Wednesday, 26 November 2014

Remembering 26 /11 Mumbai / 26 नवम्बर. 2008. स्थान मुम्बई. / विजय शंकर सिंह



26 नवम्बर. 2008. स्थान मुम्बई. 
समुद्र के रास्ते देश की आर्थिक राजधानी को तबाह करने के उद्देश्य से घुसे पाकिस्तानी आतंकवादी. 
कुल मृतक निर्दोष जन 250 लगभग. 
मारे गए आतंकवादी, एक को छोड़ कर सब. जो बचा, वह अज़मल कसाब था. 
मुक़दमा चला. जुर्म साबित हुआ. मुलजिम को मिली सज़ा ए मौत. फांसी पर लटका दिया गया. 
फ़ाइल बंद.

शहीद हुए, आई जी हेमंत करकरे, और उनके साथी. जिनके चित्र और नाम नीचे है. साथ में तीन सेना के जवान भी. एक मेजर उन्नी कृष्णन और दो अन्य. वीर कभी मरते नहीं. इन सब बहादुर जवानों का विनम्र स्मरण.

बहस शुरू हुयी. सुरक्षा के खामियों पर. पुलिस की तैयारियों पर. एन एस जी कंमोंडोस के रेसपोंस टाइम पर. बुलेट प्रूफ जैकेट्स की गुणवत्ता पर.नेवी और कोस्ट गार्ड की नाकामियों पर. गुजरात पुलिस की लापरवाहियों पर. पाकिस्तान के इरादों पर. प्रधान मंत्री के मौन पर. कसाब को परोसे गए बिरियानी पर. राज्य सरकार की असफलताओं पर और भारत सरकार की बेबसी पर.

वे फ़ाइलें जिनमे ये बहसें क़ैद हैं, आज भी सचिवालय के आलमारियों में मकड़ी के जालों के सामान निरर्थक वाग्जाल से अटी पडी हैं. हमें शहीद बहुत प्रिय हैं. शायद इसी लिए उन्हें याद करने का कोई भी अवसर नहीं जाने देना चाहते. कौआ की तरह यह भी देखते रहते हैं कि कौन श्रद्धांजलि देने नहीं आया. जो नहीं आया वह तो देशद्रोही हो ही गया. लेकिन शहादत से आप का सीना भले चौड़ा होता हो, पर उस घर पर क्या बीतती है, यह भुक्त भोगी ही जान सकता है. श्रीमती करकरे अपने पति के शहीद होने के बाद पांच साल ही जी पाईं. सरकार देती भी है बहुत कुछ. पर वह रिश्ता, रिश्ते की गरमाहट और इंसान नहीं लौटा सकती. यहां तक कि सर्व शक्तिमान ईश्वर भी नहीं.

आप को याद होगा. शहीद मेजर उन्नी कृष्णन का शव त्रिवेंद्रम में उनके घर पहुंचा था अंतिम संस्कार के लिए. केरल के तत्कालीन मुख्य मंत्री उनके घर गए थे श्रद्धांजलि देने के लिए. युवा पुत्र की मृत्यु से बड़ा आघात माता पिता के लिए कुछ भी नहीं होता, चाहे मृत्यु कितनी भी गौरव पूर्ण क्यों न हो. मेजर उन्नी कृष्णन के पिता ने उस समय मुख्य मंत्री से मिलने से मना कर दिया. वह शोकाकुल थे. अचुयतानानंदन जो मुख्य मंत्री थे ने कहा कि अगर यह शहीद का घर नहीं होता तो कोई भी नहीं आता. बहुत निंदा हुयी थी इस बयान की. जब श्रद्धा भी फ़र्ज़ अदायगी ही बन जाए तो उस श्रद्धांजलि का कोई अर्थ नहीं है. उन सिपाहियों के घर परिवार की क्या स्थिति होगी अब , मुझे पता नहीं.

एक कथा सुनें. जनरल मांट गोमरी एक अत्यंत दक्ष ब्रिटिश जनरल थे. वे एक सैनिक स्कूल की पासिंग आउट परेड का निरीक्षण कर रहे थे. निरीक्षण के दौरान तन कर खड़े एक युवा सैनिक से उन्होंने पूछा, " तुम देश के लिए क्या कर सकते हो " उत्तर मिला, " मैं देश के लिए जान दे सकता हूँ " जनरल ने एक तमाचा उस जवान को मारा और उसकी बेल्ट खींचते हुए कहा, " तुम्हे देश के जान देने के लिए नहीं, जान लेने के लिए भर्ती किया गया है." जनरल का कथन उपयुक्त था.शहीद होना एक गौरवपूर्ण मृत्यु का आलिंगन है. पर जीवित रह कर विजय प्राप्त करना और उस विजय को देखना, सबसे बड़ा गौरव है.
मुम्बई हमले की कमियों खामियों पर बहुत बहस हुयी. पर कोई भी उल्लेखनीय कार्य ऐसे हमलों को रोकने के लिए नहीं किया गया. 
-vss.


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