समाज की अग्रगामी गति को रोका नहीं जा सकता है। समाज के पहिए को कितनी भी कोशिश, रोकने या पीछे करने की कोशिश की जाय, वह कुछ समय के लिए, लग रहे जोर के कारण, थम तो जाता है, कुछ पीछे भी खिसकता है, पर जैसे ही उसे अवसर मिलता है, वह आगे की ओर बढ़ने लगता है। समाज विकास की स्वाभाविक गति, अग्रगामी होती है। अतीत में जो घटा रहता है वह उस लीक का अध्ययन होता है जिस पर समाज आगे बढ़ चुका होता है। वही लीक इतिहास कहलाती है। यह एक सामान्य व्याख्या है और मेरी व्याख्या है। आप सब मित्र असहमत हो सकते हैं।
समाज के इस अग्रगामी चरित्र से जो लोग या अन्य उप समाज, सीख लेकर, समाज के साथ कदमताल मिलाते हुए चल निकलते हैं, वे ही, कभी न कभी, समाज का नेतृत्व करते हैं। लेकिन जो लीक पर बैठ कर, लीक की गहराई और अतीत में अपनी स्थिति को लेकर, गर्व के भाव से भर कर, वही रुके रहते हैं, अपने अन्य लोगों को, रोकने की कोशिश करते हैं, और इस उम्मीद में जड़ बन जाते हैं कि, शायद इन लीक पर समाज का पहिया पीछे की ओर घूमे, वे अतीत के ब्लैक होल में, गुम हो जाते है। कभी कभी तो इतिहास में भी उनका उल्लेख मुश्किल से मिलता है।
ऐसा प्रतिगामी मानस, अक्सर अतीत की यादों के इर्द गिर्द लटके हुए चमगादड की तरह, उसी अंधकार में, रोशनी देख कर असहज हो जाता है, और एक ऐसा तनाव ओढ़ लेता है कि, हर अग्रगामी और प्रगतिशील विचार उसे निरंतर असहज करने लगता है। लेकिन जिसे आगे बढ़ना है, उन्नति करना है, जीवन के बेहतर आकाश छूना है, वे समय और समाज के साथ आगे बढ़ते जाते हैं। अतीत में किसी का कोई भी स्थान रहा हो, कितना भी गौरवशाली इतिहास रहा हो, वह एक न एक दिन धुंधलाता जरूर है। गौरवशाली इतिहास भी तभी हुआ जब युगधर्म के अनुसार, तत्कालीन समाज ने अपनी गति बनाए रखी और अपने उत्थान के प्रति सजग रहा। पर जैसे ही, बदलते समय के साथ तालमेल टूटा, संध्या बेला आ गई और जब सूरज ढला तो, रात तो आनी ही थी।
देश के इतिहास में भी समय समय पर जिस समाज ने बदलते समय में खुद को, उसके साथ बनाए रखा, वह प्रगति करता चला गया। दिक्कत यह है, खुद को गौरवशाली अतीत के वारिस, इस अतीत के मोहपाश से, निकलने के लिए न तो मानसिक रूप से तैयार होते हैं और न ही, अतीत की उस विपाशा से खुद मुक्त होकर, आगे बढ़ पाते हैं। जो कल था वह आज नहीं है और जो आज है वह कल नहीं होगा। दुनिया भर के समाज के विकास का अध्ययन करें तो, आप पाएंगे कि, जो समाज, अतीत के मोहपाश से खुद को मुक्त करके आगे बढ़ गया, उन्होंने ही नेतृत्व किया और जैसे ही उसकी गति अवरुद्ध हुई वह फिर उसी लीक पर खड़ा खड़ा समाज की गति का गुबार देखता रहा और इतिहास के विद्वान, उसके पतन के कारणों पर विश्लेषण और किताबें लिखते रहे।
पीछे लौटने और अतीत का लबादा ओढ़े, पुरातात्विक मोह त्याग कर समाज की अग्रगामी और प्रगतिशील गति के साथ आगे बढ़िए और यही समाज, देश और व्यक्ति की तरक्की का नुस्खा है। अतीत का पुरातात्विक मोह, अध्ययन के लिए हैं, उन कारणों के शोध के लिए है, जिनके कारण अतीत में प्राप्त स्थान, आप के मन में गर्व जताता है और आप को एक महान विरासत के अंग के रूप में याद दिलाता है। थम जाना या म्यूजियम में रखे उस लबादे को ओढ़ कर, फ्लैशबैक की जिंदगी में चले जाना, एक तात्कालिक सुख और गर्व का एहसास भले ही दे दे, पर, वह समाज की गति से चलना नहीं है, बल्कि लीक पर ही बैठे रहना है।
चरन् वै मधु विन्दति चरन् स्वदुम्।
उदुम्बरम् सुर्यस्य पस्य स्ह्रेमनम्।
यो न तन्द्रयते चरन् चरैवेति चरैवेति॥
(ऐतरेय ब्राह्मण)
चलता हुआ मनुष्य ही मधु पाता है, चलता हुआ ही स्वादिष्ट फल चखता है, सूर्य का परिश्रम देखोे,जो नित्य चलता हुआ कभी आलस्य नहीं करता
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
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