Thursday 10 January 2013

असमंजस , असहायपन , अनिर्णय....




असमंजस , असहायपन ,  अनिर्णय , दोस्तों, यह शब्दकोश  का पारायण नहीं है . पाकिस्तान की सेना के न्रिशंष कृत्य के बाद,  हमारी सरकार का एक आकलन है . इस कृत्य का जितना भी विरोध और भर्त्सना की जाय कम है . इस की प्रतिक्रया में आक्रोश भी है और लोग आंदोलित भी .कारगिल युद्ध के बाद दोनों देशों ने तय  किया था कि , दोनों लाइन ऑफ़ कंट्रोल को पार नहीं करेंगे औत कूटनीतिक उपायों द्वारा शान्ति बहाल करेंगे .दोनों देशों में इसी कड़ी में आपसी क्रिकेट मैच भी हुए , एक रणनीति भी तय की गयी ,और अमन की आशा जगी . पर परिणाम सब के सामने है .

कितने प्रयास शान्ति के हुए . दोनों देशों के नेता आपस में मिले , शान्ति के विन्दु भी खोजे गए .ताशकंद समझौता , शिमला समझौता , अटल जी की लाहोर बस यात्रा , जेनरल मुशर्रफ की आगरा यात्रा , सब  हुयीं . पर कोई अपेक्षित परिणाम नहीं निकला .ऐसा लगता है , हम शान्ति की राह खोजते रहे , और वह घुसपैठ तथा हमले के लिए रेकी करते रहे . अगर भदेस भाषा में कहें तो वो हमें  बनाते रहे , और हम बनते रहे .

इस घटना पर भी सरकार का रुख स्पष्ट नहीं है . रक्षा मंत्री जी कहते है , यह घटना भड़काने वाली है , विदेश मंत्री कहते  हैं दुखद है , पर न रक्षा मंत्री भड़क रहे हैं , और न विदेश मंत्री अपने दुःख के विरोध में कुछ कह रहे हैं  अगर ऐसी ही घटनाएं आगे आती रही , तो इस का असर सेना के मनोबल पर बहुत विपरीत पडेगा . खबर है कि प्रधान मंत्री जी ने इस पर उच्च  स्तरीय बैठक बुलाया है .शायद कुछ निर्णय हो लेकिन प्रधान मंत्री की चिर परिचित खामोशी का एक लम्बा इतिहास है , और मुझे इस पर संदेह है कि खामोशी टूटेगी भी .

युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं , और युद्ध एक अंतिम विकल्प भी है . पर एकतरफा अमन की आशा का दीप जलाया जाना बंद होना चाहिए . असल में हमारी क्षवि एक नरम राष्ट्र की बन चुकी है . और क्यूँ न बने . अफज़ल गुरु की फांसी का प्रश्न  हो या , कैप्टन कालिया के प्रति पाक सेना के वहशी रवैये की , बंगला देश राइफल्स द्वारा सीमा सुरक्षा बल के 7 जवानों की ह्त्या का मामला हो , किसी भी मसले पर हमने मेरु दंड का प्रदर्शन नहीं किया , एक अजीब सा लिजलिजा पण , टरकाऊ दृष्टिकोण का परिचय  दिया . दुर्भाग्य से देश प्रेम का ढोंग करने वाली भा ज पा का भी दृष्टिकोण कांग्रेस से अलग नहीं रहा . कंदहार विमान अपहरण काण्ड आप सब भूले नहीं होंगे .. पिछले 13 महीने में , 72 बार सीमा का अतिक्रमण पाक सेना ने किया है और हमने क्या किया है , मुझे ज्ञात नहीं है . एक नरम राष्ट्र , और सॉफ्ट टारगेट की क्षवि लिए हम सिर्फ शहीद जवानों को पुष्प गुच्छ ही अर्पित करते रहेंगे .

हम अक्सर  तर्क  देते  हैं कि पाक सेना वहाँ के हुक्मरानों के फैसलों के विपरीत अपने एजेंडे पर चलती है . यह उनका सिरदर्द है . हमें उन के हुक्मरानों  से कोई सहानुभूति नहीं है क्यूँ कि जवान हमारे शहीद हो रहे हैं , सीमाएं हमारी टूट रही हैं . यह तो सोशल मीडिया , और जागरूक समाचार माध्यमों का इतना दबाव है कि सरकार थोड़ा हिल रही है . नेताओं और सरकार को इसे गंभीरता से लेना होगा , आखिर कब तक हम केवल लास्ट पोस्ट बजाते रहेंगे और हथियार झुकाते रहेंगे ....

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