Wednesday, 29 May 2019

सरकार का शपथ ग्रहण और पुलवामा हमले के शहीद / विजय शंकर सिंह

लोकसभा का पूरा चुनाव पुलवामा की आतंकी घटना, जिसमे 40 जवान शहीद हुए थे के मुद्दे पर लड़ा गया था, पर आज जब सरकार शपथ ग्रहण करने जा रही है तो उनके आश्रितों को उक्त समारोह में कोई आमंत्रण नहीं है ! सेना, सुरक्षा बल और पुलिस के जवान शहादत के बाद बस राजनीतिज्ञों के लिये सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी बन कर रह जाते हैं। यह कटु है पर सच भी है।

बंगाल में राजनीतिक हत्याओं में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनो को शपथग्रहण समारोह में बुलाया तो गया है पर पुलवामा के शहीदों के परिजन दरबार के इस उत्सव से दूर रखें गये हैं। बंगाल के राजनीतिक हत्याओं के पीड़ितों के परिजनों को बुलाने पर कोई आपत्ति नहीं है, पर अगर इन्हें आमंत्रित किया जा रहा है तो पुलवामा के शहीदों के परिजनों को क्यों भुला दिया जा रहा है ?

यह समारोह, किसी दल विशेष का नहीं है बल्कि जनादेश प्राप्त सरकार के पदग्रहण का है। पुलवामा के शहीद सरकार की सुरक्षा बल के थे। वे किसी दलगत स्वार्थ, प्रतिद्वंद्विता, शत्रुता, या राजनीतिक उद्देश्य के कारण हत नहीं हुये हैं, बल्कि उन्होंने देश को बचाने के लिये, आतंकियों से लड़ते हुये शहीद हुये थे। अतः उन्हे नजरअंदाज कर के अपने दल के ही पीड़ितों को समारोह में बुलाना क्षुद्रता और स्वार्थपरता है।

बंगाल में राजनीतिक हत्याओं का इतिहास बहुत पुराना है। मारे गए सभी बीजेपी के कार्यकर्ताओं के प्रति मेरी सहानुभूति है। उनकी हत्या भी किसी की भी हत्या के समान निंदनीय है और बंगाल सरकार की प्रशासनिक विफलता है। पर यह निमंत्रण बंगाल के ही राजनीतिक हत्याओं के पीड़ितों तक क्यों सीमित है। अगर इस आयोजन में हत्याओं के पीड़ितों के परिजनों को बुलाने का उद्देश्य राजनीतिक हत्याओं के प्रति संवेदना और सरकार की चिंता दिखाना है तो देश भर के उन सभी राजनीतिक हत्याओं के पीड़ितों के परिजनों को बुलाया जाना चाहिये था। क्या बंगाल केवल इसलिए चुना गया है कि वहां चुनाव होने वाला है और तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की आपसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता लगभग निजी शत्रुता तक पहुंच गयी ?

दरअसल, पुलवामा के शहीद अब प्रासंगिक नहीं रहे। उनका जितना राजनीतिक दोहन हो सकता था हो चुका। सत्ता के शिखर पर पहुंच कर वह सीढ़ी अब समेट ली गयी है । अब बंगाल में चुनाव है और उस चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए बंगाल से ही राजनीतिक हत्याओं के पीड़ित परिजनों को बुला कर एक सीढ़ी और तैयार करनी है तो वह की जा रही है।

दो तीन पहले प्रधानमंत्री जी का संसद के सेंट्रल हॉल में दिया गया भाषण दुबारा सुनिये। यूट्यूब पर है। खूबसूरत और विश्वास से भरा हुआ, एक स्टेस्ट्समैन की तरह बोलते हुये प्रधानमंत्री दिख रहे हैं। उन्हें सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास चाहिये। उनकी यह प्रत्याशा उचित भी है। पर आज के समारोह का यह दलीय संकीर्णता और स्वार्थपरता से भरे आमंत्रण का निर्णय, जो पुलवामा के शहीदों को दरकिनार कर के लिया गया है, प्रधानमंत्री के उक्त ओजस्वी भाषण के भाव के बिल्कुल उलट है। इस पर एक बहुत मौजूं शेर है, वह भी पढ़ लिजिये,
सियासत की अपनी जुबां होती है,
लिखा हो इकरार तो इनकार पढ़ना !!

आज के समारोह में लोकसभा चुनाव 2019 के मुख्य मुद्दे पुलवामा हमले के शहीदों के परिजनों और सर्जिकल स्ट्राइक के बहादुर विंग कमांडर अभिनंदन को कम से कम इस समारोह में आमंत्रित तो किया ही जाना चाहिये । अब भी उन्हें आमंत्रित किया जा सकता है। अब टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार, एक शहीद के परिजन को जब कल से सोशल मीडिया पर हंगामा मचा तो आमंत्रित किया गया है। वे हैं, पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के एक सीआरपीएफ के शहीद जवान सुदीप विश्वास की मां ममता विश्वास । हालांकि वह खराब स्वास्थ्य कारणों से समारोह में सम्मिलित नहीँ हो पा रही हैं। 

यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिजन और पुलवामा शहीद के परिजन भी केवल बंगाल से ही क्यों आमंत्रित किये गये हैं ? क्या इसलिए कि बंगाल बीजेपी के एजेंडे में इस समय प्राथमिकता में है और वहां विधानसभा के चुनाव हैं ? कम से कम सरकार के शपथग्रहण समारोह को दलगत, क्षेत्रगत और चुनावी लाभ हानि की राजनीति से अलग रखा जाना चाहिये । इन सारे घटनाक्रम से एक भोजपुरी कहावत याद आ गयी, ऊंट क चोरी निहुरे निहुरे !!

© विजय शंकर सिंह

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