Thursday 7 March 2019

सरकार से सवाल पूछने पर भीड़ हिंसा एक प्रतिगामी मनोवृत्ति है / विजय शंकर सिंह

गाय के नाम पर तो भीड़ हिंसा होती ही थी औऱ अब भी जारी है, पर अब न्यू इंडिया में बेरोजगारी की बात कहने पर भी भाजपा के लोग मारपीट करने लगे हैं ! उद्देश्य, सरकार से सवाल मत पूछो।  विश्व गुरु के महापद की ओर बढ़ता हुआ यह नया भारत, मुबारक हो, किसे कहूँ, समझ नहीं पा रहा हूँ। मुजफ्फरनगर में एक व्यक्ति द्वारा यह कहने पर कि बढ़ती बेरोजगारी के लिये सरकार जिम्मेदार है, उस व्यक्ति से भीड़ ने मारपीट की ।

गाय के साथ भावनाओं के जुड़ाव का धार्मिक और आस्थागत आधार तो है पर किसी सरकार के साथ भी क्या वही भावनात्मक और आस्थागत जुड़ाव कुछ लोगों का होता जा रहा है ? सरकार अमूर्त होती है उसके साथ प्रोफेशनल जुड़ाव होना चाहिये न कि भावनात्मक और आस्थागत जुड़ाव। सरकार और सरकार के मुखिया के साथ भावनात्मक और आस्थागत जुड़ाव सरकार को जनपक्षधर नहीं बल्कि तानाशाह बना देती है।

आखिर सरकारें चुनी क्यों जाती है ? यह सवाल अकादमिक हो सकता है पर राजनीति शास्त्र की मोटी मोटी अकादमिक और टेक्स्ट बुक के जंजाल में पड़े बिना ही ज़रा सोचिएगा तो आप हैरान हो जाएंगे कि यह सरकार चुनी किस लिये गयी थी और इसने किया क्या है ?

सरकार के वायदों की फेहरिस्त जिसे संकल्पपत्र के नाम से जाना जाता है खूबसूरत ग्लेजी कागज़ का मोहक टुकड़ा ही नहीं है कि उसे रॉकिंग कुर्सी पर गरम एक्सप्रेसो कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ पढा जाय और पढ़ कर बस शीशे की किताबों भरी आलमारी में सज़ा कर रख दिया जाय। वह जनता से राजनीतिक दलों का किया गया वादा होता है कि अगर वे अब चुन कर आये तो यह यह वादे पूरा करेंगे। अतिरेक भरे वादे करना और फिर उन्हें भूल जाना भी एक मानवीय स्वभाव जन्य भूल है, यह तर्क भी अपनी जगह दुरुस्त है, तो ऐसे बेवफाई भरे आचरण की निंदा करना भी एक मानवीय स्वभाव है।

हम जो अक्सर सरकार की निंदा करते रहते हैं और कुछ मित्र इस निंदा के खिलाफ भी फतवे जारी कर के मेरी ही खिंचाई करते हैं के लिये मेरा यही कहना है कि वे पहले वायदों की फेहरिस्त पढें और फिर मेरी बात सुनें। राजनिन्दा या सरकार की आलोचना करना, जनता का दायित्व और कर्तव्य है और भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में सबसे प्रमुख मौलिक अधिकार है। यह सरकार का एहसान नहीं है । यह समाज के विकसित होते हुये वैचारिक खुलेपन का नतीजा है।

भारतीय संदर्भ में यह कोई नयी चीज नहीं है। वेदों से लेकर उपनिषदों तक संदेहों और उसके निवारण पर खुल कर बात हुयी है। जिस संस्कृति में ईश्वर के अस्तित्व पर प्रथम दिन से ही प्रश्न उठाए गए हों, जहां विष्णु को भृगु की लात मारने और ईश्वर द्वारा इस घटना पर भी मुस्करा कर सह लेने के उदाहरण मौजूद हैं, वही सरकार की आलोचना भीड़ हिंसा का कारण बन जाय तो यह सोचना पड़ता है कि हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि पीछे लौट रहे हैं। यह भयानक है और इसे रोकना होगा।

© विजय शंकर सिंह

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