Friday, 17 July 2015

एक नज़्म , कोई शाद का सा क़लाम हो ,.....





कोई शाम शहर ए ख़राब में ,
कोई रात अपने हिजाब में 
कोई राज़  सवाल का ,
कोई बात अपने जवाब में ,
कोई खुशबुओं से भरी हवा ,
कोई रंग, रंग ए शवाब में ,
कोई अश्क़, आँख से मौतबर 
कोई आईना सा हिबाब में ,
कोई रोशनी, तेरी आँख में ,
कोई फूल, दिल की किताब में
कोई मस्तियों से भरी हुयी ,
कोई ओस, क़तरा ए गुलाब में ,
कोई दर्द, प्यार की सुबह का ,
कोई शाम, तेरी जनाब में 
कोई शाद, का सा क़लाम हो ,
कोई ज़िक्र, शेर ओ बाब में !!
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हिबाब       - पुरस्कार 
हिजाब       - पर्दा 
मौतबर      - गिरा हुआ  
शाद           - आनंद , खुशी। 

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