ और पुलिस के साथ खड़े नज़र आये. आतंकवाद के विरुद्ध चलाये गए पुलिस के अभियानों में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पुलिस का बहुत साथ दिया था.

आतंकवाद के खिलाफ उनका एक दोहरा व्यक्तित्व उभरा था. दिन में वे उर्दू और पंजाबी में लोक जन हेतु कवितायें और साहित्य लिखते रहते थे, पर रात के अँधेरे में जब पंजाब पुलिस के जवान आतंकी लड़कों की तलाश में गाँव गाँव दबिश देने जाते थे तो यह भी कुछ ऐसे ही अभियानों में छद्म रूप से पुलिस के साथ होते थे. पंजाब को आतंक से मुक्ति दिलाने वाले तत्कालीन डी जी पंजाब के पी एस गिल के वह बेहद विश्वस्त थे और आतंक विरोधी पुलिस के अनेक गोपनीय अभियानों में वह उनके और उनके विश्वस्त सिपहसालारों के साथ थे. उनका सहयोग बहुत ही गोपनीय था, और पुलिस विभाग में भी बहुत से लोगों को उनकी गतिविधियाँ ज्ञात नहीं थीं. पर केंद्र सरकार और अभिसूचना तंत्र को इसकी जानकारी थी. उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री सम्मान से भी सम्मानित किया.

वह एक जन्मजात शायर थे. कूटनामों से भी उन्होंने बहुत सी फिल्मों के लिए कहानियां और पटकथाएं लिखी. उन्होंने कुल 27 पुस्तकें उर्दू और पंजाबी भाषा में लिखी हैं. पंजाब पुलिस के उन कठिन दिनों का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तो सरदार की भूमिका को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

उनकी सबसे प्रसिद्ध ग़ज़लों में एक " गम हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई " है. बेहद खूबसूरत शब्दों को समेटे, इस  ग़ज़ल, को जब जगजीत सिंह की जादूभरी आवाज़ मिली तो यह खिल उठी. इस ग़ज़ल को जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने मिल कर गाया है। ग़ज़ल इस प्रकार है..

गमे--हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई 
चले भी आओ की दुनिया से जा रहा है कोई .......


कहो अजल से ज़रा दो घड़ी ठहर जाओ ,
सुना है , आने का वादा निभा रहा है कोई.


वो आज लिपटे हैं, किस नाज़ुकी से लाश को  ,
कि जैसे रूठों हुओं को मना रहा है कोई,


कहीं पलट के जाए , सांस नब्जों में,
हसीन हाथों से मय्यत सजा रहा है कोई !!


पहले नेक चंद, फिर शिव सिंह और अंत में सरदार अंजुम का सफ़र था यह. 2005 . में इन्हें पद्म भूषण सम्मान, 1991 में पद्म श्री सम्मान, लेडी हिलेरी क्लिंटन द्वारा, सहस्राब्दि शान्ति पुरस्कार, 2000, जो इंटरनेशल पीस फाउंडेशन न्यू यॉर्क द्वारा प्रदत्त था, दिया गया था. पंजाब के राज्यपाल ले.जनरल जे एफ जेकब द्वारा 23 सितम्बर 2001 को साहित्य में योगदान हेतु, पंजाब रतन पुरस्कार दिया गया था. 19 राज्य सरकारों द्वारा समय समय पर पुरस्कृत किये जाते रहे हैं

26 जून को गंभीर रूप से बीमार होने के कारण वह अस्पताल में भर्ती किये गए. उनकी अदम्य जिजीविषा बीमारी की हालत में भी ज़िंदा थी. उन्होंने कहा था कभी , मैं एक साहित्यकार हूँ, और ईश्वर ने मुझे यह सौभाग्य दिया है कि मैं जनता के दिलों में ज़िंदा रहना चाहूँगा. मैं उनके लिए लिखता रहूँगा. मुझे संसार, प्रेम और ईश्वर पर अगाध  विश्वास है. सरदार जीवन भर कलाकारों और लेखकों के लिए संघर्ष करते रहे. उनकी बीमारी के दौरान उनके साथी कलाकारों और लेखकों ने आपसी सहयोग से धन एकत्र कियाउन्ही के शब्दों में,

" अलविदा धड़कनों को जब कहना 
  
जब खुदा को तेरी ज़रुरत हो "

शायद खुदा को उनकी ज़रुरत पडी थी. तभी उनकी रुखसती हुयी ! 

No comments:

Post a Comment