व्यापम शब्द से जो ध्वनि निकलती है, वह किसी महामारी के नाम की तरह लगती है. कुछ के लिए यह लक्ष्मी का सिद्ध मन्त्र होगा. कुछ के लिए यह राजनीतिक जुगाड़ की कोई जुगत होगी, पर यह नाम और विभाग दोनों ही अब अभिशप्त हो गये है. गंगा जब गंगोत्री से ही प्रदूषित होने लगें तो कानपुर में सफाई का कोई ख़ास मतलब ही नहीं रह जाता है. व्यापम अब बरमूडा त्रिकोण हो गया है . अपनी बनारसी बोली में कहूँ तो, सटला त गइला बेटा !
सरकार जब एक साल पूरा करने का जश्न मना रही थी, तब किसी को उम्मीद नहीं थी, आगे इतने अवरोध आएंगे कि बढ़ना मुश्किल हो जाएगा. सुषमा स्वराज का प्रकरण, वसुंधरा राजे की ललित मोदी के साथ व्यावसायिक रिश्ते, पंकजा मुंडे का चिक्की घोटाला, स्मृति ईरानी का झूठा हलफनामा, और अब व्यापक से व्यापकतर होता हुआ व्यापम घोटाला. जिस साख विन्दु पर मनमोहन सिंह को पहुँचने में 10 साल लगे, उस और नरेंद्र मोदी तेज़ी से बढ़ रहे है. जिस भ्रष्टाचार को कोसते जुबां नहीं थकती थी, उसी भ्रष्टाचार के उजागर हो रहे मामलों पर आप जुबां तो तालु से चिपक ही गयी है ट्विटर भी नहीं चहकती है. इस से उनकी साख पर असर पड़ रहा है. सरकार की साख सबसे महत्वपूर्ण है. घोर अन्धकार में साख ही एक ऐसी आभा है जो उम्मीद की राह दिखा सकती है. प्रधान मंत्री को इन सभी मामलों पर न सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए बल्कि उन्हें उचित और वैधानिक कार्यवाही भी करनी चाहिए.
व्यापम प्रकरण पर सरकार और भाजपा प्रवक्ताओं की यह दलील कि हाई कोर्ट की निगरानी में चूँकि एस टी एफ इस मामले में तफ्तीश कर रही है, अतः सी बी आई जांच के लिए वह कोर्ट को आदेश नहीं दे सकती है. यह तर्क कानूनन भ्रामक है और बहकाने वाला है. एस टी एफ एक जांच, विवेचना एजेंसी है. इसमें भी पुलिस के लोग हैं. चूँकि प्रकरण बहुत व्यापक है और विवेचना जटिल है इस लिए एक अलग विशेषज्ञ विवेचना सेल को यह तफ्तीश दी गयी. विवेचना चाहे चौकी इंचार्ज एस आई करे या, सी बी आई, सभी दंड प्रक्रिया संहिता CrPC के अनुसार ही विवेचना करते हैं. उसी के अनुसार , साक्ष्य संकलन, परीक्षण, गिरगतारी, और सुबूतों के आधार पर आरोप पत्र या अंतिम आख्या जिसे फाइनल रिपोर्ट कहते हैं दी जाती है. इस मामले में यही कार्यवाही एस टी एफ कर रही है। एस टी एफ ने कुछ कार्यवाही की भी है. कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए हैं ,और जेल में भी है. हाई कोर्ट ने उनकी विवेचना में अभी तक कोई खोट नहीं पाया है.
अमूमन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, किसी विवेचना का सुपरवीज़न पहले नहीं करतीं थीं. पर जब से जांच एजेंसियों ने जांच को वाह्य दबावों से प्रभावित हो जाने देने की परिपाटी चलाई है और अदालतों मैं शिकायतें पहुंचीं तथा जब अदालतों ने उन शिकायतों को प्रथम दृष्टया सही पाया तो, अदालतें विवेचना में भी दखल देने लगीं. ऐसी परंपरा की शुरुआत, जांच एजेंसियों की नालायकी से ही हुयी है. इस से सी बी आई तक की प्रतिष्ठा भी धूमिल हुयी. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने उसे पिंजरे का तोता कहा और सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा ने खुद को तोता स्वीकार भी कर लिया. बाद में उनकी निष्ठां पर जो छीछालेदर सुप्रीम कोर्ट में हुयी, वह सब को पता है. सी बी आई के लिए सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उसके साख पर एक आघात है.
लेकिन इन सारी कमियों के बाद सीबीआई ही अंत में बचती है जहां से जांच कराने की मांग की जाती है. सुप्रीम कोर्ट से निगरानी या हाई कोर्ट से निगरानी कराने की मांग के पीछे यह आशा रहती है कि, विवेचना पर राजनीतिक या नौकरशाही का दबाव नहीं पड़ेगा. विवेचना में बहुत दबाव पड़ता है, मेरे वे मित्र जो पुलिस सेवा में हैं या रह चुके हैं इसे अच्छी तरह से समझ सकते है.
सीबीआई से जांच कराने के लिए राज्य सरकार की संस्तुति आवश्यक है. हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट सीधे सीबीआई विवेचना का आदेश दे सकते हैं. यह आदेश या तो वह किसी याचिका पर दें या स्वतः मामले का संज्ञान ले कर ऐसा आदेश दे सकते हैं. खुद की निगरानी या, समयबद्ध रिपोर्ट भी अदालत मांग सकती है और विवेचना की समय सीमा भी तय कर सकती है. जिन मुक़दमों या प्रकरण में अपराध दो या दो से अधिक राज्यों में फैला है, उसकी विवेचना राज्य सरकार , सी बी आई को देने के लिए केंद्र से अनुरोध कर देती हैं. कुछ मामले , संवेदनशील और व्यापक जन असंतोष से जुड़े या राजनैतिक महत्व के हों तो भी उन मामलों की जांच सी बी आई को दी जाती है.
व्यापम में , इसकी विराटता, और कई प्रांतों में अपराध का जाल फैला होने के कारण इसे पहले ही सी बी आई को दे देना चाहिए था. 47 लोगों की अस्वाभाविक मृत्यु के बाद भी इस सरकार द्वारा इस प्रकरण की विवेचना सी बी आई ने न कराने का फैसला करना, सरकार पर संदेह ही उत्पन्न करता है. अगर व्यापम जांच हाई कोर्ट की निगरानी हो रही है तो भी सरकार सी बी आई जांच के लिए केंद्र सरकार से संस्तुति करके या हाई कोर्ट के संज्ञान में इसे ला कर वह सीबीआई के लिए संस्तुति कर सकती है. अगर वह यह भी नहीं करना चाहे तो, जो अस्वाभाविक मौतें हुयी हैं, उनकी जांच तो वह सीबीआई से करा ही सकती है.
पर जिस अहंकारपूर्ण शैली में मंत्रियों की दर्पोक्तियां आ रही हैं उस से सरकार खुद अपराधियों के गिरोह के रूप में नज़र आ रही है. यह अलग बात है कि वातानुकूलन के कारण सरकार को जन रोष का पता नहीं चलता या वह मूँदहि आँख कतहुँ कुछ नाहीं पर हद से अधिक यकीन करने लगती है.
व्यापम ऐसे ही नहीं हुआ है. बिहार का रंजीत डॉन, लोक जन शक्ति पार्टी से विधान परिषद का उम्मीदवार है. लोक जन शक्ति पार्टी के नेता, राम विलास पासवान भाजपा के सहयोगी है. रंजीत डॉन , भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली, और पार्टी विद डिफरेंस , भाजपा के नेता और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं ! वाह !!
व्यापम मामले में ये उन लोगो के नामो की लिस्ट है सरकार और जांच एजेंसी के अनुसार मृतको की।
सड़क हादसे में
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अनुज उईके मंडला, 14/6/2010
अंशुल सचान होशंगाबाद,14/6/2010
श्यामवीर यादव,ग्वालियर,14/6/2010
आनंद सिंह यादव,फतेहपुर,9/10/2013
अरविन्द शाक्य ग्वालियर,28/11/2012
दिनेश जाटव मुरैना,14/2/2014
कुलदीप मरावी पता नहीं,12/5/2013
तरुण मछार रतलाम,115/9/2013
देवेन्द्र नागर भिंड,26/12/2013
दीपक जैन शिवपुरी,1/2/2014
रवि वर्मा सिंगरौली/ 2010
ख़ुदकुशी
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आदित्य चौधरी सागर,25/10/2012
प्रमोद शर्मा मुरैना,21/4/2013
रविन्द्र प्रताप सिंह,15/6/2014
ब्रेन हैमरेज
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शैलेश यादव लखनऊ,25/32015
विकास पाण्डेय इलाहाबाद,15/6/2014
अधिक मद्यपान से
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आशुतोष तिवारी ग्वालियर10/8/2013
ज्ञान सिंह भिंड,20/6/2010
विकास सिंह बड़बानी,21/11/2009
बीमारी से
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आनंद राय टैगौर मुरैना,7/11/2012
हेमलता पाण्डेय रीवा 17/5/2013
अज्ञात कारणों से
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नम्रता डोमार झाबुआ/ मृत्यु की तारिक नहीं पता
नरेंद्र राजपूत महोबा,13/4/2014
बंटी सिकरवार ग्वालियर,21/1/2014
विजय पटेल भोपाल,28/4/2015
अक्षय सिंह पत्रकार दिल्ली,झाबुआ 4/4/2015
डॉक्टर अरुण शर्मा जबलपुर(मौत दिल्ली)5/4/2015
अनामिका
रमाकान्त
( विजय शंकर सिंह )
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