Saturday, 23 September 2023

रमेश विधूड़ी का निंदनीय और शर्मनाक बयान, मूल मुद्दे से भटकाने की साजिश है / विजय शंकर सिंह

रमेश विधूड़ी ने जो कहा है, यह आरएसएस और उनके लोग अपनी आंतरिक बैठकों में बराबर कहते रहे है। अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम समाज के खिलाफ उनकी सोच, उन्हीं शब्दों के इर्द गिर्द बनी हुई है, जिसे रमेश विधूड़ी ने संसद भवन में कही है। मोहन भागवत जी जो कभी कभी उदारता और समावेशी दिखते हुए, बात करते हैं, वह मुखौटा है। वही मुखौटा, जिसे गोविंदाचार्य ने कभी अटल जी के लिए कहा था। आरएसएस के दो चेहरे हैं। एक मुखौटा ओढ़ा हुआ, जिसे गाहे बगाहे वे, सार्वजनिक रूप से सबके सामने लाते रहते हैं, दूसरा, विधूड़ी वाला असल और बेनकाब चेहरा। यह जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करते हैं, उसका भारतीय संस्कृति, वांग्मय, मनीषा, दर्शन और आध्यात्म से कुछ भी लेना देना नही है। यह ऐसे शब्द सिर्फ इसलिए कहते हैं जिससे इनका उदारवादी स्वरूप लोगों को दिखता रहे।उनके द्वारा गाहे बगाहे चलाए जाने वाले समावेशी कार्यक्रम, अपने मूल या हिडेन एजेंडा को, धूर्ततापूर्ण पोशीदा रखने का एक विज्ञापन भी है। 

रमेश विधूड़ी ने उसी विकृति और इनकी मूल सोच को, संसद के विशेष अधिवेशन में दिखा दिया। यही कारण है कि, आरएसएस की पृष्ठभूमि के अत्यंत सज्जन कहे जाने वाले डॉक्टर हर्षवर्धन जी और सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील रविशंकर प्रसाद जी जो, खुद भी सरकार के केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, विधूड़ी के बयान से, रत्ती भर भी असहज नहीं हुए और जिस तरह का आह्लाद उनके मुख से झलक रहा था, उस देह भाषा को, यदि शब्दो में बदलें तो लगेगा कि, वह भी उन्ही शब्दों को कहना चाहते थे, पर उनकी अभिजात्यता उन शब्दों को जबान पर लाने से थोड़ा कतरा जाती है। इसीलिए, जैसे ही रमेश विधूड़ी के इस बयान पर, देशव्यापी प्रतिक्रिया आई वैसे उन दोनों महानुभावों ने भी ट्विटर पर विधूड़ी से असहमति व्यक्त करते हुए, उस भाषण से अपनी दूरी बना ली और इस तरह अपने अभिजात्यता की खोल में महफूज बने रहने की कोशिश कर की। 

लोकसभा के स्पीकर इस बयान पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं करेंगे जब तक कि, उन्हे इस पर कोई कार्यवाही करने के लिए कहा न जाय। आरएसएस अक्सर विधूड़ी टाइप प्रयोग करता रहता है। वह ऐसे शिगूफे छोड़ता रहता है। यह सब बयान टेस्ट बैलून की तरह हैं। जब उसे लगता है कि, इन बयानों के खिलाफ, देश की जनता एकजुट हो रही है तो, वह उससे किनारा कर लेता है, पर छोड़ता तब भी नहीं है, उन ऐसे बयानों के पक्ष में, उनका दुष्प्रचार तंत्र सामने आ जाता है जिससे न केवल अफवाहें फैलती हैं, बल्कि जनता, जिसके दिमाग के रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य से जुड़े मामले सवालों की शक्ल में, उमड़ते घुमड़ते रहते हैं, को भी नेपथ्य में धकेलने की कोशिश की जाने लगती है। 

सरकार, बीजेपी और आरएसएस यह अच्छी तरह से जानते है कि, दस साल तक मोदी सरकार ने रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के मुद्दों पर सिवाय प्रचार और वंदन, अभिनंदन जैसे ड्रामे करने के कुछ किया नहीं है, तो, उनके पास विधूड़ी मॉडल की बातें करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। इसलिए जैसे ही कर्नाटक में, बजरंग दल पर बैन की बात कांग्रेस ने कही, बीजेपी ने चुनाव को, धार्मिक रंग देने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य से बजरंग बली को मुद्दा बना दिया और हाल ही में, जैसे ही उदयनिधि स्टालिन का बयान आया, पीएम और बीजेपी ने सनातन बचाने की घोषणा कर दी। इतनी तेजी तो पूज्य शंकराचार्यों ने भी नहीं दिखाई जो सनातन के मान्यता प्राप्त शीर्ष आचार्य है। यहां भी मकसद, न तो सनातन बचाना है और न ही धर्म। बस सत्ता बचानी है और सत्ता भी सिर्फ इसलिए ताकि गिरोहबंद पूजीवाद यानी क्रोनी कैपिटलिज्म फलता फूलता रहे। 

रमेश विधूड़ी के बयान की निंदा दुनियाभर में हो रही है। पर इस बयान पर उत्तेजित होने के बजाय, बयान का उद्देश्य और टाइमिंग समझें। महिला आरक्षण विधेयक पर, ओबीसी और एससीएसटी नाराज हैं। वे पहले से ही कोटा के अंदर कोटा की मांग को लेकर विरोध कर रहे थे। अब जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा बन गया है। धर्म के पहरुए के रूप में ओबीसी का उपयोग करने वाले संगठन, ओबीसी की इस मांग पर तब भी चुप थे और अब तो वे असहज महसूस कर रहे है। कभी कांग्रेस भी, इस मसले पर चुप थी पर अब, कांग्रेस इस मुद्दे के साथ है। ऐसे में रमेश विधूड़ी ने यह एक नया और अपने दल का चिर परिचित दांव चला है ताकि बहस, हिंदू बनाम मुसलमान में उलझ कर रह जाय। 

इस पाश से बचिए और सरकार से दस साल का हिसाब मांगिए, अडानी के ₹20 हजार करोड़ के निवेश घोटाले और सरकारी खाते से ₹21 हजार करोड़ के किसी गोपनीय खाते में ट्रांसफर किए जाने की सीएजी की रपट, महंगाई, बेरोजगारी, महिला आरक्षण में ओबीसी एससीएसटी की स्थिति, सीएजी की हालिया रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितता की शिकायतों और मोदी अडानी रिश्तों पर सवाल पूछना जारी रखें। विधूड़ी का बयान केवल और केवल इन मुद्दों से हटाने की साजिश है, उन्होंने वही कहा है जो उन्होंने अपने मातृ संगठन से सीखा है और उनके मातृ संगठन के लोग यह शब्द अक्सर प्रयोग में लाते रहे हैं और वे आगे भी लाते रहेंगे। सबसे जरूरी है, इन्हे सत्ता से बाहर करना और राजनीतिक रूप से कमज़ोर कर के संविधान की मूल धारणा आइडिया ऑफ इंडिया को बचाए और मजबूत बनाए रखना।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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