त्रिवेणी में सरस्वती
इलाहाबाद में कुम्भ मेला चल रहा है .इसे विश्व का सब से बड़ा धार्मिक समागम कहा जाता है . हिन्दू धर्म के सभी पंथ , इस स्थान और अवसर पर एकत्र होते हैं , और आपस में विचार विनिमय करते है . यह अवसर हर 12 वर्षों पर आता है . इलाहाबाद का प्राचीन नाम प्रयाग है . प्रयाग का शाब्दिक अर्थ संगम होता है , जहां पर नदियाँ मिलतीं हैं . इलाहबाद में दो मुख्य नदिया गंगा और यमुना मिलती हैं , और यह दोनों नदियाँ भारतीय संस्कृति की पहचान हैं अतः इनके संगम को प्रयागराज कहा जाता है . मान्यता है , इन्ही के साथ सरस्वती भी मिली है,, पर सरस्वती की कोई धारा यहाँ नहीं दिखती है . लोग सरसवती को एक काल्पनिक नदी के रूप में देखते हैं . जब कि यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी किसी समय में रही है . वेदों की न जाने कितनी ऋचाएं इसी सरस्वती के तट पर कही गयी है .
हिमालय से निकलने वाली बड़ी नदियों में , जो पश्चिमी हिमालय से निकली थी .उन में सरस्वती , सिन्धु ,शतद्रु ,जिसे सतलज कहते हैं ,विपासा (व्यास ), वितस (झेलम ). परुषणी ,(रावी ). असिकनि (चेनाब ), यमुना , दृषद्वती , और लावन्वति नदियाँ हैं .इनमें से ,सरस्वती , दृषद्वती और लावण्यवती यह तीन नदियाँ अब लुप्त हो गयी है . गंगा इस तरफ से नहीं बल्कि, पूर्वी गढ़वाल क्षेत्र से निकली है . सरस्वती के किनारे प्राचीन समय में ,300 नगर और उप नगर बसे हुए थे , जिने सिन्धु सारस्वत सभ्यता के रूप में जाना जाता है . व्यास , झेलम , रावी , और चिनाब नदियाँ सिन्धु के साथ साथ बहती हुयी अरब सागर में गिर जाती हैं। जब कि सरस्वती और उस की अन्य शाखा , यमुना , सतलज , दृषद्वती और लावान्यवती , अलग माध्यम से , हिमालय से निकल कर , अरब सागर में गिरती थीं .सरस्वती इतनी विशाल नदी थी कि , उस का पाट कहीं कहीं 10 किलो मीटर का हो जाता था . बहुत प्राचीन काल में यह नदी कच्छ के रन में गिरती थी ,बाद में जब रन उथला हो गया तो यह अरब सागर , खम्भात की खाडी में गिरने लगी थी 1500 इसा पूर्व में यह नदी लुप्त होने लगी . इस का मुख्य कारण ज़बरदस्त रेतीली आंधियां और भूगर्भीय हलचलें रही हैं .
यमुना जो गंगा से इलाहबाद में मिलती है , वह पहले पूर्व की ओर न बह कर पश्चिम की ओर बहती थी और सरस्वती नदी में पोंटा साहेब , जो अब सिक्खों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है , में मिलती थीं . बाद में भू गर्भीय परिवर्तनों और विशाल धूल भरी आँधियों के कारण , यमुना का मार्ग परिवर्तित हो गया और वर अपने साथ सरस्वती की एक शाखा को सम्मिलित करते हुए पूर्व की ओर मुड़ गयी ऐसा इस लिए भी हुआ कि , उत्तर वैदिक काल में जबरदस्त भूकंप आने और अरावली तथा हिमालय के टेक्टोनिक प्लेट्स के खिसकने के कारण सरस्वती की दो प्रमुख सहायक नदियाँ शतद्रु यानी सतलज और यमुना क्रमशः पश्चिम और पूर्व की ओर खिसक गयीं . इन नदियों के अलग हट जाने और इन के सरस्वती में न मिलने के कारण सरस्वती का प्रवाह मन्द पड़ गया और लुप्त होने लगी . इसी प्रक्रिया में सरस्वती की एक क्षीण धारा यमुना के साथ मिल कर पूर्व की ओर बह गयी .और जब यमुना प्रयाग में मिली तो सरस्वती की उस शाखा के उस में सम्मिलित होने के कारण , यहाँ 3 नदियों का संगम हुआ ..
सरस्वती वैदिक काल की सब से महत्वपूर्ण नदी थी , उसके किनारे अनेक नगर बसे थे . उसके लुप्त होने के कारण , नगर उजड़ने लगे और पूर्व की तरफ लोगों ने पलायन किया जिस से गंगा यमुना दोआब में एक नयी सभ्यता का विस्तार हुआ . इसी प्रकार पश्चिम में जो पलायन हुआ , वह सिन्धु के किनारे हुआ और वहाँ भी सभ्यताएं विक्सित हुईं . सरस्वती जैसी विशालकाय, एवं प्रवाहमयी नदी धीरे धीरे अतीत बन गयी .आज घघ्घर नाम से एक बरसाती नदी सरस्वती के उसी सूखे पाट में बहती है .
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