Wednesday, 6 September 2023

दिल्ली में शिवलिंग के सजावटी फव्वारे / विजय शंकर सिंह



जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बन रहा था, तब असी नदी में और जहां तहां, काफी अधिक संख्या में, शिवलिंग उपेक्षित रूप से इधर उधर बिखरे पाए गए थे। लोग अक्रोशित थे और उन्हे शिव की ही नगरी में, शिव का यह अनादर और अपमान आहत कर रहा था। तब आज के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी भी वहां गए थे और उन्होंने रोष जताया था। तब तो बाबा का मॉल बन रहा था। लोग इसी पिनक में थे,  बाबा का 'उद्धार' हो रहा है। यह भी वे भूल गए कि, सबका उद्धार करने वाले बाबा का उद्धार करने वाला कौन पैदा हो गया ! बात आई गई हो गई। 

काशी विश्वनाथ मंदिर में, शिव की कचहरी तोड़ दी गई, पंच विनायकों के लंबे समय से पूजित विग्रह हटा दिए गए, पंचकोशी यात्रा मार्ग कहां खो गया, यह पता नहीं, उसी परिसर में प्रतिष्ठित मां अन्नपूर्णा कहां चली गई, यह आज तक नहीं पता चला और अब वहां होटल या गेस्ट हाउस खुल गया है। तीर्थ, अब पर्यटन में बदल गया और काशी भी वही है, बाबा भी वहीं हैं, बस बदला तो आस्था और अध्यात्म, जो एक बाजार के रूप में तब्दील हो गया। 

इसी तरह से दिल्ली में G 20 की महत्वपूर्ण बैठक हो रही है, दिल्ली सजाई बजाई जा रही है, दिल्ली के कुछ हिस्सों में, सुरक्षा के कारण आवागमन पर प्रतिबंध है, पर कोई बात नहीं, हमारा समाज, अतिथि देवो भव है तो, यह सब कष्ट कुछ ही दिनों का है, बीत ही जायेगा। वैसे भी कष्ट सहने की एक सनातन मनोवृत्ति भी हममें है। 

दिल्ली सजाने के क्रम में, शहर में, जगह जगह फव्वारे बनाए गए और फव्वारे की शक्ल में, और कोई स्थापत्य या मूर्ति या कलाकृति, दिल्ली सरकार यानी एलजी, (अब तो वही हाकिम ए आला है) को, नहीं मिली तो, उन्होंने शिव को शिवलिंग के ही रूप में, फव्वारों में लगवा दिया। शिवलिंग के कतारों में लगे फव्वारों की फोटो, अखबारो और सोशल मीडिया में घूम रही है। इस पर आस्था के  कारोबारी चुप हैं। अभी किसी सनातनी संत महात्मा के आहत होने की खबर, नहीं दिखी है। 

सड़क पर लगे हुए, शिवलिंग की कतार से जुड़े यह फव्वारे, किसी की आस्था आहत करते हैं या नहीं, यह तो लोगों की, अपनी अपनी आस्था के गुणांक पर निर्भर है, पर इस तरह से, शिवलिंग का एक सजावटी फव्वारे के रूप में, जगह जगह उपयोग करना, क्या सनातन धर्म का अपमान नहीं है? यह सवाल पूछते समय मुझे Purushottam Agrawal सर का उपन्यास नाकोहस याद आ रहा है। 

अभी कुछ दिन पहले, एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें, एक मंत्री, शिव के अरघा में हांथ धोते देखे गए। यह भी पहली ही बार है, कि, शिव का पवित्र अरघा, जिसके जल से आचमन किया जाता है, उसमें वे वाश बेसिन की तरह हांथ धो रहे हैं। पर इस पर किसी की भी भावना आहत नहीं हुई और यह खबर भी आई गई हो गई। 

आज के अखबारो में एक खबर दिखी की, आम आदमी पार्टी ने लेफ्टिनेंट गवर्नर के खिलाफ, शिवलिंग के फव्वारे के रूप में, उपयोग करने को लेकर,  शिकायत दर्ज कराई है। इस शिकायत पर जब पत्रकारों ने, एलजी से पूछा तो, एलजी ने कहा, कि, "वह एक आकार है, शिवलिंग नहीं, फिर भी किसी को उसमे शिव दिखते हैं तो, कोई बात नहीं, भगवान तो कण कण में है।"

बात तो लेफ्टिनेंट गवर्नर साहब बहादुर की भी सही है कि, कण कण में भगवान हैं, पर क्या एक ऐसे देश में, जहां, सौंदर्य बोध की एक समृद्ध परंपरा रही है, शहर को सजाने के लिए किसी ऐसे प्रतीक या कलाकृति का उपयोग नहीं किया जा सकता था, जो विविध रूपों और आकारों में हो, उससे किसी देव प्रतिमा का साम्य भी न हो रहा हो, और सब कुछ आकर्षक और सुंदर भी दिखे ?

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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