Tuesday 22 September 2020

हरिवंश जी की आत्मग्लानि या कुछ और ? / विजय शंकर सिंह

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जी ने उपराष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा है कि, " वह राज्यसभा में जो कुछ हुआ उससे बहुत दुख हुआ है. वह पूरी रात सो नहीं पाए. वह एक दिन का उपवास रखेंगे। " 
ऐसी आत्मग्लानि होती है जब दबाव में कोई ऐसा निर्णय लेना पड़ता है, जो आत्मा को गवारा नहीं रहता है तो। अब यह मुझे नहीं पता कि रातभर सो न सकने का कारण यही आत्मग्लानि है या कुछ और। 

राज्यसभा में हुआ हंगामा तो निंदनीय है ही और अब, 8 सांसदों के निलंबन के बारे में, जो भी उचित समझा सभापति ने, वह निर्णय ले भी लिया। पर एक सवाल बराबर हरिवंश जी को कचोटता और संसदीय कार्यवाही के जानकारों को उद्वेलित करता रहेगा कि, कि जब मतविभाजन की मांग की गयी तो मतविभाजन क्यों नहीं कराया गया ! राज्यसभा की रूल बुक यह कहती है कि, मतविभाजन की मांग यदि एक भी सदस्य करता है तो, मतविभाजन कराया जाना चाहिए।  

हरिवंश जी को सदन को यह बताना चाहिए कि, आखिर किस मजबूरी या किन कारणों से उन्होंने मतविभाजन की मांग किये जाने पर भी किसान बिलो में मतविभाजन की प्रक्रिया नहीं अपनाई । 

यह कहा जा रहा है, सदन में हंगामा हो रहा था तो, मतविभाजन सम्भव नहीं था। अतः ध्वनिमत से वोटिंग करायी गयी। लेकिन जब हंगामा हो रहा था, एक दूसरे की बात सुनना और समझना सम्भव नहीं था तो, फिर ध्वनिमत की ध्वनियां, आएस और नो कैसे सुनाई पड़ी ? सदन को पहले व्यवस्थित यानी आर्डर में लाने के बाद ही मतदान कराया जाना चाहिए था। सबको पता है कि सत्तापक्ष राज्यसभा में अल्पमत में है, उसके सहयोगी भी उससे इस विंन्दु पर अलग हैं। अतः मतविभाजन होता तो, यह विधेयक गिर जाता। 

पर इसे पास तो कराना ही था। यह दबाव तो इसी से स्पष्ट है कि, रविवार को सदन बुलाया गया और निर्धारित समय के बाद भी उसे बिना विपक्ष को भरोसे में लिये बढ़ाया गया। जब यह इरादा बन जाता है कि यह काम तो करना ही है तो फिर नियम कानून तो अप्रासंगिक हो ही जाते हैं। जिन सदस्यों ने हंगामा किया वे निलंबित हैं। उन्हें और भी जो दंड देना है वह सदन या सभापति दे सकते हैं। पर उपसभापति ने जो नियम रुलबुक का उल्लंघन किया है और एक ऐसा कानून जो करोड़ो किसानों के जीवन से जुड़ा है अवैध रूप से पास करा दिया है, इस अपराध का दोषी कौन है और उसे क्या सज़ा मिलेगी ? 

( विजय शंकर सिंह )

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