व्यापम पर शोर बहुत हो रहा है. भाजपा के भीतर भी लोग मुखर हुए हैं. अभी यह भी पता लगा है कि मध्य प्रदेश की सरकार ने इस घोटाले की तफ्तीश सी बी आई से कराये जाने के लिए हाई कोर्ट में अनुरोध किया है. हाई कोर्ट का क्या रुख रहता है, यह अभी तय नहीं है. साल पूरा करते करते ही, भाजपा भरष्टाचार के कई मामलों में घिर गयी है और इस से उसके सामने बड़ा संकट उपस्थित हो गया है. निकट भविष्य में बिहार विधान सभा के चुनाव, फिर, 1917 में उत्तर प्रदेश के चुनाव सहित अन्य कुछ राज्यों के भी चुनाव् भी हो सकते है. अब कोई मसला केंद्र और राज्य का नहीं रहा , सभी मसले एक दूसरे को प्रभावित करते है. व्यापम, ललित मोदी प्रकरण , चिक्की आदि घोटाले भले ही बिहार के न हों पर बिहार चुनाव को यह अवश्य प्रभावित करेंगे. सूचना क्रान्ति ने ऐसा संभव बना दिया है कि, हर मामले का असर हर जगह होता है.
ऐसा नहीं है कि, पहली बार कोई घोटाला हुआ है. आज़ाद भारत में 1960 के मूंदड़ा काण्ड से ले कर चिक्की तक बहुत से घोटाले हुए हैं, और सभी घोटालों ने राजनेताओं या मंत्रियों से इस्तीफे दिलवाये है.मूंदड़ा काण्ड के टी टी कृष्णामाचारी, जो तत्कालीन वित्त मंत्री थे, से ले कर यू पी ए 2 के कुछ मंत्रियों तक इस्तीफे दिए गए है. इस्तीफ़ा देने का कारण घोटालों में लिप्तता नहीं बल्कि घोटाले न रोक पाने की नालायकी अधिक रही है. इस्तीफ़ा देने के कारण जो तत्काल शोर शराबा होता रहता है वह थोडा शांत हो जाता है , पर घोटालों की जांच चलती रहती है. घोटाले इतने बहु आयामी और जटिल होते हैं और अधिकतर साक्ष्य शातिराना तरीके से बनाये गए, दस्तावेजों पर आधारित होते हैं , कि उनकी तफ्तीश में अक्सर रुकावट आती रहती है. इस्तीफे के बाद ऐसा नहीं है कि सब शांत हो जाते है, और राजनीतिक दबाव ,विवेचक पर नहीं पड़ते हैं, अपितु , जब सब शांत हो जाता है तभी दबाव अधिक पड़ते हैं. पर उन दबावों और राजनैतिक हस्तक्षेप पर , अधिक उंगली नहीं उठती है, क्यों कि, उस से ताज़ा मामले देश के सामने आ जाते हैं. और यह तफ्तीश खरामा खरामा चलती रहती है.
समस्याओं के समाधान या उनको बस्ता ए खामोशी में डाले जाने का एक नायाब उपाय भी है. वह उपाय है, उस से बड़ी और ऐसी समस्या पैदा कर दी जाय, जिसका समाधान तो संभव न हो पर वह इतनी भावनाओं को भड़काने वाली हो, जिस से सबका ध्यान उधर ही चला जाय. ऐसी समस्या क़ानून व्यवस्था से ही जुडी हो सकती है. भाजपा के कुछ साधू टाइप नेता जो अक्सर हिंदुत्व का राग अलापते रहते हैं, फिर उन्हें संज़ीदा नेता गण रोक भी देते हैं, दर असल यह भी मुझे एक तरह का नाटक ही लगता है. क्यों कि पार्टी के जिम्मेदार दिखने वाले नेता, उन्हें सार्वजनिक रूप से रोकते तो हैं पर उनके खिलाफ पार्टी कोई कार्यवाही नहीं करती है. वे बाबा लोग कुछ देर के लिए तो शांत हो जाते हैं, पर फिर अपने एजेंडे पर आ जाते हैं. भाजपा अच्छी तरह से जानती है कि हिंदुत्व उसका मूल एजेंडा है और अंत में अपनी सफलता के लिए वह इसी एजेंडे पर लौटती है.
इसकी प्रतिक्रिया भी होती है.जिस उद्देश्य से बाबा लोग ज़हर उगलते हैं , उसी उद्देश्य से आज़म खान, ओबैसी और अन्य इसी तरह के लोग भी मैदान में उतर जाते है. बयान तो अपने अपने ठिकानों से दिए जाते हैं, पर आग जो फैलती है, उस से उन मासूमों के घर जलते हैं और उनके निवाले छिनते हैं, जिनका धर्म से केवल इतना ही जुड़ाव होता है, कि वह उन धर्मों को मानते हैं. ऐसी क्रिया, प्रतिक्रिया, हर चुनाव के पहले अवश्य होती है. आप देख लीजियेगा 2017 के पहले तो ज़रूर होगी. राम चुनावी मुसीबत में ही याद आते हैं. रहा सवाल मंदिर का, तो वह केवल राम ही बता सकते हैं कि कब वह बनेगा. इसी मुद्दे को गरमाने के लिए भाजपा का एक वर्ग जो सनातन धर्म को वहाबी इस्लाम के तर्ज़ पर हिंदुत्व में बदलना चाहता है, जान बूझ कर ऐसी बयान बाज़ी करता है जिस से माहौल में तनाव बढे और वोटों का ध्रुवीकरण धर्म के आधार पर हो.
आने वाले समय में जन आकांक्षाएं बढ़ेंगी. लेकिन यह सरकार उन जन आकांक्षाओं की पूर्ति करने में असफल रहेगी. यही सरकार नहीं , कोई भी सरकार चुनाव के दौरान किये गए वादों को पूरा करने में सफल नहीं होती है. की क्यों कि चुनावी वादे अक्सर केवल वोट बटोरने के लिये ही किये जाते हैं. बाद में वह जुमलेबाजी ही सिद्ध होते हैं. इसी लिए पांच साल के बाद, जब सरकारी पार्टी जनता के बीच जाती है तो वह अपने कृत्य के बजाय नए वादे ढूंढती है, और उसी तार को पकड़ती है, जिसकी राग भावुक हो. जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आएगा, देश का हिन्दू मुस्लिम सौहार्द निशाना बनेगा. मीर क़ासिम के हमले से ले कर आज तक के सारे मामले ज़िंदा किये जाएंगे. इसकी प्रतिक्रिया भी होगी. और इसी की ऐंटि थीसिस होगी , कि कुछ दल धर्म निरपेक्षता की आड़ में मुस्लिम धर्मोन्माद को हवा देंगे. इसका सीधा असर, दंगो, तनाव और बिखराव के रूप में होगा. जनता के भूख , रोज़ी, आवास आदि की समस्याएं भुला दी जाएंगी. यह उन्माद का दौर जान बूझ कर गरमाया जाता रहा है, और आगे भी गरमाया जाएगा.
( विजय शंकर सिंह )
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