कल 17 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस जो भाजपा मुख्यालय में आयोजित की गयी थी वह किसी भी दृष्टिकोण से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं थी। वह पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस थी। अमित शाह एक बॉस की तरह उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नज़र आये। प्रधानमंत्री उनके अधीनस्थ दिखे भी और नरेंद मोदी ने यह स्वीकार भी किया कि वे एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह हैं, जो कुछ भी बोला जाएगा वह पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ही बोलेंगे। और अमितप्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। उसकी प्रेस कॉन्फ्रेंस या तो पीआईबी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो में होती है या विज्ञान भवन या पीएम आवास पर। वह प्रेस कॉन्फ्रेंस सरकार की नीतियों, काम काज और उपलब्धियों पर होती है। उसमें कोई भी सत्तारूढ़ दल का पदाधिकारी सम्मिलित नहीं होता है। यह प्रेस कांफ्रेंस पार्टी मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष की अध्यक्षता में हुयी थी। पीएम ज़रूर उसमे उपस्थित थे। पर जैसा कि उन्होंने खुद ही कह दिया कि वे एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह हैं और अपनी बात कह करके उन्होंने सवालों का उत्तर देने का काम भाजपा अध्यक्ष पर छोड़ दिया।
प्रधानमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस की एक परंपरा रही है जो वर्तमान प्रधानमंत्री ने न जाने क्यों तोड़ दी। यहां तक कि मौनी बाबा के नाम से पुकारे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी अपने दस साला कार्यकाल में नियमित प्रेस कांफ्रेंस की हैं। विदेश यात्राओं के वापसी के बाद जो पत्रकार प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं के सहयात्री होते थे उनसे तो प्रेस कांफ्रेंस जहाज में ही हो जाती थी। विदेश से लौट कर उस यात्रा के बारे में पीएम राष्ट्रपति से मिल कर यात्रा का विवरण उपलब्धि आदि देने की भी परंपरा थी। यह प्रेस कांफ्रेंस सरकार के मुखिया का जनता से प्रेस के माध्यम से संवाद होता है। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में जनता से संवाद कम नहीं किया। पांच साल में सबसे अधिक रैलियां करने का कीर्तिमान भी संभवतः इन्ही के नाम होगा। हर माह होने वाली मन की बात तो उनका मासिक संवाद तो था ही। उन्होंने प्रसून जोशी, अक्षय खन्ना को गैर राजनीतिक इंटरव्यू दिए। कुछ और पत्रकारों के साथ रूबरू बात भी की। पर पूरी प्रेस कांफ्रेंस जिसमे सवाल जवाब हों वह करने का साहस प्रधानमंत्री अंत तक नहीं कर पाए।
इस प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पहले 22 मिनट तक बोले। सभी पत्रकारों को उम्मीद थी कि पार्टी अध्यक्ष केवल उपस्थित रहेंगे और सारा संबोधन, सवाल जवाब प्रधानमंत्री करेंगे। क्योंकि सरकार की उपलब्धि, कामकाज पर तो उन्ही का बोलना उचित था। पर पार्टी अध्यक्ष ने गर्मी के कारण पीएम की लगभग दो सौ सभाओं का उल्लेख किया, प्रधानमंत्री की ऊर्जा का बखान किया और भाजपा संगठन के चुनाव में योगदान की बात की। शक्ति समितियों और मेरा बूथ सबसे मजबूत आदि सांगठनिक कार्यक्रमों और उपलब्धियों को उन्होंने गिनाया। इसमें कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वे सरकार नहीं बल्कि संगठन के प्रमुख हैं तो वे अपनी उपलब्धियों का विवरण प्रेस को दे रहे थे। उनका पूरा भाषण भाजपा का चुनाव में योगदान पर रिपोर्ट कार्ड था।
22 मिनट तक अपनी बात कहने के बाद अमित शाह ने जब माइक पीएम नरेंद्र मोदी को दिया तो उनकी नरेंद्र मोदी की मुखमुद्रा और देहभाषा में आत्मविश्वास का अभाव था। भाजपा कार्यालय से जो अनुरोध प्रेस को जारी किया गया था, उसमें पीएम के मात्र उपस्थिति का ही नहीं उल्लेख था, बल्कि पीएम द्वारा प्रेस कांफ्रेंस किये जाने का उल्लेख था। पांच साल में पहली बार पीएम खुले प्रेस से रूबरू होने जा रहे हैं यह अपने आप मे ही एक खबर है। एक ऐसे प्रेस कांफ्रेंस जिसमें कोई तयशुदा सवाल न हों, ट्यूटर्ड जवाब न हो तो ऐसी प्रेस कांफ्रेंस का महत्व और बढ़ जाता है। पर इस प्रेस कांफ्रेंस में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी ने बोलना शुरू किया, पर आवाज़ में वह कशिश नहीं थी और न चेहरे पर कोई तेज। उनका हाव भाव बिलकुल अफसर दोयम की तरह दिखा। पांच साल से जो गुब्बारा फुला कर और अप्रत्याशित रूप से विराट प्रतिविम्ब खड़ा किया जा रहा था वह बेदम नज़र आया। हो सकता है, यह प्रधानमंत्री की चुनाव प्रचार के दौरान हुयी थकान के कारण हो। या 23 मई के परिणाम की चिंता हो या कोई और कारण हो, यह तो वही बता सकते हैं। पर उनके भाषण में ओज का अभाव था। उन्होंने गर्मी, सट्टा बाजार की हकचल, आईपीएल और उसके साथ साथ चुनाव की बात की पर अपनी सरकार के पांच साला उपलब्धियों पर कुछ भी नहीं कहा। जब उनसे कुछ पत्रकारों ने सवाल किया तो उन्होंने पार्टी अध्यक्ष की ओर कुछ बोलने का इशारा कर दिया।
पार्टी अध्यक्ष ने भी अपने प्रारंभिक उद्बोधन में सरकार से जुड़ी किसी उपलब्धि का ब्यौरा नहीं दिया, बल्कि पार्टी प्रमुख होने के नाते पार्टी के प्रसार, और चुनावी तैयारियों का ही उल्लेख किया और बूथ से लेकर पार्टी मुख्यालय तक के आधारभूत ढांचे का जिक्र किया। पार्टी अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री के अचानक आगमन को आंनद और आश्चर्य से देखा। पार्टी अध्यक्ष नरेंद्र मोदी जी के अपेक्षाकृत अधिक आत्मविश्वास से भरे नज़र आये। उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर के गोडसे से जुड़े बयानों पर भी अपनी राय रखी। प्रज्ञा ठाकुर के बारे में कहा गया कि उनका बयान निजी बयान है और भाजपा को उनके बयान से अलग बताया गया। प्रज्ञा को कारण बताओ नोटिस जारी कर दस दिन का समय अपनी बात कहने के लिये दिया गया। पर प्रज्ञा ठाकुर को एक विस्फोट के मामले में मुल्ज़िम होने के बावजूद लोकसेवा का प्रत्याशी क्यों बनाया गया। अनन्त कुमार हेगड़े के भड़काऊ बयानों पर कभी रोक लगाने की बात पार्टी ने क्यों नहीं की। पर ये असहज करने वाले सवाल किसी ने नहीं पूछे और पूछते तो उनका क्या उत्तर मिलता यह अनुमान ही लगाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने भी अपनी बात में सरकार की उपलब्धियों और कामकाज के बारे में कुछ नहीं कहा। यहां तक कि मास्टरस्ट्रोक कहे जाने वाले कदम नोटबंदी, जीएसटी, आयुष्मान योजना, मुद्रा लोन आदि आदि पर उन्होंने कोई चर्चा ही नहीं छेड़ी। बात उठती तो फिर सवाल जवाब भी होते और सरकार का पक्ष भी स्पष्ट होता। उन्होंने भीचुनाव प्रचार की बात की और अपने दल को पुनः बहुमत में आने की संभावना जताई। फिर जब उनसे सवाल पूछे गए तो उन्होंने यह जिम्मेदारी भी पार्टी अध्यक्ष पर टाल दी। क्या यह इस लिये कि यह प्रेस कांफ्रेंस पार्टी मुख्यालय में हो रही थी और वहां पार्टी की ही बात होनी चाहिये न कि सरकार की ? पहली बार के अनेक कीर्तिमानों के दावे के बीच किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा अपने पांच साला कार्यकाल में कोई भी औपचारिक प्रेस कांफ्रेंस न करने का दावा भी वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही खाते में गया।
अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस पर कमाल की रिपोर्टिंग की है। अखबार ने अपने प्रथम पृष्ठ पर प्रधानमंत्री मोदी की मूक फ़िल्म शीर्षक देकर यह खबर छापी है। अखबार के पहले पन्ने के कुछ अंश जानबूझकर खाली छोड़ दिये गए हैं कि जब पीएम प्रेस कांफ्रेंस में कुछ कहेंगे तो वहां उन्हें लिखा जाएगा। लगभग सभी प्रतिष्ठित अखबारों ने इस प्रेस कांफ्रेंस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और सबकी प्रतिक्रिया आश्चर्य से भरी है कि यह कैसी प्रेस कॉन्फ्रेंस जिसमे न सवाल न जवाब, न बाद न विवाद, बस वही पांच साल से चला आ रहा एकालाप। इस प्रेस कांफ्रेंस पर उर्दू के महान शायर ग़ालिब का यह शेर बरबस याद आ गया।
थी खबर गर्म कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे,
देखने हम भी गये थे प तमाशा न हुआ !!
© विजय शंकर सिंह
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