Tuesday 8 January 2013

न आसा न राम न बापू, बस ढोंग और ढोंग




न आसा न राम न बापू, बस ढोंग और ढोंग
धर्म क्या सिखाता है ? मर्यादा  नारी का सम्मान  दुष्टों का दलन  और उनका बहिष्कार  आदि आदि . आसाराम बापू ने इनमें से कुछ नहीं सीखा और न जाने क्या अपने शिष्यों को सिखाया होगा . एक अहंकारी व्यक्ति गुरु हो ही नहीं सकता . दामिनी काण्ड पर पूरा देश व्यथित है , और अपनी अपनी तरह से इस आक्रोश को प्रदर्शित कर रहा है . सुप्रीम कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश ने सभी हाई कोर्ट्स को पत्र लिखा है कि फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कर सारे बलात्कार के मामलों की शीघ्र सुनवाई करें . लोग फांसी की सज़ा और ऐसे मामलों में नाबालिग की उम्र घटाने की बात कर रहे है , और यह संत का ढोंग किये बाबा , पीडिता को दोषी ठहरा रहा है . ऐसे व्यक्ति से क्या सीखा जाए जिसे हिन्दू धर्म और दर्शन की मूलभूत जानकारी भी नहीं है . अहंकार इतना कि , जन भावना को कुत्ता कहता है , और स्वयं को हाथी . जिस ने अहंकार का परित्याग नहीं किया वह कैसा संत ? इस ने तो ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जिया . अपने शिष्यों की काली कमाई के दम भर विलासिता का जीवन जीने वाला और कुछ भले हो जाए , पर संत नहीं .

और यह संत है भी नहीं . यह एक कथावाचक है . जिन की कथा सुनाता है , उनसे ही कुछ सीखा होता . इन्हें  न तो राम का आदर्श दीखता है न , कृष्ण का उदात्त प्रेम और चातुर्य , न शिव का विषपायी पन , न दुर्गा की ओज और तेज से भरी आँखें , जो आत ताइयों के लिए कहर बनती है . न बुद्ध की करुणा , न कबीर का विलक्षण विद्रोह , न भक्ति काल का सामाजिक ताने बाने को कसता हुआ सूफी वाद . सिर्फ यही दीखता है कि ताली एक हाँथ से नहीं बजती . दामिनी प्रकरण एक अपराध है , और कानून की भाषा में कहें तो , रेयर आफ द रेयरेस्ट कोटि का .है . ऐसा नहीं है कि देश का पहला बलात्कार है , और आगे नहीं होगा , पर जिस प्रकार से यह अपराध किया गया  है, मैंने अपने पुलिस जीवन के 32 सालों में न तो देखा न सुना  .

आसाराम एक व्यक्ति ही नहीं एक प्रवित्ति  भी हैं .उन की तरह सोचने वाले बहुत से लोग हैं समाज में जो चुप हैं तो सिर्फ इस लिए कि सोशल माध्यमों ने दुनिया समतल कर दी है , और लोग सुबह के अखबार, और टीवी का इंतज़ार अब नहीं करते , अब लोग खुद ही अपने आस पास की ख़बरें दे देते हैं . दामिनी परकरण ने 376 आई पी सी . के अपराध पर ही नहीं , बल्कि , महिलाओं के प्रति पुरुषवादी सोच,
आपराधिक न्याय व्यवस्था , और महिलाओं की सुरक्षा के बारे में एक नयी बहस छेड़ दी है . लोग अपनी बात रख रहें है . और यह प्रसन्नता की बात है कि ,लोगों की सोच , इन तथाकथित धर्म , संस्कृति के ठेकेदारों और राजनेताओं की सोच से अलग है . पहले नेता आगे आते थे  पीछे जनता , अब जनता आगे है और  यह  फिक भी नहीं करती   नेता आ भी रहें हैं या नहीं . यह लोकतंत्र का लोकतंत्रीकरण  है .

अब जन सरोकार के सवालों पर हमें खुद जागना होगा . और अपने रहनुमाओं को एहसास कराना होगा कि , वोट बैंक जैसी कोई चीज़ अब नहीं है . अब या तो 'सुधरो या टूटो '

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