स्कूल की NCERT किताब में एक अल्फ्रेड टेनिसन की कविता पढ़ायी जाती है- ‘चार्ज ऑफ द लाइट ब्रिगेड’, जिसमें छह सौ सैनिक युद्ध के लिए निकलते हैं, और तोप-गोलों के मध्य फँस जाते हैं। वे गिरते हैं, मरते हैं, लेकिन आगे बढ़ते रहते हैं। यह कविता क्रीमिया युद्ध में इंग्लैंड की सबसे शौर्यपूर्ण लाइट ब्रिगेड की हार के तुरंत बाद लिखी गयी थी। ऐसी कविताएँ कम होती है, जिसमें एक हारती हुई सेना का गान गाया हो। इस तरह के थीम कुछ भारतीय क्रांतियों में भी मिलते हैं, जब एक व्यक्ति गिरते हुए दूसरे को झंडा दे रहा हो, और वह गिरते हुए तीसरे को। जैसे पटना का शहीद स्मारक ऐसी ही एक घटना का खूबसूरत चित्रण करता है।
क्रीमिया युद्ध में ऐसे कई नज़ारे थे, जिसे तॉलस्तॉय ने अपनी ‘सेवोस्टोपॉल के चित्र’ पुस्तक में अंकित किया है। यह युद्ध सभी भागीदार देशों के लिए जीत से अधिक हार ही लाया।
शुरुआत कुछ यूँ हुई कि रूस की नौसेना लगभग पूरे यूरोप की परिक्रमा करती हुई भूमध्य सागर के रास्ते तुर्की पहुँच गयी और उनके जहाज़ी बेड़े को नेस्तनाबूद कर दिया। ऐसा लगा कि एक पल में इस्तांबुल स्वाहा हो जाएगा।
जब यह खबर इंग्लैंड और फ्रांस तक पहुँची, उन्होंने पहले रूस के सभी समुद्री रास्ते बंद कर दिए। न सिर्फ़ बाल्टिक सागर, बल्कि साइबेरिया के पूर्व में प्रशांत महासागर को भी घेर लिया। उसके बाद इंग्लैंड-फ्रांस की सेना भूमध्य सागर पहुँच गयी। वहाँ शुरू हुआ घमासान युद्ध!
रूस की नौसेना के सामने ये दोनों कहीं भारी पड़े। आखिर ब्रिटेन और फ्रांस तो जहाज़ी फ़तहों के लिए ही जाने जाते थे। समुद्र उनके साम्राज्यवाद की नींव थी। रूस ने निर्जन अलास्का के सिवाय समुद्री रास्ते से कुछ ख़ास कभी जीता नहीं था। रूस के क्रीमिया प्रायद्वीप के सेवोस्तोपोल पोत पर नेपोलियन तृतीय और ब्रिटिश रॉयल नेवी का कब्जा हो गया।
जब जमीनी लड़ाई शुरू हुई, तो रूस ने पहली बार औद्योगिक क्रांति में पिछड़े रहने का सबब पाया। रूसी सैनिक तादाद में कहीं अधिक थे, लेकिन उनकी लड़ाई पुराने जमाने की थी। उनके पास न टेलीग्राफ़ संदेशों की ताकत थी, न उच्च कोटि के हथियार थे, न ही चक्रव्यूह रचने की क्षमता। जहाँ रूसी एक मारते थे, वहाँ इंग्लैंड-फ्रांस दस मारते थे। यह तो रूस का जज़्बा था या यूँ कहें कि तानाशाही का आदेश था कि फिर से दस खड़े हो जाते।
इसी युद्ध में ब्रिटेन ने वह पैटर्न 1853 एनफ़ील्ड राइफल और उसके ‘वाटरप्रूफ़’ कारतूस प्रयोग किए, जो रूसी छर्रों पर कहीं भारी पड़े। यही चमकीले कारतूस जब भारत पहुँचे तो खबर फैल गयी कि इसमें चर्बी का इस्तेमाल होता है। उसके बाद क्या हुआ, हम जानते हैं।
आज भी सेवोस्तोपोल शहर उन लाशों के ऊपर ही खड़ा है, जो तीन वर्षों तक चले इस युद्ध में गिरे। आँकड़ों के अनुसार लगभग पाँच लाख रूसी, एक लाख फ्रांसीसी, और बीस हज़ार ब्रिटिश मारे गए। स्वयं ज़ार निकोलस युद्ध के दौरान चल बसे। रूस जिसके विस्तार से इंग्लैंड भयभीत था, वह हार गया।
तीन दशकों से राज कर रहे ज़ार निकोलस का गिरना एक साधारण घटना नहीं थी। इसने राजशाही के मनोबल को ही गिरा दिया। ज़ार के पुत्र अलेक्सांद्र द्वितीय गद्दी पर बैठे और उन्होंने युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी। वह जानते थे कि युद्ध चलता रहा तो रूस के किसान या तो एक-एक कर युद्ध में मर जाएँगे, या विद्रोह कर देंगे। 1856 में पेरिस में समझौता हुआ।
इस युद्ध के बाद यूरोप का मानचित्र भी बदला। एक प्रसिद्ध कथन है- ‘क्रीमिया के कीचड़ से इटली का जन्म हुआ’। इटली से पहले इस कीचड़ से रोमानिया की पैदाइश हुई। पंद्रह साल बाद जन्म तो यूरोप में एक और देश का हुआ, जो अगले विश्व-युद्धों का केंद्र और रूस के लिए नासूर बना- जर्मनी!
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास - दो (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/3.html
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