Tuesday 12 September 2023

संयुक्त सचिव और उसके ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच करने और मुकदमे चलाने के लिए अब सरकार की पूर्व अनुमति की कोई जरूरत नहीं होगी ~ सुप्रीम कोर्ट / विजय शंकर सिंह

वरिष्ठ नौकरशाही (संयुक्त सचिव और उसके ऊपर के पदाधिकारियों) को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 11/09/23 को, दिए गए अपने एक फैसले में कहा है कि, 
"सुप्रीम कोर्ट का 2014 का फैसला, जिसके अनुसार, जिसने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित किया गया था, अब पूर्वव्यापी प्रभाव (Retrospective Effect) से लागू होगा।"

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच जिसमे, जस्टिस जेके माहेश्वरी, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ थे, द्वारा, दिए, इस फैसले के अनुसार, 
"अब जॉइंट सेक्रेटरी और उससे ऊपर के अफसरों पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाया जा सकेगा और उनके खिलाफ आरोपों की, नियमानुसार, जांच भी हो सकेगी। जांच और अभियोजन के लिए उच्चाधिकारियों/शासन के अनुमति की, अब कोई जरूरत नहीं होगी।" 
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, यह आदेश, 11 सितंबर 2003 से मान्य और लागू होगा।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता में गठित, पांच जजों की पीठ का यह फैसला एकमत से दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2014 के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि, 
"तब दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टेबलिशमेंट (DSPE) एक्ट 1946 के प्रावधान को रद्द कर दिया था। यह प्रावधान कुछ अफसरों को भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच से सुरक्षा (इम्यूनिटी) प्रदान करता है।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "2014 का फैसला, 11 सितंबर 2003 से ही मान्य होगा। क्योंकि, 11 सितंबर 2003 से ही DSPE Act में धारा 6(A) जोड़ी गई थी, जिसके अनुसार, संयुक्त सचिव या उसके ऊपर के अधिकारियों के लिए,  किसी भी जांच या अभियोजन के लिए केंद्र सरकार के अनुमति की जरूरत होगी।"

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2014 को, दिए अपने आदेश में, डीएसपीई एक्ट की धारा 6A(1) को अमान्य ठहराया था और,  कहा था कि, धारा 6A में,  'भ्रष्टाचारियों को बचाने की प्रवृत्ति' है। उसी के बाद यह मामला, संविधान पीठ को संदर्भित हुआ। संविधान पीठ को यह तय करना था कि, 
"क्या किसी जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के सरकारी अधिकारी को कानून के किसी प्रावधान के तहत गिरफ्तारी से मिला संरक्षण तब भी कायम रहता है, अगर उसकी गिरफ्तारी के बाद आगे चलकर उस कानून को ही रद्द कर दिया गया हो।" 
इस पर, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि, 
"जो अधिकारी, सेक्शन के रद्द होने से पहले गिरफ्तार किए गए थे, उनके खिलाफ केस चल सकता है।"

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पास, विचाराधीन सवाल था कि, 
"क्या किसी व्यक्ति को प्रतिरक्षा-अनुदान immunity प्रावधान को रद्द करने वाले फैसले के, पूर्वव्यापी प्रभाव यानी बैकडेट से, वैधानिक रूप से प्रदत्त किसी भी प्रतिरक्षा से वंचित किया जा सकता है?"
इस सवाल पर विचार करने के लिए, मार्च 2016 में कोर्ट की एक डिविजन बेंच ने इस मुद्दे को पांच जजों की बेंच के पास भेज दिया था।

यह मामला दिल्ली पुलिस विशेष स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत बिना पूर्व मंजूरी के की गई एक गिरफ्तारी से उपजा था, जिससे धारा 6A के उल्लंघन के आधार पर कानूनी चुनौती मिली, जिसके तहत केंद्रीय जांच ब्यूरो को, भ्रष्टाचार के मामलों में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पद के किसी अधिकारी की जांच करने से पहले, सरकार की पूर्व मंजूरी लेनी आवश्यक थी। 

तब दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि, 
"चूंकि केंद्रीय जांच ब्यूरो CBI ने गिरफ्तारी से पहले जांच शुरू कर दी थी, इसलिए स्पॉट गिरफ्तारी के लिए धारा 6ए की उप-धारा (2) में निहित अपवाद लागू नहीं होगा।"  
तदनुसार, उच्च न्यायालय ने एजेंसी को पुन: जांच के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी लेने का निर्देश दिया था।  

इस फैसले को 2007 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन जब मामले की सुनवाई हो रही थी, तभी, सुब्रमण्यम स्वामी (2014) के एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा, धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।  हालाँकि, लंबित मामलों में इस फैसले का क्या परिणाम या असर होना चाहिए, यह अस्पष्ट रहा। इसी वजह से, मौजूदा मामले को, एक संवैधानिक पीठ को भेजा गया था, जिस पर, पांच जजों की बेंच द्वारा, दलीलें सुनने के बाद नवंबर 2022 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। 

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि, 
"एक बार जब किसी कानून को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है कि, यह संविधान के भाग III के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों में से किसी का उल्लंघन करता है, तो इसे अधिनियमन की तारीख से अप्रवर्तनीय माना जाएगा।" 
फैसले का अंश कहता है, 
“यह बिल्कुल स्पष्ट है कि एक बार जब किसी कानून को संविधान के भाग III का उल्लंघन करते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है, तो इसे अनुच्छेद 13 (2) के मद्देनजर शुरू से ही शून्य, मृत, अप्रवर्तनीय और गैर-स्थायी माना जाएगा। इस प्रकार, सुब्रमण्यम स्वामी के मामले में संविधान पीठ द्वारा की गई घोषणा पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगी।"

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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