लेनिन जितने क्रांतिकारी मिज़ाज के थे, उतने ही ठंडे दिमाग के भी थे। वह स्कूल के दिनों से ही शतरंज के उस्ताद खिलाड़ी थे। जब उनके भाई को फाँसी हुई, वह ज़ार को गोली मारने नहीं निकल पड़े, बल्कि अपनी परीक्षा पूरी की। टॉप कर गोल्ड-मेडल जीता। उन्होंने मार्क्स से प्लेखानोव तक को पढ़ा, कहीं किसी बम बनाने वाले संगठन से नहीं जुड़े। उन से ज़ार को कम से कम उस वक्त कोई खतरा नहीं था। लेकिन, इतिहास जानता है कि उन्होंने फ़िल्मी अंदाज़ में बदला लिया। ज़ारशाही का न सिर्फ़ अंत किया, बल्कि ज़ार परिवार की सामूहिक हत्या भी की गयी। यह बदला उन्होंने पूरे तीन दशक बाद लिया, एक-एक चाल दिमाग से चल कर।
उनका मशहूर वाक्य है, “कुछ दशक ऐसे होते हैं, जिसमें कुछ नहीं होता; कुछ हफ्ते ऐसे होते हैं, जिनमें वह हो जाता है जो दशकों में नहीं हुआ होता”
लेनिन एक कल्ट बने। अच्छे रूप में भी, बुरे रूप में भी। जहाँ एक तरफ़ भारतीय क्रांतिकारी भगत सिंह अपनी फाँसी के समय उनकी किताब पढ़ रहे थे, लेनिन-वादियों के विकृत हिंसक रूप भी समकालीन इतिहास ने देखे हैं।
क्या आज रूस लेनिन को भुला चुका है? क्या भुलाना मुमकिन है? आज भी मास्को के रेड स्क्वायर पर लेनिन की कब्र पर सैकड़ों की भीड़ उमड़ती है। स्तालिन की निंदा होती है, उनकी मूर्तियों को इज्जत नहीं मिलती, लेकिन लेनिन की ‘जीनियस’ छवि उनके निंदकों में भी है। यह ‘टॉप टू बॉटम’ तक है। मसलन वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन के दादा सिरीदोन क्रांति के दिनों में लेनिन के रसोइए थे। मुमकिन है कि पूतिन अपने चलने के अंदाज़ से लेकर अपनी नीतियों में लेनिन की ‘कोल्ड-ब्लडेड’ चालें अपनाते हों।
अपने अनुयायियों की तरह लेनिन ने कभी किसी फौजी जनरल की वेश-भूषा नहीं अपनायी। वह एक सौम्य व्यक्तित्व थे, लेकिन उनके दिमाग में जो पूरी प्लानिंग चल रही होती, वह सौम्य नहीं होती। वह प्रैक्टिकल रास्ता चुनने वाले व्यक्ति थे, जिसमें साम-दाम-दंड-भेद सभी शामिल थे। कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों के विषय में भी उन्होंने कहा, “किसी भी क्रांति के लिए सिद्धांतों का होना ज़रूरी है, लेकिन यह ध्यान रहे कि वे सिर्फ सिद्धांत हैं, ईश्वर का लिखा पत्र नहीं होता है।”
मैं लेनिन के व्यक्तित्व को समझने के लिए एक बार उनके प्रकृति पर लिखे नोट्स पढ़ रहा था। मुझे यकीन नहीं हुआ कि एक हिंसक क्रांतिकारी छवि का यह व्यक्ति सैकड़ों पौधों के नाम जानता है। पहाड़ों और वादियों में घूमते हुए रुक कर एक-एक फूल को करीब से देखता है। कुछ पीछे लौटने पर दिखता है कि लगभग एक ही साथ लेनिन के पिता की मृत्यु और भाई को फाँसी हुई थी। कुछ ही दिन बाद विश्वविद्यालय से उन्हें गिरफ़्तार किया गया कि वह एक विरोध प्रदर्शन में शामिल थे, लेकिन वहाँ भी वह कोई नेता नहीं थे। वह सिर्फ़ उस भीड़ में मौजूद थे, और क्रांतिकारी के भाई होने की वजह से पकड़ लिए गए।
उन्होंने पुन: विश्वविद्यालय में अर्जी दी कि वह आगे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन गृह मंत्रालय उन्हें एक खतरनाक आदमी मानती थी। उनकी माँ चाहती थी कि लेनिन क्रांति की दुनिया से दूर रहें और लेनिन भी उनकी बातें मान रहे थे। एक बार वह तनाव के दिनों में लगातार सिगरेट पीए जा रहे थे, तो उनकी माँ ने डाँट कर कहा, “तुम कुछ कमा तो रहे नहीं, ये सभी सिगरेट मेरे पैसों की उड़ा रहे हो।”
लेनिन ने वह सिगरेट बुझाया, और जीवन में कभी सिगरेट न पीने का निर्णय लिया। बल्कि, उन्होंने यह नियम बना लिया कि उनका कोई भी साथी कभी उनके सामने सिगरेट नहीं पीएगा।
उन्हीं की उम्र के एक और व्यक्ति उनके ठीक विपरीत थे। उनकी नाक से हमेशा धुआँ निकलता रहता और वह शराब में धुत्त रहते। जिस समय लेनिन अपने फार्म में उपन्यास ‘क्या करना चाहिए’ पढ़ रहे थे, उस समय वह व्यक्ति ऐसी हरकतें कर रहे थे जो क़तई नहीं करनी चाहिए। अगर लेनिन कल्ट फ़िगर बने, तो वह भी उतने ही कल्ट बने। रूस की कहानी अगर व्लादिमीर लेनिन के बिना पूरी नहीं हो सकती, तो ग्रिगरी रासपूतिन के बिना भी पूरी नहीं हो सकती।
(क्रमशः)
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प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास - दो (9)
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