Wednesday 8 July 2015

Controversy on National Anthem and Some facts / राष्ट्र गान पर विवाद और कुछ तथ्य / विजय शंकर सिंह




अब बहस शुरू हुयी है, राष्ट्र गान  ,जन गण मन पर. इसी राष्ट्र गान पर जिसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र गान माना गया है. दुनिया में सबसे अधिक फैला हुआ राष्ट्रगान था, गॉड सेव किंग या कवीन. यह ब्रिटेन का राष्ट गान है. जहां जहां तक उनके चरण पसरे थे, वहाँ वहाँ तक यह राष्ट्र गान फैला था. अब जब उपनिवेश खत्म हुए तो यह भी सिमट गया.

15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगे को सलामी देती हुयी 52 सेकेण्ड की यह धुन, जिस गर्व का संचार करती है, वह भी निर्विवाद नहीं रह सकी. कुछ लोगों का कहना है कि यह गान ब्रिटिश अधिनायक यानी सम्राट का स्तुति गान है. ब्रिटेन के सम्राट को ही भारत भाग्य विधाता की उपाधि दी गयी है।  यह आरोप अक्सर बहुत से पढ़े लिखे लोग भी लगाते हैं कि यह गान चाटुकारिता का प्रतीक है. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों को प्रसन्न करने के लिए यह गीत लिखा था, इसी लिए जॉर्ज पंचम के दिल्ली दरबार 1911 के अवसर पर इसे स्वागत गान हेतु गाया भी गया था.

1911 में ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम, और रानी मेरी ने भारत का दौरा किया था. उस समय इंडियन नेशनल कांग्रेस में नरम दल के समर्थकों का प्रभुत्व था. हालांकि सूरत के अधिवेशन जो 1907 में हुआ था , में लोकमान्य बाल गंगाधर  तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले के बीच अंग्रेज़ों के विरोध की क्या धारा रहे इस पर खुल कर विवाद सामने गया था. तिलक गरम दल का नेतृत्व कर रहे थे, वह प्रखर और खुला विरोध चाहते  थे, जब कि नरम दल जिसे मोडेरट्स कहते थे और जिसका नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले कर रहे थे ,वह संवैधानिक रास्ते से विरोध करना चाहते थे. तिलक उस विवाद में कमज़ोर पड़े और कांग्रेस की कमान नरम दल वालों के हाँथ में रही. ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने ब्रिटिश सम्राट का स्वागत करने का निश्चय किया. एक तर्क यह दिया जाता है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं के कहने पर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह गीत लिखा. गुरुदेव का लिखा यह गीत दरबार के दूसरे दिन जिस दिन सम्राट के प्रति समस्त रियासतों के राजाओं द्वारा स्वामिभक्ति प्रदर्शित की गयी थी, उसी दिन उनके स्वागत में भी गाया गया था. इस दरबार में उदयपुर के महाराणा को छोड़ कर सभी राजे महाराजे उपस्थित थे.

इस अवसर पर अनसर पर अंग्रेज़ी अखबार ' स्टेट्समैन ' के दिसंबर 28, 1911,  ' इंग्लिशमैन ' के दि. 28 दिसंबर 1911, और ' इंडियन ' के 29 दिसंबर 1911 में ख़बरें छपीं थीं ,  वह इस प्रकार थी,...

The Bengali poet Babu Rabindranath Tagore sang a song composed by him specially to welcome the Emperor.“ (Statesman, Dec. 28, 1911)
" बंगाली कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के, गान, जो उन्होंने सम्राट के सम्मान में विशेष कर लिखा था, के गायन के बाद ( दरबार की ) कार्यवाही प्रारम्भ हुयी. " ( स्टेट्समैन , दिसंबर, 28, 1911 )

The proceedings began with the singing by Babu Rabindranath Tagore of a song specially composed by him in honour of theEmperor.“ (Englishman, Dec. 28, 1911)
" कार्यवाही का शुभारम्भ, बाबू रविंद्रनाथ टैगोर के एक गीत, जो उन्होंने सम्राट के स्वागत के लिए विशेष रूप से लिखा था, के गायन के बाद हुयी." ( इंग्लिशमैन, दिसंबर, 28, 1911.)

When the proceedings of the Indian National Congress began on Wednesday 27th December 1911, a Bengali song in welcome of the Emperor was sung. A resolution welcoming the Emperor and Empress was also adopted unanimously.“ (Indian, Dec. 29, 1911).
" बुधवार, 27 दिसंबर 1911 को जब इंडियन नेशनल कांग्रेस का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ तब , सम्राट के सम्मान में एक बांग्ला गीत गाया गया. सम्राट और साम्राञी के सम्मान में एक स्वागत प्रस्ताव भी सर्वसम्मति से पारित किया गया. " ( इंडियन, दिसंबर, 29, 1911)

उपरोक्त ख़बरों से यही प्रतीत होता है कि यह गान एक स्तुति गान था. पर इसी घटना पर भारतीय अखबारों में जो समाचार छपा था, ज़रा उस पर यह कतरन पढ़ें.

अमृत बाज़ार पत्रिका, 28 दिसंबर 1911,..
The proceedings of the Congress party session started with a prayer in Bengali to praise God (song of benediction). This was followed by a resolution expressing loyalty to King George V. Then another song was sung welcoming King GeorgeV.“ (AmritaBazarPatrika,Dec.28,1911)
" कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन की कार्यवाही का प्रारम्भ, एक बांग्ला प्रार्थना , जो ईश्वर को सपर्पित थी के साथ हुयी. इसके बाद, सम्राट के प्रति स्वामिभक्ति का प्रस्ताव लाया गया. इसके बाद, सम्राट के सम्मान में एक अन्य गीत गाया गया. " ( अमृत बाजार पत्रिका, दिसंबर, 28, 1911 )

बेंगाली, 28 दिसंबर 1911...
The annual session of Congress began by singing a song composed by the great Bengali poet Babu Ravindranath Tagore. Then a resolution expressing loyalty to King George V was passed. A song paying a heartfelt homage to King George V was then sung by a group of boys and girls.“(The Bengalee, Dec. 28, 1911).
" कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन की, शुरुआत, बांग्ला के महान कवि, बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर, के एक गीत से हुआ. इसके बाद किंग जॉर्ज पंचम के प्रति स्वामिभक्ति का प्रस्ताव पारित किया गया. और तदुपरांत, बालकों और बालिकाओं के एक दल द्वारा उनके सम्मान में एक गीत प्रस्तुत किया गया." ( बेंगाली, दिसंबर, 28, 1911 )

उसी समय इंडियन नेशनल कांग्रेस का अधिवेशन भी चल रहा था. ज्ञातव्य है कि कांग्रेस के अधिवेशन की तारीखें भी दिसंबर के आखिरी हफ्ते में ही अक्सर पड़ा करतीं थी. कांग्रेस अधिवेशन के रिपोर्ट का यह दस्तावेज़ पढ़िए....

On the first day of 28th annual session of the Congress, proceedings started after singing Vande Mataram. On the second day the work began after singing a patriotic song by Babu Ravindranath Tagore. Messages from well wishers were then read and a resolution was passed expressing loyalty to King George V. Afterwards the song composed for welcoming King George V and Queen Mary wassung.“
" कांग्रेस के 28 वें अधिवेशन की कार्यवाही का शुभारम्भ, वंदे मातरम् गीत के गायन से हुआ. द्वीतीय दिन का प्रारम्भ, बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर के देशभक्ति पूर्ण गाने से हुआ. सभी शुभेच्छुओं के यहां से प्राप्त शुभ कामना सन्देश पढ़े गए, और किंग जॉर्ज पंचम के प्रति स्वामिभक्ति का प्रस्ताव पारित किया गया. इसके बाद, किंग जॉर्ज पंचम और रानी मेरी के स्वागत में रचे गए गीत का गायन हुआ. "

अब एक दस्तावेज़ और पढ़िये. यह दस्तावेज़ है, रवीन्द्रनाथ टैगोर का , इसी गान के बारे में , एक पत्र जो उन्होंने, अपने मित्र पुलिन बिहारी सेन को दि. 10 नवम्बर 1937 को लिखा था. यह पत्र प्रभाकर मुखर्जी द्वारा लिखी गयी रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी, रवीन्द्र जीवनी जो बांग्ला भाषा में है के खण्ड 2 , पृष्ठ 339 पर है. पत्र इस प्रकार है.

A certain high official in His Majesty’s service, who was also my friend, had requested that I write a song of felicitation towards the Emperor. The request simply amazed me. It caused a great stir in my heart. In response to that great mental turmoil, I pronounced the victory in Jana Gana Mana of that Bhagya Vidhata of India who has from age after age held steadfast the reins of India’s chariot through rise and fall, through the straight path and the curved. That Lord of Destiny, that Reader of the Collective Mind of India, that Perennial Guide, could never be George V, George VI, or any other George. Even my official friend understood this about the song. After all, even if his admiration for the crown was excessive, he was not lacking in simple common "
" सम्राट की सेवा में नियुक्त एक अधिकारी जो मेरे मित्र भी थे ने मुझसे सम्राट के सम्मान में एक गीत लिखने का आग्रह किया. उनके इसअनुरोध ने मुझे हैरानी में डाल दिया. उनके अनुरोध ने मुझे बहुत ही ऊहापोह में डाल दिया, और मैं बेहद पशोपेश में पड़ गया. मैंने जन गण मन  के उस भारत भाग्य विधाता के जय का उद्घोष किया है, जो युगों युगों से, हर उत्थान और पतन में, तथा सीधे और टेढ़े मेढ़े घुमाव भरे पथों पर, भारत का रथ मज़बूती से थामे हुआ है. जगत नियंता, भारत की सामूहिक मेधा, और अक्षय पथ प्रदर्शक , कभी भी, जॉर्ज पंचम या, जॉर्ज षष्टम , या कोई भी जॉर्ज कदापि नहीं हो सकता है. "

इसके अतिरिक्त कुछ इन तथ्यों की और भी देखिये.
1. इस दरबार गान के एक महीने बाद ही बंगाल सरकार के डाइरेक्टर ऑफ़ पब्लिक इंस्ट्रक्शन्स, के द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया, जिसमे सभी सरकारी कर्मचारियों को जो राज की सेवा में थे, के बच्चों को शांतिनिकेतन में पढ़ाने की मनाही कर दी गयी थी. शान्ति निकेतन तब सिर्फ एक स्कूल था और अपने शैशव काल में था. यह सर्कुलर यह प्रमाणित करता है कि, ब्रिटिशर्स के सम्बन्ध रवीन्द्र नाथ टैगोर के मधुर नहीं थे.
2. 1917 में कांग्रेस का नियंत्रण गरम दल की विचारधारा वाले नेताओं के हाँथ में गया था. देश बंधु चित रंजन दास जो उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे, और जिन्होंने बाद में कांग्रेस को छोड़ कर मोती लाल नेहरू के साथ स्वराज पार्टी का गठन किया था ने इस गान के बारे में यह टिप्पणी की थी,
" It is a song for glory and victory of India. "

उपरोक्त दस्तावेजों से यह तो प्रमाणित होता है कि यह गीत उसी अवसर के लिए लिखा गया था. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखने का अनुरोध और उन्होंने भारत भाग्य विधाता किसको कहा है यह भी खुद ही स्पष्ट कर दिया है. कवि जब भी कोई रचना करता है और अगर वह रचना कविता में है तो, उसमे वह अपनी बात, प्रतीकों और विम्बों के माध्यम से करता है. पर पाठक या आलोचक उन विम्बों या प्रतीकों को हू हू वही समझ लें जैसा कि कवि समझाना चाहता है, कभी कभी संभव भी नहीं होता.यह गीत कांग्रेस के अधिवेशन में पहले गाया गया तब इसके बाद पुनः सम्राट के स्वागत में इसका गान हुआ. उस समय की कांग्रेस सम्राट के प्रति समर्पित थी. पूर्ण आज़ादी की बात सपना थी. याचिकाएं और प्रतिवेदन ही राज से कुछ मांगने के माध्यम थे. तिलक के विद्रोही तेवर और बंग भंग आंदोलन से उपजे छिटपुट क्रांतिकारी घटनाओं को छोड़ कर भारत आपाद मस्तक सब्रिटिश राज के समक्ष नत मस्तक था. कांग्रेस ने राज भक्ति का प्रस्ताव भी पारित किया था. पर भारत भाग्य विधाता , की पदवी ब्रिटिश सम्राट के लिए नहीं थी, इसे कवि ने स्वतः ही स्पष्ट कर दिया है.


राष्ट्रगान पर पहली बार विवाद नहीं हुआ है . बहुत पहले इस की आलोचना हो चुकी है .आलोचना का यह प्रमुख तर्क है कि यह गान ब्रिटिश सम्राट के स्तुति के रूप में लिखा गया था . लेकिन जो भी हो यह अब देश का प्रतीक है . इसका सम्मान किया जाना चाहिए . हमने बहुत सी बातें और विरासत ब्रिटिश साम्राज्य की अपनाईं हैं . यह भी उन्ही में से एक है.

( विजय शंकर सिंह )


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