29 मई की खबरों के अनुसार, आगरा में, अखिल भारतीय हिंदू महासभा (एबीएचएम) ने हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर 10 वीं और 12 वीं के छात्रों के बीच चाकूओं का वितरण किया। एबीएचएम के प्रवक्ता ने इसकी जानकारी दी। महासभा के प्रवक्ता अशोक पांडेय ने कहा कि सावरकर का सपना 'राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण' था।
उनका तर्क है, "मोदीजी ने लोकसभा चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल कर उनके पहले सपने को पूरा कर दिया है। हम उनके दूसरे सपने को चाकू बांटकर और हिंदू को सैनिक बनाकर पूरा कर रहे हैं। अगर हिंदुओं को खुद और अपने देश की सुरक्षा करनी है तो उन्हें हथियार चलाने के बारे में सीखना चाहिए।"
महासभा की राष्ट्रीय सचिव पूजा शकुन पांडेय ने कहा कि यह हिंदुओं को प्रेरित करने और उन्हें सशक्त करने की पहल है, खासकर युवा पीढ़ी चाकुओं से खुद की सुरक्षा करेगी।
पूजा शकुन पांडे इस वर्ष तब सुर्खियों में छा गई थी जब उसने महात्मा गांधी के पुतले को पिस्तौल से गोली मारती हुई तस्वीर खिंचवाई थी। पूजा ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने परीक्षाओं में अच्छा नतीजा हासिल करने वाले बच्चों के बीच भगवद गीता की एक प्रति के साथ चाकुओं का भी वितरण किया है, ताकि वे जान सकें कि कब और क्यों इसका प्रयोग करना है।
चाकू के पीछे का तर्क पढिये, "मैं चाहती हूं कि वे मजबूत और स्वतंत्र महसूस करें और अपनी बहनों व परिजनों की रक्षा कर सकें।" उसके अनुसार, महिलाओं और बच्चियों के विरुद्ध अपराध के कई मामले हो रहे हैं और उन्हें भी खुद की सुरक्षा के लिए चाकू चलाने का प्रशिक्षण लेना चाहिए।
हिंदू महासभा द्वारा सावरकर जयंती पर नाबालिग बच्चों को चाकू देने का कार्यक्रम किया गया। अगर सावरकर से जुड़ी ही कोई चीज़ देनी थी तो, 1857 के विप्लव पर उनके द्वारा लिखी उनकी पुस्तक, ही बच्चों को दे दी गयी होती। बच्चे नाबालिग थे तो यही पुस्तक चित्रों में सरल भाषा मे छाप कर दे दी गयी होती। कुछ नहीं तो सावरकर पर कुछ जानकारी ही बच्चों को उपलब्ध करा दी गयी होती। बच्चे कम से कम कुछ सकारात्मक सामग्री से रूबरू होते, कुछ पढ़ते और सावरकर के बारे में कम से कम एक बेहतर धारणा ही बनाते।
यह चाकू वाला आत्मघाती आइडिया जिस किसी भी हिंदू महासभा वाले का है वह सनातन धर्म का परम शत्रु ही होगा। चाकू पाने वाले बच्चे, सावरकर को एक चाकूबाज़ और गुंडा समझें क्या हिंदू महासभा वाले यही चाहते हैं ?
हम आप मे से कितने लोग ऐसे हैं जो अपने नाबालिक या बालिग बच्चे के हांथो में किताब की जगह चाकू छुरी और कट्टा बम देखना पसंद करेंगे ? मैं समझता हूं शायद एक भी नहीं। अगर नहीं तो हिंदू महासभा के इस गुंडागर्दी वाले अभियान के विरुद्ध खड़े होइये और पहले अपना घर, परिवार और बच्चों को देखिये और इन गुंडो से बचाइए । गुंडे घरों में बड़ी मीठी मीठी नीति और धर्म की बात करके घुसते हैं बाद में वह घर, गुंडों का ही आरामगाह बन जाता है। सावरकर के बारे में उन्हें ज़रूर बताइये, पर सावरकर के गुणों को न कि उनकी जयंती पर चाकू बांट कर उनकी क्षवि एक चाकूबाज की तो न बनाइयें।
इस घटना पर मित्र विजय शुक्ल जी ने एक कविता भेजी है, वह मैं यहां साझा कर रहा हूँ।
मां मुझे तू चाकू दे दे,
मैं भी सांसद बन जाऊं।
बम फोडूं बाजारों में,
और टिकट पा जाऊं।
सत्ता की गोद मे बैठूं,
कानून से मुक्ति पाऊं।
मां मुझे तू चाकू दे दे...
गांधी का पुतला लगवा कर,
उसपे गोली चलवाऊं।
गोड़से को याद करके,
उसे अमर कर जाऊं।
मां मुझे तू चाकू दे दे.....
सत्य अहिंसा के विरोध में,
सड़कों पर आ जाऊं।
जो नारा लगाए गांधी का,
दौड़ दौड़ पिटवाऊं।
घर घर मे नफ़रत बोकर,
उसका फल मैं खाऊं।
मां मुझे तू चाकू दे दे...
© विजय शंकर सिंह
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