Wednesday 16 September 2020

कविता - उन्हें नहीं मालूम / विजय शंकर सिंह



उन्हें नहीं मालूम
कितने प्रवासी कामगार,  
सड़कों पर अपने बंद कल कारखानों से 
वापस घर जाते हुए 
घिसट घिसट कर मर गए। 

उन्हें यह भी नहीं मालूम कि, 
आखिर थे कितने मज़दूर, 
जो निकले थे अपने घरों के लिये, 
पहुंचे भी वे अपने घरों को, 
या अब भी भटक रहे हैं सड़कों पर, 
जंगलों में, या फिर टोल नाकों पर। 

उन्हें यह भी नहीं मालूम, 
कितनो की नौकरिया, 
8 नवम्बर 16 की रात 8 बजे 
जब एक मास्टरस्ट्रोक की घोषणा हो रही थी, 
तब से अब तक नहीं रहीं। 

कितने किसान, 
किन किन कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं, 
और यह सिलसिला अब भी जारी है, 
यह भी उन्हें नहीं मालूम। 

उन्हें नहीं मालूम, रात 12 बजे 
बड़ी उम्मीदों के साथ,  
घँट घड़ियाल बजा कर लागू की गयी, 
एक देश एक टैक्स योजना , 
जीएसटी से व्यापार पर 
क्या सार्थक प्रभाव पड़ा और 
इसके दुष्परिणाम क्या हुए। 

उनके पास 2016 के बाद से 
बेरोजगारी के सरकारी आंकड़े नहीं है, 
या उन्होंने 
इन डरावने आंकड़ो पर
रोक लगा दी है, 
अपने ख्वाबगाह में आने पर 
ये बदबख्त आंकड़े, 
ख्वाबगाह में कहीं खलल न डाल दे।

कह दिया कारकुनों से, 
अब न इन्हें इकट्ठा करो, 
और न अयाँ करो इन्हें, 
बस बस्ता ए खामोशी में 
बांध कर रख दो,
कमबख्त, यह चैन से,
गुफ्तगू मन की, करने भी नहीं देंते। 

और तो और, 
जब चीन घर मे घुस कर एक कमरे में, 
अपना ठीहा मज़बूत कर रहा था, 
तब कह रहे थे वे, कि, 
घर महफूज है, और 
न तो कोई घुसा है 
और न तो घुसा था। 

उन्हें यह भी नहीं पता कि 
वह आदमी जो उन्हें यह किस्सा सुना गया कि, 
पहले ह्वेनसांग तुम्हारे गांव गया 
फिर मेरे और 
यह सब लिख कर रख गया था,
सच कह रहा है या बस, 
हर बार की तरह 
इस बार भी भरमा रहा है। 

गनीमत है 
ह्वेनसांग ने यह नही लिख छोड़ा था कि, 
हे शी, 
2014 के बाद एक महामानव बुद्धभूमि  मे, 
'अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा,
हिमालयो नाम नगाधिराजः' के पार
होगा अवतरित।

तुमसे उसकी गाढ़ी छनेगी भी खूब,
जब मिले वह इत्मीनान से तुम्हे,
तो, बताना उसे, 
तुम्हारे गांव कभी ह्वेनसांग आया था, 
वह इसी में खुश हो जाएगा, 
और तान देगा, वितान माया का। 

उन्हें नहीं मालूम, 
सचमुच उन्हें कुछ भी नहीं पता, 
इतनी बेखयाली से तो 
घर भी नहीं चलता मित्रो, 
जैसे यह मुल्क चलाया जा रहा है ! 
हे ईश्वर उन्हें क्षमा कर दो, 
वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं !!

( विजय शंकर सिंह )

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