हर संस्कृति में युद्ध की भिन्न रणनीतियाँ रही। कोई सामने से हमला करता है, कोई छुप कर गुरिल्ला युद्ध। कोई आखिरी दम तक लड़ना चाहता है तो कोई हार मान कर संधि कर लेता है। कोई लड़ने की प्रवृत्ति रखता है, कोई ज़बरदस्ती लड़ रहा होता है। रूस की एक ख़ास प्रवृत्ति कई युद्धों में दिखी।
रुस अपने विस्तार और अपने कठिन मौसम से शत्रुओं को मात करता आया है। वह उन्हें सीमा पर नहीं रोकते, उन्हें अंदर आने देते हैं। जब वे केंद्र में पहुँच जाते हैं, तो उन्हें घेर लेते हैं। अथवा जब शत्रु की सेना आधी जीत हासिल कर थकी-हारी लौट रही होती है, उस समय वह उनके देश पर हमला कर देते हैं। चाहे नेपोलियन हो या हिटलर, रूस ने एक जैसी रणनीति अपनायी।
1706 में स्वीडन के राजा चार्ल्स पोलैंड को हराते हुए रूस की ओर बढ़ रहे थे। उनकी योजना थी कि मॉस्को पर विजय पाकर वहाँ एक कठपुतली सरकार बना देंगे। उस समय पूरे यूरोप में वह सर्वश्रेष्ठ सेनापति माने जाते थे, तो यह बात मुमकिन लग रही थी।
ज़ार पीटर ने उन्हें नहीं रोका। उन्हें अंदर आने दिया। वे सिर्फ़ एक काम करते रहे कि उनकी ‘सप्लाइ-चेन’ काटते रहे। जब स्वीडिश सेना मॉस्को तक पहुँच गयी तो पीटर की सेना ने मॉस्को के बाहर से घेर लिया। अब स्वीडिश एक चक्रव्यूह में फँस चुके थे। उनकी सप्लाई जो लटविया के रास्ते आ रही थी, वह मॉस्को नहीं पहुँच सकी। स्वीडिश सेना अपनी गति खो बैठी, और उन को हार मिली। उन्हें मॉस्को छोड़ कर लौटना पड़ा। ज़ार पीटर की सेना उस थकी-हारी सेना को द्नाइपर नदी के किनारे दौड़ा कर मारने लगी।
रूस ने बाल्टिक सागर और फिनलैंड पर कब्जा किया। पीटर ने समुद्र तट पर नया शहर बसाया-पीटर्सबर्ग। उन्होंने वहाँ कोई विशाल महल नहीं खड़ा किया। वह और उनके अन्य सहयोगी छह कमरे के घर में रहते थे। वह अब उस पोत से नौसेना विकसित करना चाहते थे। उन्होंने वहीं पीटर्सबर्ग में राजधानी बना कर दरबार बिठाना शुरू किया।
मॉस्को के कुलीनों को वहाँ के शाही महलों को छोड़ कर इस दलदली शहर पीटर्सबर्ग आने में कोई रुचि नहीं थी। मगर राजा का हुक्म था तो आना पड़ा।
खैर, उन कुलीनों ने भी अपनी योजना बना ली। नया शहर बसना था, तो इसका अर्थ था कि नई इमारतें बनेंगी, सड़कें बनेंगी। इसमें भ्रष्टाचार का अच्छा-ख़ासा स्कोप था। वे इनका ठेका लेकर मजदूरों का शोषण करने लगे, और सारी कमाई अपनी जेब में डालने लगे। जब ज़ार पीटर के पास यह शिकायत पहुँची, उन्होंने सभी भ्रष्टाचारी मंत्रियों को पकड़ कर उन्हें कोड़े लगवाए और कैद में डाल दिया।
पीटर को अब चिंता हो रही थी कि उनके बाद क्या होगा? उनकी कई पत्नियाँ और कई संतान थे, लेकिन सिर्फ़ बेटियाँ। एक बेटे अलेक्सी थे, जिनकी राज-काज में कोई रुचि नहीं थी। वह अपना समय नौकरों के साथ शराब पीने में व्यतीत करते। जब पीटर ने उन्हें डाँट लगायी, वह शहर छोड़ कर वियना भाग गए। ऑस्ट्रिया के राजा कार्ल उनके साले थे, जो उन्हें उनके पिता के ख़िलाफ़ भड़काने लगे।
उस समय ज़ार पीटर ने अपने एक ख़ास दूत पियोत्र तॉलस्तॉय (लियो तॉलस्तॉय के पूर्वज) को ऑस्ट्रिया भेजा। वह युवराज को मना कर ले आए। युवराज का साथ अब कई रूसी सामंत भी दे रहे थे। वे सभी मिल कर उन्हें गद्दी पर बिठाना चाह रहे थे। आखिर, ज़ार को अपने पुत्र को कैद करना पड़ा, और उन्हें यातनाएँ दी गयी। वहीं युवराज की मृत्यु हो गयी।
इस तरह इवान ‘द टेरिबल’ के बाद पीटर ‘द ग्रेट’ दूसरे महान राजा हुए, जिन्होंने अपने पुत्र युवराज को ही मार डाला। पीटर के बाद रूस में नया युग शुरू हुआ- महारानियों का युग!
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/12.html
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