Tuesday 17 October 2023

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की शिकायत को सदन की आचार समिति Ethics committee के पास भेजा / विजय शंकर सिंह

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की शिकायत को सदन की आचार समिति के पास भेजने के साथ, यह पैनल फिर से खबरों में है। बीजेपी एमपी, निशिकांत दुबे ने टीएमसी एमपी, महुआ मोइत्रा पर संसद में सवाल पूछने के लिए एक बिजनेसमैन से पैसे लेने का आरोप लगाया है।

निशिकांत दुबे द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए, महुआ मोइत्रा ने कहा है कि, लोकसभा अध्यक्ष को उनके खिलाफ कोई भी प्रस्ताव शुरू करने से पहले निशिकांत दुबे और अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ लंबित विशेषाधिकारों के कई उल्लंघनों की जांच करनी चाहिए।

लोकसभा के अध्यक्ष, एक वर्ष के लिए, एथिक्स कमेटी के सदस्यों की नियुक्ति करते हैं और फिलहाल, इस समिति के अध्यक्ष भाजपा के एमपी, विनोद कुमार सोनकर हैं।  समिति के अन्य सदस्य विष्णु दत्त शर्मा, सुमेधानंद सरस्वती, अपराजिता सारंगी, डॉ. राजदीप रॉय, सुनीता दुग्गल और भाजपा के सुभाष भामरे हैं;  वी वैथिलिंगम, एन उत्तम कुमार रेड्डी, बालाशोवरी वल्लभनेनी, और कांग्रेस की परनीत कौर;  शिव सेना के हेमंत गोडसे;  जद (यू) के गिरिधारी यादव;  सीपीआई (एम) के पी आर नटराजन;  और बसपा के दानिश अली है। 

दो दशक पहले अस्तित्व में आने के बाद से, समिति की आखिरी बैठक, संसद की वेबसाइट के अनुसार, 27 जुलाई, 2021 को हुई थी और तब समिति ने कई शिकायतें सुनी। लेकिन वे शिकायतें, काफी हद तक हल्की प्रकृति की रही हैं।  अतीत में अधिक गंभीर शिकायतें या तो विशेषाधिकार समिति द्वारा या विशेष रूप से सदन द्वारा गठित किसी समिति द्वारा सुनी गई हैं।

2005 में, पीके बंसल समिति की रिपोर्ट के आधार पर कुख्यात कैश-फॉर-क्वेरी घोटाले में 11 सांसदों को निष्कासित कर दिया गया था जिसमें, 10 लोकसभा और एक राज्यसभा के सदस्य थे। पीके  बंसल, कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद थे। तब  भाजपा ने सांसदों को निष्कासित करने के लोकसभा के फैसले का विरोध करते हुए मांग की कि बंसल समिति की रिपोर्ट विशेषाधिकार समिति को भेजी जाए ताकि सांसद अपना बचाव कर सकें।

पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि, 2005 के मामले में "बहुत सारे सबूत" थे और यह एक स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित था। जबकि, यहां चुनौती, पश्चिम बंगाल के सांसद द्वारा पूछे गए सवालों को पैसे के लेन-देन से जोड़ने की होगी।

1996 में दिल्ली में पीठासीन अधिकारियों के एक सम्मेलन में पहली बार संसद के दोनों सदनों के लिए नैतिकता पैनल Ethics committee के गठन विचार पर विचार किया गया।  उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के विशेषाधिकार समिति पर लागू नियम, नैतिकता पैनल पर भी लागू होते हैं।

लोकसभा आचार समिति की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि अलग है।  लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के एक अध्ययन समूह ने विधायकों के आचरण और नैतिकता से संबंधित क्रियाकलापों, प्रथाओं और परंपराओं का अध्ययन करने के लिए 1997 में ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका का दौरा किया था। उक्त अध्ययन के बाद, इसने एक आचार समिति के गठन के लिए एक रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया लेकिन रिपोर्ट को पटल पर रखे जाने से पहले ही, तत्कालीन लोकसभा भंग कर दी गई थी।

इसे 12वीं लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन इससे पहले कि विशेषाधिकार समिति इस पर कोई विचार कर पाती, बारहवीं लोकसभा फिर से भंग हो गई।  13वीं लोकसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति ने अंततः एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की।  दिवंगत अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने 2000 में एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया और वह, 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बन गई।

आज की स्थिति के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, किसी सदस्य के खिलाफ किसी अन्य लोकसभा सांसद के माध्यम से कदाचार के सभी सबूतों और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है कि शिकायत "झूठी, तुच्छ या परेशान करने वाली" नहीं है।  एक सदस्य भी किसी अन्य सदस्य के खिलाफ बिना किसी शपथ पत्र के सबूत के साथ शिकायत कर सकता है।  समिति केवल मीडिया रिपोर्टों या न्यायाधीन मामलों पर आधारित शिकायतों पर विचार नहीं करती है। अध्यक्ष किसी सांसद के खिलाफ कोई भी शिकायत, समिति को भेज सकते हैं। समिति किसी शिकायत की जांच करने का निर्णय लेने से पहले प्रथम दृष्टया जांच करती है और शिकायत के मूल्यांकन के बाद अपनी सिफारिशें करती है।

समिति की रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत की जाती है जो सदन से पूछता है कि क्या रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिए।  रिपोर्ट पर आधे घंटे की चर्चा का भी प्रावधान है.

यह विशेषाधिकार समिति से कुछ मामलों में अलग प्रकृति की है। लेकिन अक्सर, आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का काम, ओवरलैप हो जाता है।  किसी सांसद के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है क्योंकि इसमें विशेषाधिकार के गंभीर उल्लंघन और सदन की अवमानना ​​​​का आरोप शामिल है। जबकि यह समिति अनैतिक आचरण के सामान्य मामलों की ही जांच पड़ताल करती है। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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