जवाहर लाल नेहरू कुछ लोगों के निशाने पर बहुत पहले से ही हैं. पटेल का महिमा मंडन , नेहरू विरोध की ही एक प्रतिक्रिया है. अक्सर वे यह सवाल उठाते रहे हैं कि नेहरू के स्थान पर पटेल अगर प्रधान मंत्री बने होते तो देश की तस्वीर ही बदल गयी होती. नेहरू उपयुक्त होते या पटेल , यह प्रश्न अटपटा है और काल्पनिक भी.. इतिहास में कभी महान व्यक्तियों को ले कर उनकी आपस में तुलना नहीं होती है. पटेल ने राष्ट्र के एकीकरण में जो कार्य किया वह नेहरू संभवतः नहीं कर पाते. पटेल एक दृढ इच्छा शक्ति संपन्न और ठोस इरादे वाले लौह पुरुष थे. नेहरू काल्पनिक आदर्शवाद के आसपास, वैश्विक व्यक्तित्व के धनी और उदार विचारों के थे. लोकप्रियता में वह अपने समय में गांधी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे. वह सच में अपने समय के युवा ह्रदय सम्राट थे. लेकिन भारत के विभाजन और पाकिस्तान के गठन को लेकर, कश्मीर की समस्या और तिबत के मसले और चीन से भारत की शर्मनाक हार के कारण उनकी आलोचना भी कम नहीं की जाती है. प्रख्यात समाजवादी विचारक और नेता डॉ लोहिया , न केवल नेहरू के प्रखर आलोचक थे, बल्कि वह , नेहरू के विरुद्ध ,इलाहाबाद के फूलपुर संसदीय क्षेत्र से , चुनाव लड़े भी थे डॉ लोहिया उस चुनाव में पराजित तो हुए पर अपनी ज़मानत बचा गए. पटेल की इतनी आलोचना नहीं होती है. नियति ने उन्हें जल्दी उठा लिया और देश एक अत्यंत प्रतिभा संपन्न और दृढ निश्चयी नेतृत्व से वंचित हो गया.यह देश का दुर्भाग्य था.
इधर एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है. सोशल मिडिया पर जो नया इतिहास लेखन शुरू हुआ है, उसी के क्रम में नेहरू के परिवार का एक नया इतिहास सामने आया है. विकिपीडिया एक ऑनलाइन विश्वकोश है. दुनिया भर की जानकारियां समेटे यह विश्वकोश सभी के लिए उपयोगी है. इसमें यह भी सुविधा है कि आप उस पेज से सम्बंधित अगर कोई जानकारी रखते हैं तो संपादित अंश उसमें जोड़ भी सकते हैं. ज्ञान किसी एक व्यक्ति या समुदाय की विरासत नहीं है. यह सबकी सामूहिक विरासत है. एक शरारत के तहत नेहरू के पेज पर यह सम्पादित कर के डाला गया कि नेहरू के पितामह गंगाधर नेहरू एक मुस्लिम थे और उन्होंव बाद में अपना धर्म परिवर्तन कर लिया. नेहरू की वंशावली अफगानिस्तान के किसी मुस्लिम परिवार से जोड़ी गयी और उन्हें अफगानिस्तान से कश्मीर और फिर हिन्दू धर्म में परिवर्तित कर शेष इतिहास जोड़ा गया है। लेकिन इसका इतिहास में कहीं भी ज़िक्र नहीं मिलता। हिन्दू धर्म से इस्लाम में जाने का विवरण तो बहुत मिलता है , पर हिन्दू धर्म में इस्लाम छोड़ कर आने का विवरण बिलकुल नहीं मिलता। इस्लाम से हिन्दू धर्म में आने का सबसे पहला प्रयास स्वामी दयानंद का शुद्धि आंदोलन था। जिसका कोई प्रभाव अफगानिस्तान और कश्मीर में नहीं था। कश्मीरी पंडितों का व्यापक धर्म परिवर्तन हुआ है। कश्मीर का शेख अब्दुल्ला का परिवार और उर्दू के कालजयी शायर अल्लामा इक़बाल के पुरखे कश्मीरी पंडित थे। इसे दोनों परिवार स्वीकार भी करते हैं। अल्लामा इक़बाल की दार्शनिक ग्रन्थ जावेदनामा , जिस अद्भुत दार्शनिक धरातल पर ले जाता है , वैदिक परम्पराओं की भी याद दिलाता है। इलाहाबाद में बहुत से सभ्रांत और प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडितों के परिवार आज़ादी के बहुत पहले से बसे हैं। सर तेज बहादुर सप्रू , कैलाश नाथ काटजू , के एन कौल , आदि के परिवार के लोग अभी भी इलाहाबाद में हैं। अगर नेहरू परिवार , मुस्लिम से हिन्दू बना होता तो रूढ़िवादी हिन्दू समाज उस परिवार को स्वीकार ही नहीं कर पाता। आम्बेडकर अपनी सारी प्रतिभा और मेधा के बावजूद अभी भी पच नहीं पा रहे हैं।
नेहरू ने अपने द्वारा लिखी गयी आत्मकथा माय स्टोरी में अपने परिवार के मूल का विवरण दिया है.. नेहरू, मूलतः कौल थे और कश्मीरी पंडित थे. रोज़ी रोटी की तलाश में यह परिवार कश्मीर से दिल्ली आया और दिल्ली के मुग़ल बादशाह की नौकरी में लग गया. गंगा धर नेहरू ( 1827 – 1861 ) दिल्ली के कोतवाल थे. गंगाधर के एक पुत्र बंसीधर ब्रिटिश सरकार में न्याय विभाग में अधिकारी थे। दूसरे पुत्र नंदलाल नेहरू ( 1845 - 1887 ) , खेतड़ी राज में दीवान थे। यह राजस्थान का वही खेतड़ी राज्य है जिसने स्वामी विवेकानंद को शिकागो स्थित विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लेने की व्यवस्था की थी और स्वामी जी का नाम विविदिशानन्द से बदल कर विवेकानंद रखा था। तीसरे पुत्र मोतीलाल नेहरू ( 1861 - 1931 ) थे। 1857 के विप्लव के कुछ वर्ष पूर्व वह दिल्ली से जयपुर , खेतड़ी और फिर आगरा चले आये. मोतीलाल नेहरू जो जवाहरलाल नेहरू के पिता थे ने आगरा में वकालत शुरू की. जब अंग्रेजों ने आगरा और अवध को मिला कर यूनाइटेड प्रोविंसेस ऑफ़ आगरा एंड अवध बनाया तो उसकी राजधानी हुयी इलाहाबाद. राजधानी होने के कारण , हाई कोर्ट भी इलाहाबाद आ गयी और इस प्रकार मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद आ गए. उस समय उर्दू और फारसी का बोलबाला था. कचहरी की भाषा या तो अंग्रेज़ी थी या उर्दू. आज भी कचहरी और पुलिस की शब्दावली में उर्दू शब्दों की भरमार है. मोतीलाल नेहरू की वकालत चल निकली, और देश के नामी गिरामी वकीलों में गिने जाने लगे. वह 1920 और 1928 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे।
1889 के 14 नवम्बर को जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में हुआ. संपन्न घर के होने के नाते उनकी पढ़ाई लिखाई इंग्लॅण्ड में हुयी और वहीं से बार ऐट लॉ करने के बाद वह इलाहाबाद आये और वकालत का पुश्तैनी पेशा अपनाया. तब तक मोतीलाल नेहरू सार्वजनिक जीवन में कदम रख चुके थे. जवाहर लाल नेहरू ने भी उनका अनुसरण किया और वह पूर्णतः आज़ादी के आंदोलन में कूद गए. राजनीति में विरोध और विचार वैभिन्यता होती ही है. उनका मतभेद, सुभास बाबू से हुआ, जिन्ना से हुआ, लोहिया, जय प्रकाश, और नरेंद्र देव जैसे समाजवादी विचारकों से हुआ. गांधी से भी अंतिम समय में मत वैभिन्य हो गया था. पर यह कोई नयी बात नहीं है. दुनिया भर के आन्दोलनों में यह होता है जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया जीवित होती है. जहां तानाशाही और कुंद दिमागी सोच ही रहती है वहाँ यह नहीं होता है . यह भी दुष्प्रचार ही है , फ़िरोज़ गांधी मुस्लिम थे। जब कि फ़िरोज़ गांधी एक पारसी थे और गांधी उनका सरनेम था। इंदिरा की फ़िरोज़ से शादी हुयी तो वह सरनेम स्वाभाविक रूप से इंदिरा के साथ आ गया। इंदिरा का नाम , इंदिरा नेहरू गांधी था , जो बाद में इंदिरा गांधी हो गया। महात्मा गांधी के सरनेम से इस गांधी का कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही ऐसा कोई दावा किया जाता है।
नेहरू के बारे में जब विकीपीडिया का संपादित अंश जो दुर्भावना से तथ्यों के परे जा कर जोड़ा गया था तो , उस पर स्वाभाविक प्रतिक्रिया हुयी. अगर नेहरू ने अपनी आत्म कथा में अपने परिवार का विवरण गलत दिया है तो, सच क्या है ? सच अगर यह है कि वह मुस्लिम थे तो उसका आधार क्या है.? उनके पुरखे आखिर मुस्लिम थे तो हिन्दू क्यों बने ? आखिर उस समय तो मुस्लिम शासन ही था. और अगर शासन बदला तो, अंग्रेजों का ही आया. इस प्रकार जो शरारत की गयी है वह निंदनीय है.
गूगल नें इस सम्पादन की जो जांच की तो हैरान करने वाले तथ्य सामने आये है. यह भी प्रकाश में आया है कि जिस आई पी एड्रेस से यह जोड़ा घटाया गया था, वह भारत सरकार का है. सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. आलोचना से किसी को आपत्ति नहीं है. संसार का कोई भी व्यक्ति दोष मुक्त नहीं है. पर निराधार और तथ्य हीन आलोचना, आलोचक की क्रेडिबिलिटी ही ख़त्म करती है. नेहरू की कुछ नीतियों के कारण देश को बहुत सी गंभीर समस्याएं झेलनी पड़ीं है, पर आलोचना और निंदा के झोंक में उनके पुरखों और परिवार के बारे में तथ्य हीन बातें की जाय, यह अनुचित और अनैतिक तो है ही एक अपराध भी है.
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