Sunday, 10 September 2023

तमिलनाडु का आत्मसम्मान विवाह यानी सुयमरियाथाई विवाह कानून / विजय शंकर सिंह

धार्मिक भेदभाव और अस्पृश्यता को लेकर देश में सबसे प्रखर आंदोलन, तमिलनाडु में चला है और ईवी रामासामी पेरियार, तमिल सुधार आंदोलनों के एक मजबूत स्तंभ रहे हैं। वहां एक विवाह पद्धति है, सुयमरियाथाई, जिसे आत्मसम्मान विवाह प्रथा के रूप में देखा और कहा जाता है। उसी विवाह पद्धति को, सुप्रीम कोर्ट ने, अपने एक हालिया आदेश में, विधि सम्मत घोषित किया है। यह विवाह पद्धति, हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन के बाद, तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य में लागू किया था। 

तमिलनाडु में, प्रचलित, इसी आत्मसम्मान विवाह के बारे में, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद, सुयमरियाथाई यानी आत्मसम्मान विवाह पर पूरे देश में बहस छिड़ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने, हाल ही में दायर एक याचिका पर, जो मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के बाद, अपील के रूप में, सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी, पर सुनवाई के बाद कहा कि, "जीवन साथी चुनना, मौलिक अधिकार है।" शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा है कि, "हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7(ए) के तहत 'आत्मसम्मान' विवाह या 'सुयमरियाथाई' को सार्वजनिक समारोह या घोषणा की आवश्यकता नहीं है।"

तमिलनाडु सरकार ने 1968 में, सुयमरियाथाई विवाह को वैध बनाने के लिए कानून के प्रावधानों में संशोधन किया था। इसका उद्देश्य, किसी भी शादी की प्रक्रिया को सरल बनाते हुए ब्राह्मण पुजारियों, पवित्र अग्नि और सप्तपदी (सात चरण) की अनिवार्यता को खत्म करना था।" यानी हिंदू विवाह पद्धति की सबसे अनिवार्य तत्व अग्नि और सप्तपदी को भी इस कानूनी संशोधन ने, मान्यता नहीं दी है। 

इसी आदेश  के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के 2014 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि, "अधिवक्ताओं द्वारा कराई गई शादियां वैध नहीं हैं और ‘सुयमरियाथाई’ या ‘आत्म-सम्मान’ विवाह को संपन्न नहीं किया जा सकता है।" 

सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को आत्मसम्मान विवाह पर फैसला सुनाते हुए है कहा, "तमिलनाडु में, संशोधित हिंदू विवाह कानून के तहत वकील परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच 'सुयमरियाथाई' (आत्मसम्मान) विवाह संपन्न करा सकते हैं।" इस मामले में जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने यह भी कहा कि, "वकील अदालत के अधिकारियों के रूप में पेशेवर क्षमता में काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से दंपती को जानने के आधार पर वो कानून की धारा-7(ए) के तहत विवाह करा सकते हैं।"

अब सुयमरियाथाई विवाह का कानूनी पक्ष देखें। आत्मसम्मान विवाह या सुयमरियाथाई विवाह प्रथा, तमिलनाडु में 1968 से शुरू हुई है। साल 1968 में हिंदू विवाह  (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 1967 पारित किया गया. जिसमें धारा 7A के तहत हिंदू विवाह अधिनियम 1955 को संशोधित किया गया था। यह विशेष प्रावधान उन "दो वायस्क स्त्री पुरुष को बिना, किसी, धार्मिक रीति-रिवाज का पालन करते हुये, शादी करने की अनुमति देता है, जिनकी उम्र कानूनी रूप से शादी के लायक हैं।"

आत्मसम्मान विवाह में पुजारी, अग्नि या किसी भी तरह की शादी के, धार्मिक या परंपरागत रीति रिवाजों के पालन करने की जरुरत नहीं होती है। दो वयस्क, स्त्री पुरुष द्वारा अपने जानने वालों की मौजूदगी में, एक-दूसरे को पति-पत्नी मान लेना भी, इस विवाह को स्वीकृति प्रदान करता और, विवाह को, वैध बनाता है। हालांकि ऐसी शादियों को कानूनी रूप से पंजीकृत करना भी जरूरी है। साथ ही, ऐसी शादियां आमतौर पर रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य लोगों की मौजूदगी में की जा सकती हैं। 

आत्मसम्मान विवाह या तमिल में, सुयमरियाथाई, पेरियार के सुधारवादी आंदोलनों का एक परिणाम है। तमिल समाज सुधारक पेरियार ने 1925 में आत्मसम्मान आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसका मकसद जात-पात के भेदभाव को दूर करना और समाज में जिन जातियों को नीचा दिखाया जाता है, उन्हें समाज में एक समान अधिकार दिलाना था।  आत्मसम्मान विवाह के अभियान को आत्मसम्मान आंदोलन के एक बड़े अंग के रूप में चलाया गया था। 

पहला स्वाभिमान विवाह 1928 में, खुद पेरियार ने संपन्न कराया था, जिसमें दो जातियों के भेदभावों को दूर कर, दो लोगों के एक-दूसरे के साथ जीने की आजादी की मांग भी थी. ये शादियां किसी भी जाति में की जा सकती हैं। 

आत्मसम्मान विवाह का वर्तमान विवाद, मद्रास हाईकोर्ट की एक कार्रवाई के बाद चर्चा में आया है। मई 2023 में मद्रास हाईकोर्ट ने, तमिलनाडु राज्य बार काउंसिल को, उन वकीलों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया था जो अपने कार्यालयों या ट्रेड यूनियन कार्यालयों में, इस आत्मसम्मान विवाह कानून के अंतर्गत, गुप्त शादियां करवा रहे थे और साथ ही विवाह प्रमाण पत्र भी जारी कर रहे थे। 

मद्रास हाईकोर्ट के मदुरै पीठ के जज एम. धंदापानी और न्यायमूर्ति आर. विजयकुमार की पीठ ने कहा कि, "आत्म-सम्मान विवाह सहित सभी विवाहों को तमिलनाडु विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि इसके लिए पार्टियों को अदालत में उपस्थित भी होना होगा।"
उच्च न्यायालय ने एस बालाकृष्णन पांडियन मामले में अपने 2014 के फैसले को सही ठहराया, जिसमें कहा गया था कि, "वकीलों के कार्यालयों और बार एसोसिएशन के कमरों में गोपनीयता से की गई शादी कानून के तहत वैध शादी नहीं हो सकतीं।"

हालांकि, एक अन्य कानून भी धर्म निरपेक्ष विवाह को मान्यता देता है। वह है विशेष विवाह अधिनियम, 1872 जो, ब्रिटिश सरकार द्वारा अंतर-धार्मिक विवाह की अनुमति देने के लिए बनाया गया था, जहां किसी भी पक्ष को अपने संबंधित धर्म को त्यागना नहीं पड़ता था। इस अधियनियम के तहत उचित नियमों का पालन करने के बाद दो लोग धर्म निरपेक्ष विवाह में बंध सकते हैं। इस अधिनियम को 1954 में संसद द्वारा तलाक और अन्य मामलों के प्रावधानों के साथ फिर से पारित किया गया। 

यह अधिनियम पूरे भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है। इस तरह के विवाह करने की इच्छा रखने वालें लोगों को उस जिले के विवाह अधिकारी को लिखित रूप में एक नोटिस देना जरूरी है, जिसमें नोटिस से ठीक पहले कम से कम एक पक्ष उस जिले में कम से कम 30 दिनों तक रहा हो। 

इस कानून के अंतर्गत, सबसे अधिक आलोचना, इसके प्रावधानों में से एक, धारा 7 की होती है, जिसके अनुसार, कोई भी व्यक्ति नोटिस दिए जाने की तारीख से तीस दिन पहले इस तरह की शादी पर इस आधार पर आपत्ति कर सकता है कि ये अधिनियम की धारा 4 की शर्तों का उल्लंघन होगा। ऐसे मामलों में यदि कोई आपत्ति की गई है तो संबंधित विवाह अधिकारी तब तक विवाह नहीं करा सकता, जब तक कि मामले की जांच न हो जाए और वो संतुष्ट न हो जाए कि ये आपत्ति विवाह के खिलाफ नहीं है.

आज जब समान नागरिक संहिता या यूसीसी को देश के नागरिक कानूनों में एकरूपता लाने वाले एक उपकरण के रूप में देखा जा रहा है, तो, भारतीय समाज में ऐसी बहुत सी प्रथाएं, सामाजिक परंपराएं, और समय समय पर बने कानून हैं, जो भारतीय बहुलतावाद को प्रतिबिंबित है, अक्सर एक चुनौती के रूप में खड़े दिखते हैं। हिंदू विवाह पद्धति में सप्तपदी का सबसे अधिक महत्व माना जाता है और इस प्रथा को, हिंदू विवाह को, पूर्ण मान्यता देने वाले कदम के रूप में स्वीकार किया जाता है, पर तमिलनाडु के 'आत्मसम्मान' विवाह में ऐसी किसी भी प्रथा को कानूनन अमान्य कर दिया गया है। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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