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अक्सर अपने लेखों में मैं यह बात ज़रूर कहता हूँ कि राम मंदिर आंदोलन का गुप्त एजेंडा भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान बनाना रहा है. जब वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट अचानक बिना किसी विचार विमर्श के लागू कर दी तो देश का वातावरण अत्यंत विषाक्त हो गया था. अगड़ों और पिछड़ों के बीच खुला संघर्ष शुरू हो गया था. क़ानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो गयी थी. हालांकि वह निर्णय भी जनता दल के आपसी प्रतिद्वंद्विता का परिणाम था. भाजपा ने उसके उत्तर में राम जन्म भूमि के मुद्दे को जो 1985 में ताला खुलने के बाद ही धीरे धीरे सुलग रहा था, हवा देनी शुरू कर दिया था. विश्व हिन्दू परिषद का राम शिला पूजन अभियान चल ही रहा था. इसी बीच रथयात्रा हुयी और कार सेवा के नाम पर 1990 में विवादित ढाँचे को पहली बार नुकसान पहुंचा . उसके बाद जब भी उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए है उसके पहले पड़ने वाले कुम्भ मेले में एक संत समागम होता था और उसी में यह मुद्दा उठता रहा है. और मंदिर निर्माण की तिथियाँ भी घोषित होती रहीं हैं. यह सब तब भी होता रहा है जब कि सब जानते थे कि यह लगभग असंभव है. पर चुनाव बाद फिर राम को वनवास दे दिया जाता रहा है. राम का यह चुनावी दुरूपयोग अगर आप को स्वीकार है तो आप की मर्ज़ी, पर मुझे नहीं.
यही कहानी फिर दुहराई जा रही है. अभी नासिक कुम्भ में और 2016 के हरिद्वार कुम्भ और इलाहाबाद के माघ मेले में गौर से देखिएगा , रामनामी ओढ़े रामभक्तों को, वह क्या क्या कहते हैं. इस से न तो मंदिर बनता है और न ही अयोध्या का विकास होता है , पर वोटों का ध्रुवीकरण ज़रूर होता है और इस ध्रुवीकरण में विकास के सारे खोखले दावे , और वादे कहीं खो जाते हैं. पूरा चुनाव हिन्दू बनाम मुस्लिम पर लड़ा जाता है और इसका लाभ भाजपा मिलता रहा है. लेकिन इस सर्कस से सामाजिक सद्भाव का जो क्षय होता है उसका परिणाम वर्षों तक असर करता है.
क्या फिरकापरस्ती और राष्ट्रवाद साथ साथ चल सकते हैं ? क्या धर्म जिसका जन्म ही मानवीय गुणों के विकास के लिए हुआ था, मानवता का वह परम शत्रु नहीं हो रहा है ? अक्सर ये सवाल मेरे मन में उठते हैं. हो सकता हो यह सवाल आप के मन को भी कभी न कभी व्यथित करता होगा. आज अखबार में छपा है राम मंदिर निर्माण तैयारी शुरू हो गयी. राम भारतीय अस्मिता के प्रतीक है. और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं. अयोध्या उनकी जन्म भूमि है. सुदूर बनवास और कठिन समय में जब उन्होंने स्वर्ण नगरी लंका देखा था , तो बरबस उनके मुंह से निकल पड़ा,
" अपि स्वर्णमयी लंका, न में लक्ष्मण रोचते ,
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "
( मुझे स्वर्ण से परिपूर्ण यह लंका लुभा नहीं पा रही है, जन्म देने वाली जन्म भूमि मुझे स्वर्ग से भी अधिक लगती है )
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "
( मुझे स्वर्ण से परिपूर्ण यह लंका लुभा नहीं पा रही है, जन्म देने वाली जन्म भूमि मुझे स्वर्ग से भी अधिक लगती है )
किसी को रंच मात्र भी संदेह इस विषय में नहीं है कि अयोध्या राम की जन्म भूमि है और राम परम पूजनीय है. विवाद एक इमारत को ले कर है. कहा जाता है वहां एक मंदिर था. जिसे 1528 में जो बाबर का काल था, मीर बाक़ी ने उसे तोड़ कर मस्ज़िद बना दिया. भारत के मुस्लिम काल में इल्तुमिश से ले कर औरंगज़ेब तक, बीच में कुछ काल को छोड़ कर मंदिरों को लगातार तोडा गया था और उन भग्नावशेषों पर मस्जिदें बनी हैं. यह ऐतिहासिक तथ्य है. इसे स्वीकार कीजिये. अयोध्या भी उनमे से एक है. इस पूरे प्रकरण के सम्बन्ध में मा सुप्रीम कोर्ट में एक मुक़दमा लंबित है. और जब तक उस मुक़दमे में कोई निर्णय नहीं आ जाता तब मंदिर बनाने की बात करना केवल एक रणनीति है. यह रणनीति जब जब चुनाव नज़दीक आता है हमेशा भाजपा द्वारा अपनाई जाती रही है.
भाजपा के अध्यक्ष कहते हैं, मंदिर के निर्माण के लिए तीन चौथाई बहुमत चाहिये.
कभी कहते हैं, केंद्र और राज्य दोनों में ही एक ही दल की सरकार हो तो यह संभव है.
कभी कहते हैं. न्यायालय का फैसला आने के बाद ही कुछ संभव है.
कभी कभी यह भी जुमला उछाल दिया जाता है कि दोनों पक्षों में सहमति की कोशिश हो रही है. कुछ तय हो गया है और कुछ बाक़ी है.
कभी हिन्दू महासभा कहती है कि विश्व हिन्दू परिषद् 1300 करोड़ का चन्दा मंदिर के नाम पर डकार गयी है, उसका हिसाब दे.
कभी कहते हैं, केंद्र और राज्य दोनों में ही एक ही दल की सरकार हो तो यह संभव है.
कभी कहते हैं. न्यायालय का फैसला आने के बाद ही कुछ संभव है.
कभी कभी यह भी जुमला उछाल दिया जाता है कि दोनों पक्षों में सहमति की कोशिश हो रही है. कुछ तय हो गया है और कुछ बाक़ी है.
कभी हिन्दू महासभा कहती है कि विश्व हिन्दू परिषद् 1300 करोड़ का चन्दा मंदिर के नाम पर डकार गयी है, उसका हिसाब दे.
कभी मंदिर के पुजारी कहते हैं कि अयोध्या के बाहरी लोग यहां दखल देना बंद कर दें, मामला हल हो जाएगा.
हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि उक्त भूमि के तीन हिस्से हैं. एक वक़्फ़ बोर्ड को , एक मंदिर को, और एक निर्मोही अखाड़े को. इसी की अपील लंबित है.
हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि उक्त भूमि के तीन हिस्से हैं. एक वक़्फ़ बोर्ड को , एक मंदिर को, और एक निर्मोही अखाड़े को. इसी की अपील लंबित है.
नाना पुराण निगमागम और मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना की तरह यह बातें दिखती है. सत्य क्या है राम ही बता पाएंगे. उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि इस राह में बाधाएं कम नहीं है. इस तथ्य से भाजपा नेतृत्व सहित सभी मंदिर समर्थक पक्ष परिचित हैं. लेकिन फिर भी भावना भड़काने की कोशिश की जा रही है तो इस षड्यंत्र को क्या कहा जाय. आप स्वयं इस का उत्तर खोजें.
अशोक सिंघल विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठतम पदाधिकारी है. उनके अनुज और भाजपा के सांसद रहे बी पी सिंघल 1983 में मेरे आई जी रहें हैं. वह आई जी जोन आगरा थे और मैं मथुरा में डी एस पी था. मुझ पर उनकी कृपा भी थी. उन्हीं के आवास पर पहली बार अशोक सिंघल को देखा था मैंने. तब वह एक अल्पज्ञात व्यक्तित्व थे.
फिर मैंने उन्हें देखा 1989 में अयोध्या में. राम मंदिर आंदोलन के सम्बन्ध में . राम जन्म भूमि पर मंदिर के शिलान्यास का निर्णय तत्कालीन केंद्र सरकार ने लिया था. मैं उस समय उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में प्रतिनियुक्ति पर कानपुर में नियुक्त था. मेरी ड्यूटी अयोध्या में लगी थी. मैं अयोध्या में एक माह था. मेरी ड्यूटी अयोध्या के राम जन्म भूमि / बाबरी मस्ज़िद, जिसे सरकारी अभिलेखों में विवादित ढांचा ही कहा जाता था, के प्रभारी के रूप में थी. अशोक सिंघल नियमित वहाँ आते थे और दोनों सरकारो की सहमति से प्रस्तावित मंदिर का शिलान्यास किया गया. शिलान्यास के लिए जो भूमि खोदी गयी थी और जो अनुष्ठान हुआ था, उस यज्ञ में अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर, राजमाता विजय राजे सिंधिया, मुख्तार अब्बास नक़वी, महंत राम चंद्र दास, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ रामप्रसाद वेदान्ती, विनय कटियार, प्रकाश शर्मा आदि आदि थे.
तीसरी बार भी अशोक सिंघल से मुलाकात अयोध्या में ही हुयी. वह था 1990 . जब कारसेवा के लोग एकत्र हो रहे थे. यह रथयात्रा का काल था. आडवाणी रथ पर सवार थे. अयोध्या में चहल पहल भी थी, और उत्तेजना भी. पर उस साल की देवोत्थान एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा कोई भूल नहीं पायेगा. 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर की तारीख थी. विवादित ढाँचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुयी थी और पुलिस को गोली भी चलानी पडी थी. इस घटना को ले कर बहुत कुछ अखबारों में झूठ भी छपा था, उस पर फिर कभी पढ़ लीजियेगा.
चौथी मुलाक़ात देवरिया में मेरे एक मित्र के यहां जब वे एक पारिवारिक समारोह में आये थे तब हुयी थी. वह साल था 1994 का. वह मुलाक़ात लंबी और घरेलू थी. मैं देवरिया में अपर पुलिस अधीक्षक था.
पांचवीं और अब तक की अंतिम मुलाक़ात भी अयोध्या में हुयी थी. वर्ष 2004 में. सरकार सपा की थी. उत्तर प्रदेश में जब जब सपा की सरकार होती है तब तब राम मंदिर ज्वर अक्सर वी एच पी / आर एस एस / बी जे पी की त्रिमूर्तिं को पीड़ित करता है. यह जानते हुए भी कि यह मामला अदालत में विचाराधीन है और राम लला जहां विराजमान हैं, वहाँ तक अशोक सिंघल या कोई भी नहीं पहुँच सकता, इन्होंने वहाँ तक मार्च करने की घोषणा की. जैसा कि तय था इनकी गिरफ्तारी होनी ही थी. इन्हें भी मालूम था कि यह गिरफ्तार होंगे ही. उस समय आई जी जोन विभूति नारायण राय थे. इनकी गिरफ्तारी का दायित्व मुझे दिया गया. उस पर विस्तार से फिर कभी. पर चूहे बिल्ली की तरह कुछ देर दांव चलने के बाद अशोक सिंघल जी को गिरफ्तार किया गया. थोड़ी ज़बरदस्ती भी करनी पडी. पर सब ठीक ठाक निपट गया.
उपरोक्त घटना क्रम एक संस्मरण तो है ही. पर आप इस से यह निष्कर्ष आसानी से निकाल सकते हैं कि राम मंदिर निर्माण का मुद्दा आम जन के लिए आस्था का प्रश्न भले ही हो पर इन संगठनों के लिए वह केवल सत्ता पाने का ही एक मुद्दा है. इस दांव को सब समझ भी रहे हैं . यह बयान 2020 तक भारत हिन्दू राष्ट्र हो जाएगा, का तात्पर्य क्या है यह तो वही जानें जिनके मुखारविंद से यह सुभाषित निकला है. मेरा तो केवल यह मानना है कि यह भी एक सोची समझी और धोखा देने की रणनीति है क्यों कि इस साल बिहार के चुनाव, 2017 में उत्तर प्रदेश के चुनाव और 2019 में लोकसभा के चुनाव होंगे. और इस दांव की समय सीमा 2020 में समाप्त.
मैं किसी मुगालते में नहीं हूँ. आप से अनुरोध है कि आप भी इन शातिर चालों को समझे.
-vss.
-vss.
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