A Poem..
धीरे धीरे शाम
ढलेगी
धीरे धीरे शाम
ढलेगी
धीरे धीरे चाँद खिलेगा
धीरे धीरे बादल घेरेंगे ,
धीरे धीरे उमस
बढ़ेगी
धीरे धीरे आँखे छलकेंगी
धीरे धीरे फिर
नीर बहेगा .
धीरे धीरे तेरी याद आयेगी .
रात घिरेगी धीरे धीरे ,
चाँद चलेगा धीरे धीरे ,
वक़्त कटेगा धीरे धीरे ,
एक आग है
मन में धीरे धीरे ,
धुंआ उठेगा धीरे धीरे
तेरी याद आयी
फिर धीरे धीरे ,
कसक बढी फिर धीरे धीरे
धीरे धीरे हुआ
सवेरा ,
धीरे धीरे छंटा अन्धेरा
धीरे धीरे आस
मिटी अब ,
धीरे धीरे बढी थकन अब
धीरे धीरे मायूस हुआ दिल ,
धीरे धीरे रहा
मैं रीता
धीरे धीरे तेरी याद बढी फिर
शब् बीती, प्यारे धीरे धीरे
दिन गुज़रेगा धीरे धीरे ,
खो रहा हूँ
, धीरज धीरे धीरे
कट रही उम्र भी, धीरे धीरे
यादें बढ़ती, धीरे धीरे
तुझे खोजता, धीरे धीरे
सब कुछ टूटा, धीरे धीरे
धीरज कितना धरूँ प्रिये, मैं ,
मन को कितना थामूं , अब
जब भी तुझ
को सोचा, मैंने
एक खामोश सदा
सी आयी
दिन बीता और
रात भी बीती
शीत , ग्रीष्म , बरसात भी बीती
बीता सब कुछ
, तेरी याद न
बीती
एक अजब आस
है दिल में
जिस का दिया जला रखा है
.
संजो रहा हूँ
दीप शिखा मैं
,
आलोकित है जो
इस तम में
छीज रहा है
धीरज अब तो
.
धीरे धीरे ही
सही ,आओ तो
प्रिये .
अब मान भी
जाओ धीरे धीरे
-vss
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