यह चित्र हमारी धरोहर का है. चंदेलों की अद्भुत विरासत खजुराहो का है जिसे
खर्जुरवाह कभी कहा जाता था. जैजाक भुक्ति प्रदेश, या बुंदेलखंड के
चंदेलों की भूमि की यह विरासत विश्व दाय की सूची में आती है. काम सूत्र में वर्णित
आसनों पर आधारित ये मूर्तियां अपने गर्भ गृह में काम का ही नाश कर देने वाले, शिव जो महाहोगी थे
को भी स्थान दिए हुए है. शिव ने क्रोध के वशीभूत हो कर काम का नाश किया. उन जैसा
महायोगी भी जब साधना में लीन थे तो जो पुष्प बाण कामदेव ने छोड़ा था, उसे शिव की भी साधना
भटक गयी.उन्हें क्रोध आया. वह उस प्रहार को नज़रअंदाज़ न कर सके, और उनके क्रोध ने
कामदेव को दग्ध कर दिया. क्रोध थमा तो, उन्हें लगा यह तो
अनर्थ हो गया. काम को पुनः जीवित किया गया. अब काम स्थूल रूम मैं कहीं हैं या नहीं
पर सूक्ष्म रूप में सर्वत्र विद्यमान हैं. इस कथा से यह भी प्रतीत होता है, काम से शिव को क्रोध
आया, वह उसे इग्नोर नहीं कर सके. खजुराहो के मंदिरों और उनकी दीवारों पर कामरत
युग्म मूर्तियों तथा शिव के मंदिर का क्या दर्शन है, यह फिर कभी पढियेगा
या सोचियेगा इस पर. फिलहाल तो यही सच है कि जीवन और काम अलग नहीं है.
किस डे, एक नया उत्सव मनाया
जा रहा है. चुम्बन उनको तो पसंद है ही जो, इसका प्रदर्शन करने
के लिए बेताब हैं, और उन्हें भी पसंद है जो इसका विरोध संस्कृति और सभ्यता के नाम पर कर रहे
है. मैं अक्सर कहता हूँ, कि सारे कट्टरपंथी लोग एक ही फ्रीक्वेंसी पर सोचते है . तालिबान अक्सर
महिलाओं को क्या पहनें या क्या न पहनें के समादेश जारी करता रहता है. वह लोगों की
व्यक्तिगत जीवनशैली में भी दखल देता है. ऐसा करने के पीछे वह धर्म और संस्कृति की
आड़ भी लेता है. यहां भी यही सोच धीरे धीरे हावी हो रही है. एक तरफ राजनैतिक प्रसार
है तो दूसरी तरफ संस्कृति के तथाकथित शुचिता के वाहक. राम सेने ने जब पहली बार
वैलेंटाइन डे पर तोड़ फोड़ के साथ विरोध की तो, लगा कि तालिबान का
एक हिन्दू संस्करण धीरे धीरे अस्तित्व में आ रहा है. पर न वैल्डन्टाइन् डे का
उत्सव रुका और न ही तालिबानी मनोवृत्ति.
मुझे नहीं पता कि इस
चुम्बन पर्व की शुरुआत कहाँ से हुयी है. परजितनी हैरानी चुम्बन के सारवज्ज़निक
प्रदर्शन पर हैं, उस से अधिक हैरानी इसे रोकने के उद्योग पर है. चुम्बन को अश्लील माना जाय
या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है. पर जहां तक कानूनी दृष्टिकोण का प्रश्न है, आई पी सी की धारा 294 में यह प्रावधान है
कि सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकत करना, एक दंडनीय अपराध है.
जिसे आपत्ति हो वह इस कानूनी प्राविधान का मार्ग क्यों नहीं लेता. लेकिन क़ानून पर
भरोसा कम और बाहुबल और सत्ता पर भरोसा अधिक हो तो ऐसे ही तमाशे होते हैं. अब
चुम्बन लेना देना अश्लील हरक़त माना जाएगा या नहीं यह तो पुलिस जाने या अदालत. इस
पर हम सबके विचार अलग अलग हो सकते हैं.
पर इस अभियान को
करने से रोकने के लिए कुछ लोगों का उद्योग, इस अभियान को रोक तो
नहीं सका,बल्कि इसे और प्रचारित कर गया.ऐसा इस लिए, भी हुआ कि जो रोकना
चाहते हैं, वह भी और जो इस अभियान में शामिल हैं वह भी सिर्फ प्रचार चाहते हैं . दोनों
ही अपने मक़सद में सफल हैं. काम को लेकर, दुनिया भर में
दृष्टिकोण बदल रहे हैं. सेक्स जो कभी वर्जित और गोपन क्षेत्र था, उस पर खुल कर बात हो
रही है. न सिर्फ पुरुष, बल्कि महिलायें भी खुल कर बात कर रही हैं. जो जड़ता थी वह पिघल रही है. कुछ
इसे बेहयाई कहेंगे, कुछ इसे संस्कृति का स्खलन, लेकिन यह एक
परिवर्तन है मात्र. जो समय के साथ साथ हो रहा है. इसका प्रतिविम्ब, सोशल साइट्स और
फिल्मों में देखने को मिल रहा है. आप किस रूप में इस परिवर्तन को लेते हैं, यह आप जानें.
फिल्मों में भी चुम्बन दृश्यों को ले कर परहेज होता रहा है। 1952 में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम बनने के बाद सेंसर प्रथा लागू हुयी। 1973 में राज कपूर की बेहद लोकप्रिय फिल्म बॉबी में ऋषि कपूर और डिंपल पर एक लम्बा चुम्बन दृश्य फिल्माया गया। इसके पहले भी राज कपूर की ही फिल्म मेरा नाम जोकर में एक चुम्बन दृश्य था तो रूसी अभिनेत्री के साथ राज कपूर ने ही दिया था। वैसे हिन्दी सिनेमा में चुम्बन का इतिहास , 1929 से शुरू होता है। यह फिल्म मूक थी और इसका नाम था द थ्रो ऑफ़ डाइस। इसमें चुम्बन दृश्य दिया था , अभिनेता चारु रे और अभिनेत्री सीता देवी ने। सबसे प्रसिद्ध चुम्बन दृश्य था , देविका रानी और हिमांशु रॉय का। फिल्म थी कर्म। यह अधरबन्धन जिसे अंग्रेज़ी में लिपलॉक कहते हैं चार मिनट का था। अब चुम्बन दृश्य आम हो गए हैं।
जो जबरिया किस फॉर लव रोकने का प्रयास कर रहे हैं, वह
सरकार को इसे कानूनन प्रतिबंधित करने की मांग क्यों नहीं करते ? क़ानून
बनवाना और उसे लागू करना कठिन है, पर
हंगामा करना सबसे आसान है. कभी जातिगत वैमनस्यता, घूसखोरी
आदि के खिलाफ सक्रिय होइए मित्रों ! चुम्बन दो लोगों के बीच का निजी मामला है.
सारव्ज़जनिक चुम्बन से देश का कोई नुकसान होता है या नहीं मुझे नहीं मालूम, पर
भ्रष्टाचार से होता है, यह सब को मालूम है.
जैसे साफ़ सड़कों पर सफाई अभियान प्रतीकात्मक है वैसे ही सार्वजनिक जगहों पर चुम्बन
भी प्रतीकात्मक है. यह बिना अधिकार के की जा रही मोरल पुलिसिंग के विरुद्ध है।
-विजय शंकर सिंह
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