A Poem....
वक़्त से कुछ न कहा, मैंने
वह आया, और लौट गया.
कहाँ रोका था, मैंने, उन रास्तों को भी ,
चल कर , अब तक , जिन पर,,
जाने कितने मुसाफिर आये, और चले गये
दिन निकले और ढल गए
रातें भी ख़ामोशी से आयी
और चुपचाप चलती बनी ,
चाँद ने भी, मुझसे, कुछ नहीं कहा
रात भर,आँखें बचाकर, मुझ से ,
चमकता रहा .
छुप छुप कर बादलों के बीच ,
मुझी को बहलाता रहा .
और वक़्त ,
गुज़रता रहा निरपेक्ष भाव से,
एक, तुम क्या गये
दुनिया, बदल गयी मेरी
लेकिन मैं फिर, भी, उसी जगह खड़ा हूँ
एक ना'तमाम उम्मीद लिए ,
,जहाँ तुम छोड़ गए थे मुझे,,
इस प्रतीक्षा में, कि, शायद
कभी, किसी बहाने से, तुम लौट आओ....
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