Friday, 29 October 2021

कानून - समीर बानखेड़े पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र का आरोप और कानूनी स्थिति / विजय शंकर सिंह

राष्ट्रीय एससीएसटी आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, डीजीपी और मुंबई के पुलिस कमिश्नर को, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो,के संयुक्त निदेशक, समीर वानखेड़े की शिकायत पर 7 दिनों में एक एक्शन टेकन रिपोर्ट देने के लिए कहा है। समीर ने आयोग को अपने विरुद्ध फर्जीवाड़े का आरोप लगा कर उत्पीड़न करने की शिकायत आयोग से की थी। उन्होंने इस उत्पीड़न के लिये महाराष्ट्र के मंत्री, नवाब मलिक को जिम्मेदार ठहराया है।

नवाब मलिक के आरोप कि समीर बानखेड़े ने अनुसूचित जनजाति का एक फर्जी सर्टिफिकेट बनवाया है, सच है या झूठ, यह तो जांच करने के बाद ही पता लगेगा। फिलहाल कानूनी स्थिति इस प्रकार है। 

भारतीय संविधान के अनुसूचित जाति, के संदर्भ में एक आदेश जो 1950 का है के पैरा तीन में कहा गया है, 
"कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।"  
प्रारंभ में, एससी का दर्जा केवल उन लोगों के लिए था जो हिंदू धर्म को मानते हैं। 1956 में सिखों को शामिल करने के लिए और 1990 में बौद्धों को शामिल करने के लिए इस आदेश में संशोधन किया गया था।

यह 10 अगस्त 1950 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित एक कार्यकारी आदेश था। दिलचस्प बात यह है कि इसे संविधान को अपनाने के ठीक बाद पारित किया गया था, जो एससी श्रेणी का सदस्य होने के लिए कोई प्रतिबंध या धार्मिक शर्त नहीं रखता है।  

'अनुसूचित जाति' शब्द को संविधान के अनुच्छेद 366 (24) और अनुच्छेद 341 (1) में परिभाषित किया गया है।  
● अनुच्छेद 366 (24) कहता है, "अनुसूचित जातियों का अर्थ ऐसी जातियों, नस्लों या जनजातियों या ऐसी जातियों, नस्लों या जनजातियों के भागों या समूहों से है जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जाति माना जाता है"।  

● इसके अलावा, अनुच्छेद 341 (1) कहता है, 
"राष्ट्रपति ... सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा, जातियों, नस्लों या जनजातियों या जातियों, नस्लों या जनजातियों के समूहों या समूहों को निर्दिष्ट करते हैं, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुसूचित जाति माना जाएगा।  उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में, जैसा भी मामला हो।"

इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि एससी की स्थिति पर धार्मिक प्रतिबंध लगाना एक सोच थी और वर्तमान विवाद 1950 के सरकारी आदेश से संबंधित है। इस आदेश के लागू रहने के साथ, यदि यह साबित हो जाता है कि वानखेड़े मुस्लिम हैं, तो उनका एससी  प्रमाणपत्र और सरकारी नौकरी पाने के लिए इसका उपयोग अवैध है।  ऐसे में उस पर जालसाजी का मुकदमा चलाया जा सकता है।

( विजय शंकर सिंह )

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