Wednesday 26 November 2014

Remembering Sitara Devi / स्मृति शेष सितारा देवी / विजय शंकर सिंह


बनारस का एक मुहल्ला है, कबीर चौरा. शायद यह देश का अकेला और अनोखा मोहल्ला होगा जिससे पद्म पुरस्कार से सम्मानित सबसे अधिक कलाकारों के नाम जुड़े रहे हों. कंठे महाराज, किशन महाराज, गुदई महाराज, छन्नू लाल मिश्र, गिरिजा देवी, आदि आदि भारतीय संगीत कला के शिखर व्यक्तित्व रहे हैं. इसी मोहल्ले के रहने वाले थे, श्री सुखदेव महाराज. सुखदेव महाराज बाद में बनारस छोड़ कर कोलकाता में जा बसे. इस मोहल्ले के अलावा वाराणसी से ही संगीत के क्षेत्र में दो भारत रत्न भी है. एक प्रख्यात सितार वादक, पंडित रवि शंकर, और दुसरे मशहूर शहनाई वादक उस्ताक बिस्मिल्ला खान साहब. उस समय तक, कोलकाता देश का भव्य ललित कला केंद्र बन चुका था. उसी कोलकाता में सितारा देवी का जन्म 8 नवम्बर 1920 को हुआ था. उस दिन धनतेरस था. माता पिता, ने नाम रखा धनेश्वरी और पुकारने का नाम हुआ, धन्नो. माँ, मत्स्या कुमारी नेपाल के एक समृद्ध राजनय परिवार से थी. ललित कलाओं में उनके परिवार का स्वाभाविक रुझान था. खुद सुखदेव महाराज जो थे तो वाराणसी के ब्राह्मण, पर ललित कलाओं में उनकी भी रूचि थी और वह खुले स्वभाव के थे. बाद में धनेश्वरी से इनका नाम पड़ा सितारा देवी.

कोलकाता भारत का एक सांस्कृतिक केंद्र भी था. ललित कला की लगभग हर विधा , गायन, नृत्य, वादन, चित्र कला, मूर्तिकला आदि में नयी नयी प्रतिभाएं नए नए कीर्तिमान गढ़ रही थी. सुखदेव महाराज ने अपनी पुत्री सितारा की प्रतिभा को पहचानते हुए, उनकी शिक्षा दीक्षा, भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के आधार पर दिलाई. नृत्य में इनकी प्रतिभा उभर कर आयी. इन्होंने कत्थक नृत्य शैली को अपनी प्रतिभा के लिए चुना. कत्थक , 6 शास्त्रीय नृत्य कला की एक विधा है, जो उत्तर भारत में विक्सित हुयी. कत्थक में तीन घराने हैं. ये घराने हैं, बनारस, लखनऊ, और जयपुर. घराने मूलतः राज्याश्रय के अनुसार विभक्त हुए है. मूल घराना बनारस ही है. बाद में अवध के नवाबों के द्वारा, विशेष कर नवाब वाज़िद अली शाह के काल में , जिन्हें कत्थक में बहुत रूचि थी, लखनऊ घराना लोकप्रिय हो गया. इसी तरह जयपुर नरेश द्वारा सरक्षित होने के कारण कत्थक का एक घराना वह भी बना. कत्थक मूलतः एक दरबारी नृत्य है. जब कि अन्य शास्त्रीय निर्त्य, भरत नाट्यम, कुचिपुड़ी, ओडिसी, कथकली, मणिपुरी, देव मंदिरों की उपासना या पौराणिक गाथाओं पर आधारित है. कत्थक में भी नृत्य के जो विषय चुने जाते हैं वे भी राधा कृष्ण, या रीतिकालीन परंपरा पर ही आधारित होते है. 


सितारा देवी ने सबसे पहला नृत्य का प्रदर्शन महा भारत की कथाओं के आधार पर 10 वर्ष की आयु में कोल्कता के एक विद्यालय में किया. लेकिन उन्हें प्रसिद्धि मिली, सावित्री और सत्यवान की नृत्य नाटिका से. जिसमे इन्होंने सावित्री की भूमिका में नृत्य किया था. यह एक अलौकिक कथा है. इसके दार्शनिक पक्ष पर, अरविन्द ने एक अद्भुत महाकाव्य सावित्री के नाम से अंग्रेज़ी में लिखा है. उन्होंने इस गाथा के दर्शन पक्ष को छुआ है. बाद में सितारा देवी मुम्बई आ गयीं. मुम्बई फ़िल्म नगरी के रूप में देश और दुनिया में अपना स्थान तब बना रहा था. मुम्बई में सितारा के एक नृत्य शो का जो प्रदर्शन हुआ था, उसके दर्शकों में शामिल थे, गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर, काव्स जी जहांगीर, और सरोजिनी नायडू. गुरुदेव ने उनकी अद्भुद नृत्य कला को सराहते हुए, उन्हें नृत्य साम्राञी के नाम से संबोधित किया. तब तक वह नृत्य कला के संसार में अपना स्थान बना चुकी थीं.

मुम्बई फ़िल्म नगरी थी, आज भी है. 1940 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म में काम किया, फ़िल्म थी, उषा हरण. वाक् फिल्मों का दौर 1936 में आलम आरा के बनने के साथ ही शुरू हो गया था. 1951, में नगीना, 1954 में रोटी, और वतन, 1957 में अनजानी और मदर इंडिया जैसी प्रसिद्ध फिल्मों में नृत्य किये. उन्होंने अभिनय नहीं किया. मदर इंडिया का प्रसिद्ध होली गीत, इनके ही नृत्य पर फिल्माया गया है. इन्होंने के आसिफ से पहला विवाह किया फिर सम्बन्ध विच्छेद होने पर दूसरा विवाह प्रताप बरोट से किया.


सितारा देवी को 1969 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान, 1973 में पद्म श्री, 1995 में कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया. बाद में एक बार इन्हें सरकार ने पद्म भूषन से सम्मानित करने का निमंत्रण भेज जिसे इन्होंने लेने से मना कर दिया. टैगोर द्वारा दिए गए नाम नृत्य साम्राञी को यह अपना सबसे बड़ा सम्मान मानती रहीं.
आज उनका 94 साल में मुम्बई में निधन हो गया. उनके निधन से शास्त्रीय नृत्य परंपरा का एक युग समाप्त हो गया. विनम्र श्रद्धांजलि.

( विजय शंकर सिंह )


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