Wednesday, 27 October 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - दो (13)


                    ( चित्र: रासपूतिन )
विश्व-युद्ध और रूस की क्रांति से पहले रूस में कुछ अजीबोग़रीब घट रहा था। ज़ार निकोलस और उनकी जर्मन पत्नी ज़ारीना अलेक्जेंड्रा संभवत: इस गद्दी के लिए बने ही नहीं थे। वे कहीं किसी सुदूर रोमांटिक स्थान पर अपना घर बसा कर रहते, तो अधिक सुखी रहते। वे यूरोप के पहले शाही जोड़े थे, जिनका एक कमरा था। यह बात वर्तमान काल में अटपटी लग सकती है, लेकिन शाही परिवारों या रईस कुलीनों में पति-पत्नी का भिन्न शयन-कक्ष भारत में भी रहा है। बेडरूम कंसेप्ट तो मध्य-वर्ग के उदय के साथ आया, और इसलिए ज़ार निकोलस के इस व्यवहार को इतिहास में दर्ज किया गया।

वे दोनों अव्वल दर्जे के अंधविश्वासी भी थे। उनकी गद्दी पर बैठने के कुछ ही वर्षों बाद एक फ्रेंच तांत्रिक फिलिप का साया उन पर पड़ा। वह किसी तंत्र-विद्या से उनके मृत पिता अलेक्सांद्र तृतीय को बुलाते थे, और वह ज़ार निकोलस को गाइड करते थे कि राज कैसे चलाना है। भला रूस जैसी महाशक्ति का शासक अगर इतना बेवकूफ़ हो, तो प्रजा क्रांति क्यों न करे? मैं यह बातें रूसी कम्युनिस्टों के लिखे ज़ार-विरोधी इतिहास से नहीं कह रहा, फिलिप पर दस्तावेज ही दस्तावेज हैं। ऐसा माना जाता था कि वही नेपथ्य से राज चला रहे थे, और कुछ उन्हें विदेशी एजेंट मानते थे। 

तांत्रिकों का शासकों का प्रभाव भारत में भी थोड़ा-बहुत रहा है। धीरेंद्र ब्रह्मचारी से चंद्रास्वामी तक उदाहरण रहे हैं। लेकिन, ज़ार निकोलस के समय एक के बाद एक तांत्रिक आते गए और कहीं न कहीं उनके पतन का कारण बने। जब  तांत्रिक फ़िलिप पर ज़ारीना से नाजायज संबंधों की खबरें चलने लगी, तो उन्हें महल छोड़ कर जाना पड़ा। उस समय तक ज़ार को बेटियाँ ही हुई थी, और उन्हें एक युवराज चाहिए था। 

फ़िलिप ने जाते हुए भविष्यवाणी की, “तुम संन्यासी संत सराफीम के शरण में जाओगे। वही तुम्हें बेटा दिलाएँगे।”

शायद यह बातें किसी मध्ययुगीन दंत-कथा की तरह लग रही होगी। ज़ार ने संत सराफ़ीम को उनके संन्यासी जीवन से निकाल कर राजधानी बुलाया। एक बड़ा उत्सव आयोजित किया जिसमें तीन लाख रूसी शामिल हुए। इससे पुन: सिद्ध होता है कि भांग सिर्फ ज़ार निकोलस ने नहीं पी थी, बल्कि पूरे कुएँ में ही भांग थी। रूसी पूरे श्रद्धा-भाव से उत्सव में पहुँचे थे कि संत उन्हें एक युवराज का वरदान देने वाले हैं। ज़ार और ज़ारीना संत के आदेशानुसार सरावो नदी में उतर कर पुत्र-कामना करने लगे। 

अंधविश्वास चरम पर था, किंतु भविष्यवाणी सत्य हुई। इस उत्सव के बाद ही 1904 में ज़ारीना गर्भवती हुई, और उन्होंने पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम अलेक्सी रखा गया, जो पैदा होते ही अगला ज़ार नियुक्त कर दिया गया। कुछ ही महीनों बाद उन्होंने देखा कि इस शिशु को एक विचित्र बीमारी है। कभी उसकी नाभि से रक्त बहने लगता, कभी हल्की सी चोट से ही खून जमा हो जाता। 

यह हीमोफिलिया बीमारी थी, जो महारानी विक्टोरिया के रास्ते उनके कई बेटे-पोतों तक पसरा, जिनमें अधिकतर जल्दी मर गए। इस आनुवंशिक बीमारी के चांस तब अधिक बढ़ते जाते हैं, जब विवाह निकट परिवार में हो। महारानी को यह बताया गया था कि आप अपनी बेटियों का विवाह शाही परिवार में न करें, लेकिन यह उनकी शान के ख़िलाफ़ था। हाल्डेन नामक वैज्ञानिक ने लिखा है, “शाही परिवार में पसरता हीमोफिलिया रोग उनके द्वारा विज्ञान को नकारने का ही परिणाम था”

इस रोग का इलाज उस समय चिकित्सा-शास्त्र में नहीं था। बालक अलेक्सी दर्द से कराह रहा होता। तभी किसी मंत्री ने ज़ार को बताया, “ग्रेगरी रासपूतिन नामक एक साइबेरिया का संत है, जो कज़ान से होते हुए अब यहाँ राजधानी आया है। सुना है, उसके पास जादुई शक्तियाँ है।”

जब पहली बार यह लंबे बालों और पथरीली आँखों वाला शख्स बालक एलेक्सी के पास आया तो उसने बस इतना कहा, “मैं तुम्हारे सभी दर्द हर रहा हूँ। अब तुम इस दर्द से मुक्त हो रहे हो।”

और जादू! बच्चा चुप हो गया। इस तरह के संस्मरण हैं कि फ़ोन पर रासपूतिन की आवाज़ सुन कर भी बच्चा दर्द से मुक्त हो जाता था। मेरे लिए तो ऐसी अवैज्ञानिक बातों को मान पाना कठिन है। मैं इन वू-डू और तंत्र-मंत्र से निकल कर अब जमीन पर आता हूँ। 

दुनिया में एक ऐसी शक्ति का उदय हो रहा था, जो दिखने में भले छोटी थी मगर घाव गंभीर करती थी। वह इकलौती एशियाई शक्ति थी, जिसने दोनों विश्व-युद्धों में पूरे दम-खम से भाग लिया। 1905 में ज़ार निकोलस की रूस को साइबेरिया तट पर उनसे कड़ी शिकस्त मिली। छोटे-छोटे द्वीपों से बना वह देश ‘जापान’ अब प्रशांत महासागर से चीन तक अपना झंडा गाड़ चुका था। 

अपनी हार के बाद पोर्ट्समाउथ में संधि-पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए ज़ार निकोलस शर्म से गड़ गए। जब वह राजधानी लौटे तो रूस में क्रांति की पहली चिनगारी भड़क उठी थी। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - दो (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/12_27.html
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