पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों पर सरकार के एक मंत्री का यह तर्क सुनें। उनका कहना है कि बढ़ती तेल की कीमतों से केवल वे ही लोग परेशान हैं जो चार पहिया वाहन रखते हैं। शेष 95% लोगो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
जबकि वास्तविकता यह है कि वाहनों के ईंधन की बढ़ती कीमतों का सीधा असर माल ढुलाई की कीमतों पर पड़ता है। ट्रांसपोर्टेशन की बढ़ती कीमतों का असर रोजमर्रा की उपयोग की जाने वाली उपभोक्ता वस्तुओं पर पड़ता है। यही कारण है कि बाजारों में रोज रोज कीमतें बढ़ रही हैं।
सरकार 100 करोड़ डोज़ टीके का जश्न तो मनाएगी, पर रोज रोज बढती कीमतों को नियंत्रित करना तो दूर की बात है, इस मूल्यवृद्धि पर या तो चुप्पी साध लेगी या उसके निर्लज्ज बचाव में उतर आएगी।
जब जब जनता पीड़ित रही है, चाहे नोटबन्दी की लाइने हों या कोरोना की दूसरी लहर से मरते लोग, न प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट किया और न सरकार के किसी मंत्री ने जनता से सहानुभूति के दो बोल बोले। आप को प्रधानमंत्री की वह बेहद असंवेदनशील भंगिमा याद है, जब उन्होंने अपने हांथ को झटकते हुए एक विशिष्ट शैली में कहा था, " घर मे शादी है, घर मे पैसे नहीं है।" यह एक वाक्य भी जिस देहभाषा में व्यक्त किया जा रहा था उसे सैडिज्म का एक उदाहरण आप मान सकते हैं।
मोदी छाप झोले में, जहां, 5 किलो राशन पर, जीवन गुजारती 80 करोड़ जनसंख्या, भी एक उपलब्धि के रूप में प्रचारित की जा रही हो, वहां सरकार की किन उपलब्धियों पर बात की जाय ? 20 सैनिकों की शहादत के बाद भी चीनी घुसपैठ को स्वीकार तक न करने का साहस जिस सरकार में न हो, ऐसी सरकार को क्या कहा जाय ? इन बहादुर सैनिकों की शहादत के केवल चार दिन बाद कहा जा रहा है कि, न तो कोई घुसा है, और न तो कोई घुसा था। कमाल यह है कि, इसे भी मीडिया के एक बड़े वर्ग ने एक उपलब्धि के रूप में मनाया।
जश्न का नहीं है यह दौर, मित्रों
आत्ममुग्धता का मनोरोग है यह !!
( विजय शंकर सिंह )
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