Friday 11 January 2013

संशयात्मा विनश्यन्ति .





संशयात्मा विनश्यन्ति ...
दोस्तों , पाक सेना की कायरता पूर्ण कार्यवाही पर , पूरे देश में असंतोष और आक्रोश है . जितना आक्रोश पाकिस्तान की इस घृणित कार्यवाही पर लोगों को है , उस से ज्यादा अपने नेतृत्व पर है . अब तक क्या सरकार सोच रही है , स्पष्ट नहीं हो रहा है .उम्मीद है सरकार कुछ ऐसा करेगी , जिसे हम उचित ठहरा पायेंगे .

1965 और 1971 में 2 युद्ध भारत और पाक के बीच हुए थे . 1965 के युद्ध में लाल बहादुर शाश्त्री , और 1971 के युद्ध में इंदिरा गाँधी प्रधान मंत्री   थीं . पाकिस्तान के राष्ट्रपति जे . अयूब खां , 1965 में और 1971 में जे . याहिया खां थे . 1965 के युद्ध का एक प्रकरण जो मैंने कहीं पढ़ा है , आप से शेयर करना चाहूँगा . 
युद्ध के शुरू होते ही , जे अयूब खान ने कहा ....
' हम रावलपिंडी से चलेंगे , और अमृतसर में दोपहर का खाना खा कर ,शाम तक दिल्ली पहुँच कर शाम  का भोजन करेंगे।'' . 
उनका आशय था की, रावलपिंडी जो पाक सेना का मुख्यालय है से सुबह चल कर 12 बजे तक अमृतसर जीतते हुए शाम  तक दिल्ली जीत लेंगे . उस युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार हुयी . हार के कारण , जे अयूब खान को पद छोड़ना पडा . विजय के बाद हमारे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शाश्त्री ने जे अयूब के इस जुमले का यूँ उत्तर दिया था ,....
'' जे अयूब साहेब के दोपहर  अमृतसर में नाश्ता करने और दिल्ली में डिनर लेने की बात पर मैंने सोचा कि वह क्यूँ जहमत उठायें , हम ही सुबह के नाश्ते पर लाहोर पहुँच जाएँ और दोपहर रावलपिंडी में उनकी मेहमान नवाजी का लुत्फ़ उठायें .''
दोस्तों, लाहोर पूरी तरह से घिर गया था और चन्द  घंटों की बात थी कि युद्ध विराम हो गया .

यह प्रकरण तब का है जब हम 1962 के युद्ध में चीन के हांथों हार चुके थे . इतनी करारी वह हार थी कि  चीन असम में  तेजपुर तक आ गया था , और उस ने इक तरफ़ा युद्ध विराम की घोषणा की थी . अगर वह चाहता तो अरुणांचल प्रदेश कब्ज़े में कर सकता था . इसी के  बाद हम ने सेना को आधुनिक बनाने का अभियान शुरू किया . और 1965 में दुनिया को हैरान करते हुए पाकिस्तान पर जीत हासिल की थी . 
जब कि उस समय देश की आर्थिक स्थिति खराब थी . यहाँ तक कि खाद्यान्न भी अमेरिका से मंगवाना पडा था .

इसी प्रकार , 1971 में अमेरिका के लाख विरोध के बाद भी इंदिरा गाँधी ने बंगला देश के मुक्ति संग्राम में सहायता की। सोवियत रूस ने हमारी मदद की . इंदिरा गाँधी की दृढ इक्षा शक्ति , मज़बूत नेतृत्व , और कूटनीतिक कौशल ने , इस प्रायद्वीप का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल दिया . 1 लाख पाक सैनिक युद्ध बंदी बनाए गए थे . पर जेनेवा समझौते के अनुसार सभी युद्ध बंदियों को , उचित सुविधा दी गयी और  बाद में पाकिस्तान   भेजा गया . पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका पूरी तरह से था . उस ने अपनी नौ सेना का सातवाँ बड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया था .नौ सेना ने अपना जलवा उस युद्ध में दिखाया था .
उस युद्ध के बाद ही अटल जी ने एक जिम्मेदार विपक्ष के नेता की भूमिका निभाते हुए इंदिरा गाँधी को दुर्गा कहा था .

आज जब पकिस्तान की सेना ने एक कायरता पूर्वक हमले में हमारे जवान का सर काट लिया है, और इस तरह की हरकत  , पहले भी  पाक सेना कर चुकी  है, पर हमारे नेता जब किंकर्तब्यविमूढ़ दीखते हैं तो इतिहास के वह सुनहरे पन्ने याद आते है , जिन का ज़िक्र मैंने ऊपर किया है . आज देश रक्षा तैयारियों में कहीं बहुत आगे है ,हमारी सेना दुनिया की सर्व श्रेष्ठ सेनाओं में से एक है .लेकिन राजनैतिक नेतृत्व  बिखरा बिखरा और भ्रम का शिकार है .' संशयात्मा विनश्यन्ति . संशय विनाश को प्राप्त होता है .सरकार , और समस्त नेत्रित्व को चाहिए कि संशय का परित्याग कर कुछ ऐसे निर्णय लें , जिस से एक नरम राष्ट्र की क्षवि से हम निकल सकें .

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