Sunday, 1 October 2023

नाचब त घूंघट का...!/ विजय शंकर सिंह

आरएसएस कभी हिंदू राष्ट्र की बात करता है तो कभी सबका डीएनए एक बताता है, तो कभी मुस्लिम विरोध की बात तो कभी सामाजिक समरसता की बात, यह सब कहते हुए वह, एक अजीब सी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात पर आ जाता है। पर कभी भूल कर भी, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य की बात नहीं करता है। 

संस्कृति हो या सभ्यता, इन सबका मूल, आर्थिक निर्भरता और उन्नति में है। दुनिया की सारी महान सभ्यताएं और संस्कृतियां, आर्थिक रूप से मजबूत भी रहीं है। कृषि, व्यापार, राज्य विस्तार, शिक्षा आदि के क्षेत्र में, उनकी उपलब्धियां आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। सभ्यता और संस्कृति कभी भावुकता भरे नारों से न तो उन्नति करती है और न ही इतिहास में अपना स्थान बना पाती है। 

आरएसएस कभी बीजेपी सरकार के दौरान होने वाले आर्थिक घोटालों, अनियमितता और आरोपों पर सवाल नहीं उठाता है। खुद को राजनीति से दूर रहने की बात, बार बार कहने वाला यह संगठन, आज तक यह तय नहीं कर पाया कि, उसे करना क्या है, और उसे कहना क्या है। 

राजनीति में न रहने की बात, बार बार कहते हुए भी संगठन मंत्री के रूप में, वह बीजेपी की कमान अपने हाथ में रखे रहता है। जैसे ही किसी चुनाव में उसे बीजेपी की हालत खराब दिखती है, तो, वह दल बल के साथ चुनाव में सक्रिय हो जाता है, और यह मंत्र भी वह जपता रहता है कि, उसका राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है। 

आरएसएस यदि राजनीति में है और बीजेपी के पक्ष में खुल कर सक्रिय है, तो यह कोई आपत्तिजनक बात है भी नहीं। राजनीतिक सोच, दल, दृष्टिकोण आदि के चयन करने का अधिकार, देश के हर नागरिक को है। पर आपत्ति इस दोहरे स्टैंड पर है, झूठ और ओढ़े हुए आदर्श के लबादे पर है। 

जब देश गुलाम था, लोग देश की आजादी के लिए लड़ रहे थे, राष्ट्रवाद की भावना लोगों में व्याप्त थी, तब यह कहां था? इसका तब स्टैंड क्या था ? गांधी, पटेल, नेहरू, सुभाष, आदि के बारे में इनके क्या खयालात थे? आज जब देश के लोगों को, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं चाहिए तो, यह कभी  धर्म और सांप्रदायिकता का कार्ड खेलता है तो कभी आरक्षण के मुद्दे उठाकर, जातिवादी राजनीति का। 

राजनीति में आरएसएस जैसे संगठन को जरूर आना चाहिए और जब वे हैं ही राजनीतिक एजेंडे के साथ, तो खुल कर रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य सहित अन्य जनहित के मुद्दों पर, उनको अपना विचार रखना चाहिए। आरएसएस यदि जनहित और बीजेपी सरकार में व्याप्त आर्थिक अनियमितताओं पर बोलने लगेगा तो, इसका सकारात्मक परिणाम भी होगा। पर यह चुप्पी क्यों है, यह बात हैरांतलब है। 

आरएसएस को, 'साफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं' की, शातिर मनोदशा से मुक्त होना चाहिए। अंत में, इसी से मिलती जुलती, हमारी तरफ की एक कहावत भी पढ़ लें, नाचब त घूंघट का...!

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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