Saturday, 22 December 2012

A Poem.. धीरे धीरे शाम ढलेगी






A Poem..
धीरे धीरे शाम ढलेगी

धीरे धीरे शाम ढलेगी
धीरे धीरे चाँद खिलेगा
धीरे धीरे बादल घेरेंगे ,
धीरे धीरे उमस बढ़ेगी
धीरे धीरे आँखे छलकेंगी
धीरे धीरे फिर नीर बहेगा .
धीरे धीरे तेरी याद आयेगी .

रात घिरेगी धीरे धीरे ,
चाँद चलेगा धीरे धीरे ,
वक़्त कटेगा धीरे धीरे ,
एक आग है मन में धीरे धीरे ,
धुंआ उठेगा धीरे धीरे
तेरी याद आयी फिर धीरे धीरे ,
कसक बढी फिर धीरे धीरे 

धीरे धीरे हुआ सवेरा ,
धीरे धीरे छंटा  अन्धेरा
धीरे धीरे आस मिटी अब ,
धीरे धीरे  बढी  थकन अब
धीरे धीरे मायूस हुआ दिल ,
धीरे धीरे रहा मैं रीता
धीरे धीरे तेरी याद बढी  फिर

शब् बीती, प्यारे धीरे धीरे
दिन गुज़रेगा धीरे धीरे ,
खो रहा हूँ , धीरज धीरे धीरे
कट  रही  उम्र  भी,  धीरे धीरे
यादें बढ़ती, धीरे धीरे
तुझे खोजता, धीरे धीरे
सब कुछ टूटा, धीरे धीरे

धीरज कितना धरूँ प्रिये, मैं ,
मन को  कितना थामूं , अब
जब भी तुझ को सोचा, मैंने
एक खामोश सदा सी आयी
दिन बीता और रात भी बीती
शीत , ग्रीष्म , बरसात भी बीती
बीता सब कुछ , तेरी याद बीती

एक अजब आस है दिल में
जिस का दिया जला रखा है .
संजो रहा हूँ दीप शिखा मैं ,
आलोकित है जो इस  तम में
छीज रहा है धीरज अब तो .
धीरे धीरे ही सही ,आओ तो प्रिये .
अब मान भी जाओ धीरे धीरे
-vss

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