Monday, 7 January 2013

a poem.... कोरे कागज़ पर,





कोरे कागज़ पर,

कोरे कागज़ पर,
वह शब्द  उकेरा करता था ,
तन्हाई में
एक नगर बसाया करता था .
कैसा पागल  मन था ,
सारी सारी  रात ,
दीवारों को
दर्द सुनाया करता था .

रो देता था खुद ही ,
खुद की बातों पर ,
और ,
फिर खुद ही खुद को हंसाया करता था .
जब विरह सताने  लगता तो,
नीर  आँखों में आ जाते ,
और अकेलेपन में ,
वह खाक उड़ाया करता था .

चेहरे से तेरा, सोग,
छुपाता, हंस देता था ,
आँखों में तेरी यादों की नमी,
वह रखता था .

यारों ,
असमय हुआ यह प्यार ,
उसे ले डूबा ,
जो दुनिया को,
प्यार सिखाया करता था .
-vss

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