Thursday, 31 January 2013

A Poem... एकालाप ,



A Poem...
एकालाप ,

घंटों जब बोलता हूँ तो ,
तेरी चुप्पी , कभी कभी ,
असहज सी लगती है मुझे ,

एक अद्भुत एकालाप ,
खुद का खुद से बातें करना ,
कभी अच्छा और कभी बना देता है ,
बोझिल मुझे .

पर तुम ,
खुद तो कभी कहते नहीं कुछ ,
चुप चुप खामोशी से ,
सुनते रहते हो मेरी बातें ,
और जब पूंछता हूँ कुछ , तो 
एक ''जी '' से बातें शुरू और  ख़त्म कर देते हो ,

मैं इस ''जी '' का अर्थ ,
जाने कब से ,
आकाश में उड़ते हुए ,
आवारा बादलों को ताकते हुए ,
अभी भी ढूंढ रहा हूँ .
-vss

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