Saturday, 29 December 2012

कैफ़ी आज़मी -- 'औरत


दिल्ली बलात्कार प्रकरण को ले कर पूरा देश एक है और उद्वेलित है . सरकार जो कुछ दिन आँख मूंदे पडी थी थी ,सोच रही थी की वक़्त के साथ साथ सब कुछ थम जाएगा और आन्दोलन समाप्त हो जाएगा . पर यह आन्दोलन न तो वेतन वृद्धि के लिए है और न ही आरक्षण के समर्थन और विरोध में . यह आन्दोलन है अपने अस्मिता के बचाव के लिए और एक सभ्य , सुसंस्कृत, वातावरण के लिए . सरकार के साथ साथ युवा वर्ग को भी सोचना होगा कि पुरुष वर्चस्व की आदिम मानसिकता का अब समाज में कोई स्थान नहीं है .

प्रसिद्ध शायर कैफ़ी आज़मी ने नारी सशक्तिकरण पर उर्दू में 'औरत 'नाम से एक बेहद सशक्त नज़्म लिखी है . मैंने उसे प्रस्तुत कर रहा हूँ।इसमें उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग है . उनके अर्थ मैं नीचे दे देता हूँ. कैफ़ी साहेब की यह रचना नारी सशक्तिकरण पर केन्द्रित है.
 
उट्ठ मेरी  जान  ! मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे ,
 
कल्ब -ए-माहोल  में  लर्जां  शरर-ए -जंग  है  आज ,
हौसले  वक़्त  के  और  जीस्त  के  यकरंग  हैं  आज ,
आबगीनों  में  तयां  वलवल -ए -संग  हैं  आज ,
हुस्न  और  इश्क  हम -आवाज़ -ओ -हम -आहंग  हैं  आज ,
 
जिस  में  जलता  हूँ , उसी  आग  में  जलना  है  तुझे,
उट्ठ  मेरी  जान  ! मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे .
 
तू  कि बेजान  खिलोनो  से  बहल  जाती  है ,
तपती  आँखों  कि  हरारत  से  पिघल  जाती  है ,
पाऊँ  जिस  राह  में  रखती  है , फिसल  जाती  है ,
बन  के  सीमाब  हरेक  ज़र्फ़  में  ढल  जाती  है .
 
सोजे -सोजे  में  सुलगती  है  चिता  तेरे  लिए ,
फ़र्ज़  का  भेस  बदलती  है , क़ज़ा है तेरे  लिए ,
कहर  है  तेरी  हर  एक  नर्म  अदा  तेरे  लिए ,
ज़हर  ही  ज़हर  है  दुनिया  कि  हवा  तेरे  लिए ,
 
रुत  बदल  दाल  अगर  फूलना  फलना  है  तुझे ,
उट्ठ  मेरी  जान  ! मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे .
 
उस  कि  आज़ाद  रविश  पर  भी  मचलना  है  तुझे ,
उट्ठ मेरी  जान  मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे ,
 
कद्र  अब  तक  तेरी  तारीख  ने  जानी  ही  नहीं ,
तुझ  में  शोले  भी  हैं  पास  अश्क -फ़िशानी  ही  नहीं ,
तू  हकीकत  भी  है , दिलचस्प  कहानी  ही  नहीं ,
तेरी  हस्ती   भी  है  एक  चीज  जवानी  ही  नहीं ,
 
अपनी  तारीख  का  उन्वान  बदलना  है  तुझे ,
उट्ठ  मेरे  जान  मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे ,
 
तोड़  कर  रस्म  का  बुत , बंद -ए -कदामत  से  निकल .
जौफ -ए -इशरत  से  निकल ,वहम -ए -नज़ाक़त  से  निकल ,
नफस  के  खींचे  हुए  हलक -ए -अजमत  से  निकल ,
यह  भी  एक  क़ैद  ही  है , क़ैद -ए -मोहब्बत  से  निकल .
 
उस  कि  आज़ाद  रविश  पर  भी  मचलना  है  तुझे ,
उट्ठ मेरी  जान  मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे ,
 
कद्र  अब  तक  तेरी  तारीख  ने  जानी  ही  नहीं ,
तुझ  में  शोले  भी  हैं  पास  अश्क -फ़िशानी  ही  नहीं ,
तू  हकीकत  भी  है , दिलचस्प  कहानी  ही  नहीं ,
तेरी  हस्ती   भी  है  एक  चीज  जवानी  ही  नहीं ,
 
अपनी  तारीख  का  उन्वान  बदलना  है  तुझे ,
उट्ठ  मेरे  जान  मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे ,
 
तोड़  कर  रस्म  का  बुत , बंद -ए -कदामत  से  निकल .
जौफ -ए -इशरत  से  निकल ,वहम -ए -नज़ाक़त  से  निकल ,
नफस  के  खींचे  हुए  हलक -ए -अजमत  से  निकल ,
यह  भी  एक  क़ैद  ही  है , क़ैद -ए -मोहब्बत  से  निकल .
 
जीस्त  के  आहनी  सांचे  में  भी  ढलना  है  तुझे ,
उट्ठ  मेरे  जान  ! मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे .
 
ज़िंदगी  जेहाद  में  है , सब्र  के  काबू  में  नहीं ,
नब्ज़ -ए -हस्ती  का  लहू  कांपते  आंसू  में  नहीं ,
उड़ने -खुलने  में  है  नकहत , ख़म -ए -गेसू  में  नहीं ,
जन्नत  एक  और  है  जो  मर्द  के  पहलू में  नहीं ,
 
राह  का  खार  भी  क्या  गुल  भी  कुचलना  है  तुझे ,
उट्ठ  मेरे  जान  मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे.
 
तोड़  कर  अजम -ए -शिकन ,दगदग -ए -बंद  भी  तोड़ ,
तेरी  खातिर  है  जो  ज़ंजीर , वाह सौगंध  भी  तोड़ .
तौक  यह  भी  कि , ज़मरुद का  गुलुबन्द  भी  तोड़ ,
तोड़  पैमाना -ए -मरदान -ए -खिरमंद भी  तोड़ ,
 
बन  के  तूफ़ान  छलकना  है ,उबलना  है  तुझे ,
उट्ठ  मेरी  जान  मेरे  साथ  ही  चलना  है  तुझे .
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कल्ब -ए-माहोल ---ह्रदय ; लरजाँ--- कम्पित; आबगीनों -- शराब की बोतल ; वलवल-ए -संग --पत्थर की उमंग  ; हम आवाजों हम आहंग -- एक स्वर और एक लब रखने वाले ; सीमाब -- पारा ; जेहाद -- संघर्ष ; नकहत --महक ; अश्कफिशानी-- आंसू बहाना ; बंद -ए -कदामत --प्राचीनता के बंधन ; जोफ -ए -इशरत --ऐश्वर्य की दुर्बलता ; वहम-ए-नजाकत -- कोमलता का भ्रम ; नफस--आकांछा  ; हलक-ए -अजमत -- महानता का भ्रम; अजम शिकन --संकल्प भंग करने वाला ;दगदग-ए-पंद-- उपदेश की आशंका ; पैमाना -ए -मरदाना -ए -खिरदमंद --समझदार पुरुषों के मापदंड ;  जुहरा--शुक्र गृह वेनुस; परवीन --कृतिका नक्छत्र , यह दोनों शुक्र गृह और कृतिका सौंदर्य के प्रतीक हैं.; गर्दूं--आकाश 

1 comment:

  1. कामरेड कफी साहब की बात ही निराली हे कालजयी रचनाये हे उनकी ..आपका शुक्रिया साझा करने का ..दोस्तों सन २०१३ दामिनी वर्ष के रूप में मनाया जाए ..महिलाओ को उनके अधूरे अधिकार दिलाये जाये .बलात्कार के खिलाफ कड़े कानून बनाये जाए .शिक्षा /नौकरियों/लोक सभा /संसद में ५०% आरक्षण महिलाओ को दिया जाए हर जाति और हर धर्म की महिला शामिल हो अब सत्ता महिलाओं को सोंप दो हमने क्या दिया हे युद्ध ,हिंसा नफरत और बलात्कार ..?विश्वास करे दुनिया को बेहतर महिलाये ही बनाएगी .

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