Friday, 29 October 2021

शंभूनाथ शुक्ल - कोस कोस का पानी (30)

दिल्ली के पास का सबसे अच्छा शहर मुझे मेरठ प्रतीत होता है। खाने-पीने के लिहाज से स्वास्थ्यकर और अत्यधिक मिष्ठभोजी। चाय भी ऐसी बनेगी कि पूरा चम्मच गड़ जाए और लस्सी में कुछ ज्यादा ही प्रेम में आकर बर्फी का टुकड़ा डाल देंगे। मैं जब तक मेरठ रहा टोंड दूध के लिए तरस गया। दूध वहां फुल क्रीम ही मिलेगा। चिकनाई के नाम पर या तो सरसों का तेल अथवा शुद्घ देसी घी। बोली भी ऐसी कि न लगे लड़ रहे हैं या प्रेम जता रहे हैं। 'सर जी तुम्हारे दोस्त आए हैं' या 'सर जी तुमने ही तो कहा था'। लेकिन मेहमान नवाजी और दोस्ती ऐसी गजब की कि अगर उनके घर पहुंचे तो बिना खाना खिलाए या चाय की जगह पूरा एक जग दूध पिला कर ही मानेंगे। खूब हरियाली और हरी भरी नर्सरियों के लिए मशहूर है मेरठ। यहां के आम और अमरूद तो लखनऊ की दशहरी तथा इलाहाबाद के पेड़ों को मात देते हैं। पढ़ाई-लिखाई में भी अव्वल और व्यापार में भी। किसानी में तो यहां का कोई सानी नहीं। मेरठ में तमाम दर्शनीय स्थल भी हैं। आजादी की पहली लड़ाई यहीं के पलटनों ने लड़ी थी। उस समय का काली पलटन मंदिर आज भी सबसे अधिक प्रतिष्ठित है। आसपास आप किला परीक्षित गढ़ और हस्तिनापुर भी जा सकते हैं जहां पांडव काल के कहे जाने वाले मंदिर मिल जाएंगे। गुर्जर प्रतिहार क्षत्रियों की राजधानी रहा यह इलाका आज भी बहसूमा के गुर्जर राजवंश के लिए मशहूर है। दिल्ली से साठ किमी की दूरी पर स्थित मेरठ जाकर आप यूपी की राजनीति और अर्थनीति को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।

© शंभूनाथ शुक्ल 

कोस कोस का पानी (29)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/29.html
#vss

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