Friday 22 March 2019

विश्व प्रसन्नता सूचकांक और भारत - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

विश्व प्रसन्नता सूचकांक, वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की ताज़ी रिपोर्ट आ गयी है। और हम इस सूची में और नीचे खिसक गये हैं । आंनद और प्रसन्न रहने की परंपरा जिस संस्कृति की आत्मा में ही रची बसी हो वह साल दर साल से इस सूचकांक में पिछड़ता जाए तो आश्चर्य होता है। इस सूचकांक में पिछड़ने का क्रम 2013 से लगातार है। यह आंकड़ा देखिये। 2013 में हमारा रैंक 117 वें पर था जो लगातार खिसकते हुए 2016 में 118, 2017 में 122, 2018 में 133, और अब जब 2019 के आंकड़े संयुक्त राष्ट्र संघ ने अब जारी किए तो हम 140 वें रैंक पर आ गए है। 6 साल के आंकड़ों में हम 117 से खिसक कर 140 पर आ गए और यह आंकड़े केवल 156 देशों से सम्बंधित है। दुनिया के केवल 16 देश हमसे नीचे हैं।

दुनियाभर के सबसे खुशहाल देशों के बारे में इस सूचकांक सम्बंधित आंकड़े बनाने की प्रथा 2011 से शुरू हुआ। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के अधिवेशन में प्रस्ताव संख्या 65/309 का अनुमोदन किया जिसमें दुनियाभर के देशों की खुशहाली का पैमाना तय करके एक इंडेक्स बनाने की बात तय हुयी। 2 अप्रैल 2012 को संयुक्त राष्ट्र की एक उच्च स्तरीय बैठक जिसकी अध्यक्षता संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने की थी, ने सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी के अनुपात में हैप्पीनेस इंडेक्स निकालने का एक सूत्र तय किया गया। इस कमेटी के एक सदस्य देश भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले भी थे। जीडीपी से जनता की समृद्धि का आकलन कर के खुशहाली का जो पैमाना तय किया गया वह आर्थिक आधार पर आधारित है। ऐसा माना गया कि मनुष्य की आर्थिक संपन्नता और आर्थिक स्वतंत्रता उसके खुशहाली का आधार विंदु है। अत्यंत सम्पन्न व्यक्ति भी दुखी हो सकता है और विपन्नता में भी खुश रहा जा सकता है, ऐसी दार्शनिक बातें भी कही जाती हैं पर यूएनओ ने जो खुशहाली इंडेक्स बनाया उसे जीडीपी से ही जोड़ा गया है। यानी यूएनओ के अनुसार आर्थिक समृद्धि खुशहाली का एक मज़बूत आधार है। यह सूचकांक इसी मुख्य आधार पर आधारित है।

पहली विश्व खुशहाली रिपोर्ट 1 अप्रैल 2012 में तैयार की गयी और यह उसी कमेटी के सामने प्रस्तुत की गयी जिसके द्वारा खुशहाली इंडेक्स के पैमाने तय किये गए थे। रिपोर्ट में खुशहाली के कारण, खुशहाली की स्थिति, और आर्थिक सुधार और समृद्धि के लिये दुनियाभर के देशों द्वारा किये गए प्रयासों का आकलन किया गया। 2013 में पहली बार ये आंकड़े सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किये गये और तब से ये आंकड़े प्रत्येक वर्ष, मार्च के अंत मे जारी किये जाते हैं। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट की हर साल की कार्यवाही संयुक्त राष्ट्र संघ की वेबसाइट पर उपलब्ध है जिसे वहां जाकर पढा जा सकता है। यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन का एक वार्षिक दस्तावेज है जो हर साल छपता है। इसमें खुशहाली से जुड़े कई लेख, अध्ययन, शोधपत्र और आंकड़े दिये गये रहते हैं। इस संबंध में यदि आप और अधिक अध्ययन करना चाहते हैं तो इस वेबसाइट का भ्रमण कर सकते हैं।
2019 के नवीनतम आंकड़े और रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश माना गया है। फिनलैंड को यह दर्जा दूसरी बार लगातार मिला है। 2018 में भी उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। फिनलैंड क्षेत्रफल के लिहाज से यूरोप का आठवां सबसे बड़ा राज्य है जिसका क्षेत्रफल 3 लाख 38 हज़ार 424 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या केवल 52 लाख है। यहां प्रति व्यक्ति आय 43,482 डॉलर है। फिनलैंड के बाद, डेनमार्क, नार्वे, आइसलैंड और नीदरलैंड का नाम है।

यूएन ने खुशहाली मापने के मापदंड भी बनाये हैं। जिसमे मुख्य रूप से प्रतिव्यक्ति आय, प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, व्यक्ति की स्वस्थ और जीने की अवधि यानी लाइफ एक्सपेंटेंसी, जीवन स्तर बदलने की सुविधा और स्वतंत्रता, सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक व्यवहार, शासन प्रशासन में भ्रष्टाचार आदि मापदंड हैं। साथ ही व्यक्ति की मनोदशा, उसकी जीवन शैली, ज़िंदगी जीने के अंदाज़ और मानवीय सुख आदि के बारे में भी आंकड़े एकत्र कर सांख्यिकीय गणना से यह अनुमान लगाया जाता है कि किस देश का समाज आम तौर पर कितना खुशहाल है और जीवंत है। सर्वे में इस विंदु पर भी आंकड़े जुटाए जाते हैं कि चिंता, उदासी, क्रोध आदि मनोभावों पर कितना असर पड़ा है और कितनी कमी या वृध्दि हुयी है।

आश्चर्यजनक तथ्य है कि इस इंडेक्स में पाकिस्तान 67 वें स्थान पर है। चीन 93 और बांग्लादेश 125 वें स्थान पर है, । दुनिया मे सबसे दुखी देश सूडान है जो 156 वें स्थान पर है, फिर उसके ठीक ऊपर मध्य अफ्रीकी गणराज्य 155 वे स्थान पर और अफगानिस्तान, तंजानिया और रवांडा क्रमशः 154, 153 और 152 वें स्थान पर हैं। दुनिया का सबसे अमीर देश माना जाने वाला अमेरिका 19 वें स्थान पर है।

जिस गति से हमारी रैंकिंग 2013 से गिर रही है अगर उन मानकों को जिसके आधार पर यह सर्वे किया जाता है को सुधारा नहीं गया तो अगले पांच साल में हम कहीं और नीचे न सरक जांय। 2016 के बाद जो आर्थिक सूचकांक आये हैं उनमें हर साल कमी आ रही है। यह तो तब है जब सरकार के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। 2016 के बाद से जीडीपी के दर में गिरावट आयी है। 2016 के बाद बेरोजगारी के आंकड़े सरकार ने छापना बंद कर दिए हैं। किसान, मजदूर, युवा सभी किसी न किसी मुद्दे पर आंदोलित हैं। सरकार ने जो सपने 2014 के अपने संकल्पपत्र मे दिखाए थे, वे अब तक सपने ही हैं। सामाजिक सद्भाव में परस्पर विश्वास की जगह अविश्वास पनप गया है। स्वभाव में ज़िद और अहंकार आम हो रहा है। कुल मिलाकर जो स्थिति बन रही है वह खुशहाली सूचकांक की स्थिति को प्रमाणित ही करती है।

भारतीय समाज में आनन्द, उत्सव, मस्ती की एक सनातन परंपरा रही है। समाज मे हर व्यक्ति को उसकी मर्जी से जीने और जीवन का आनंद उठाने देने की प्रथा रही है। भारतीय समाज मे जितने पर्व और त्योहार मनाये जाते हैं उतने दुनिया की किसी सभ्यता संस्कृति और समाज में नहीं मनाये जाते हैं। हर पर्व और त्योहार की अपनी विशिष्टता होती है, अपनी खूबी है, अपना दर्शन है और अपनी परंपरा है। धर्म भी उन परंपराओं पर कभी कोई नियंत्रण नहीं रखता है। सच तो यह है कि सनातन धर्म मे ईश्वर और धर्म, समाज को भयग्रस्त करने का कभी माध्यम या समर्थक रहा ही नहीं है। ईश्वर से कभी डरने की बात की ही गयी है। ईश्वर के अस्तित्व को प्रारंभ से ही ज़ोरदार और तार्किक चुनौतियां दी जाती रही हैं। ईश्वर से एक मित्र की तरह खुशियां बांटी गयी और उससे झगड़ने, रूठने, मनाने, और प्यार करने के ढेरों उदाहरण प्राचीन वांग्मय से लेकर आज तक के साहित्य में  मिल जाएंगे। चार दिन की ज़िंदगी है, हंस खेल के गुज़ार दे का दर्शन ही जीवन का संचारी भाव रहा है। और ऐसा ही समाज जब दुनिया के खुशहाली पैमाने में साल दर साल खिसकता नज़र आता है तो यह दुःखद तो है ही हैरान भी करता है।

भौतिक प्रगति खुशहाली का मापदंड है या आत्मिक प्रगति ? यह दार्शनिक सवाल बहुत ही पुराना है। लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी उठ खड़ा हो जाता है कि आर्थिक संपन्नता या आर्थिक सुविधा के अभाव में क्या कोई खुश रह सकता है ? अक्सर ' जब आवे संतोष धन ' की बात कही जाती है पर आर्थिक अभाव की तुलना में केवल मिथ्यालोक में पसरे संतोष धन को ही सुख, प्रसन्नता और खुशहाली का कारण कैसे कहा जा सकता है यह मुझे समझ मे नहीं आ रहा है। यूएन ने जो पैमाने बनाये हैं उनका आधार ही आर्थिक निर्भरता है। समाज और लोग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और एक ऐसे राज्य में रहेंगे जो अपने नागरिकों को भूख, भय से दूर रखते हुए, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य की कम से कम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सन्नद्ध, प्रतिबद्ध और तत्पर रहेगा तभी लोग और समाज खुशहाल महसूस करेंगे और रह पायेंगे। समाज मे शांति और समरसता बनी रहे, खुशहाली का एक बड़ा मापदंड यह भी है। आर्थिक समृद्धि की गलाकाट प्रतियोगिता से सम्पन्न हुआ समाज सुखी, और खुशहाल दिखता तो है पर वह होता नहीं है। खुशहाली निश्चिंतता का परिणाम है और निश्चिंतता तब तक संभव नहीं है जब तक कि लोग, समाज और देश आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और भविष्य की दुश्चिन्ताओ से मुक्त न हों।

© विजय शंकर सिंह

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