अजीब विडम्बना है, उन्हें सुरक्षा की ज़रुरत
भाजपा के शासन काल में ही पडी. इस स्वर्ण युग में भी वह किस से आतंकित है ? थोड़ा
सोचना पडेगा. या तो जन पर सच में खतरा है या संपर्कों के भरोसे सुरक्षा लेने की
चाल है. अगर सच में ख़तरा है तो वह लोग क्या इसी सरकार में प्रोत्साहित हो गए ? आदि
आदि सवाल मेरे दिमाग में उठ रहे हैं . एक सवाल यह भी उठ रहा है कि कुछ बाबा लोग अब
अपरिग्रही और अहंकार मुक्त नहीं रहे.वे व्यापारी हो गए हैं.
रामदेव का इतिहास बहुत
पुराना नहीं है। वह लगभग बीस साल पहले योग शिविरों के माध्यम से लोगों को योग के
प्रति जागृत करते रहे। योग के आदि ऋषि पातंजलि के अष्टांग योग विधा के अनुसार
इन्होने योग और स्वास्थ्य के सम्बन्ध में लोगों में नयी चेतना जागृत की। परिणामतः
योग के बहुत से आसान और प्राणायाम की विधियां जो गोपन थीं वह लोगों में बहुत ही
प्रचारित हुईं। योग और आसनों से ही जुड़ा एक पक्ष आयुर्वेद का भी है।
आयुर्वेद रोग के निदान से अधिक उसके रोकने पर अधिक बल देता है। उन्होंने दवाइयों
का कारोबार शुरू किया। इसी क्रम में वे राजनेताओं की शरण में आये। जिसने इस
सन्यासी में राजनीतिक महत्वाकांक्षा का बीजारोपण कर दिया।
उधर दिल्ली में कांग्रेस
शासन के विरुद्ध घोटालों के कारण अन्ना हज़ारे का आंदोलन शुरू हो गया था केंद्र
सरकार के कई घोटाले उजागर हो गए थे। सरकार सीधे निशाने पर आ गयी थी और वह
रक्षात्मक मोड़ में हो गयी थी। तभी किरण वेदी , अरविन्द केजरीवाल आदि इस आंदोलन में कूद पड़े। बाबा का रवैया इस
आंदोलन के बारे में कभी ब्लो
हॉट तो कभी ब्लो कोल्ड रहा। अन्ना आंदोलन जहां भ्रष्टाचार पर केंद्रित था वहीं राम
देव ने
काले धन को मुद्दा बना लिया। काले धन को ले कर बड़ी
बड़ी बातें कहीं गयी। जनता भ्रष्टाचार और काले धन इन दोनों मुद्दों पर आंदोलित थी
ही। भाजपा की रणनीति और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर
कर दिया। जब तक
कांग्रेस सत्ता में थी वह राम देव के आलोचना के केंद्र में रही। सरकार बदली
तो भी कुछ महीनों तक राम देव थोड़ा अलग थलग ही दिखे। हालांकि कि वह अलग थलग
नहीं थे। अब जा कर जब उन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा सरकार ने दी तो उनकी चर्चा
पुनः होने लगी।
मुझे उनके योग और उनके दवाखाने
से कोई शिकायत नहीं है. योग को उन्होंने प्रचारित किया फिर इस प्रचार को कैश भी
किया. उत्तराखंड में काफी
ज़मीनें भी इन्होंने लीं. इस कारण विवादों में भी रहे. लेकिन सरकार बदलते ही जेड
सुरक्षा लेना सरकारी तंत्र का दुरुपयोग है. जेड श्रेणी की सुरक्षा आई बी की रपट के
आधार और खतरे की आशंका के आकलन के अनुसार दी जाती है. निश्चित रूप से आई बी ने
खतरे की आशंका ज़ाहिर की होगी. तभी सरकार ने सुरक्षा दी होगी. वैसे चहेतों को
सुरक्षा देने की परिपाटी सभी दलों में है. दुःख है कि भाजपा की यह सरकार भी देश के
किसी भी दल से चाल, चरित, चिंतन और चेहरे से अलग नहीं
है.
योग बल की भी बात सुन
लीजिये. राम लीला मैदान में बाबा अनशन पर बैठे थे. मुद्दा था काले धन का. एक
सप्ताह के अनशन के बाद पुलिस कार्यवाही हुयी. पुलिस कार्यवाही पर सवाल भी उठे.
उसकी जांच भी हुयी. और कुछ कार्यवाही भी हुयी. लेकिन बाबा जिस परिधान में चुपके से
सरकते हुए पकडे गए, उस से
उनकी प्रतिष्ठा ही गिरी. एक हफ्ते के अनशन में ही वह आई सी यू में दाखिल हो गए. जब
की 78 दिन का
अनशन, चंडीगढ़
के सवाल पर और लगभग ईतने ही दिन का अनशन आंध्र प्रदेश के सवाल पर श्री रामुलु ने
किया था जब ये दोनों बाबा से उम्र में कम थे और योगी भी नहीं थे. अनशन भूखे रहना
ही नहीं है. बल्कि अनशन किसी नेक और वाज़िब प्रश्न पर दृढ मनोबल से किया गया विरोध
है. राम देव के पहले भी इसी मैदान में अन्ना ने अनशन किया था. दर असल बाबा का यह
सारा कार्य सियासत और संतई का एक कॉक टेल है.
अगर इन्हें सुरक्षित रखना
ही है तो सुरक्षा का व्यय जो भी आये इनसे वसूल कर लिया जाए. अपने खर्चे पर सुफक्षा
लेने का भी प्राविधान है. जो सुरक्षा व्यय उठा सकते हैं उनसे इसका खर्च वसूला जाना
चाहिए.
-विजय शंकर सिंह .
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