Monday, 20 May 2019

महात्मा गांधी के रूप में बेन किंग्सले / विजय शंकर सिंह

आप मे से बहुतों ने महात्मा गांधी पर रिचर्ड एटनबरो द्वारा बनायी गयी कालजयी फ़िल्म 'गांधी' देखी होगी। प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली इस फ़िल्म में गांधी जी का अभिनय बेन किंग्सले ने किया था। उनके अभिनय की पूरी दुनिया मे सराहना हुयी थी। फ़िल्म डॉक्युमेंट्री की तरह से लगती है पर गांधी जी के जीवन के अनेक अंतरंग क्षणों और मनोभावों को बेन से बड़ी ही खूबसूरती से जिया है।

गांधी का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जो योगदान रहा है वह अनुपम था। ऐसा बिल्कुल नहीं कि गांधी को ही देश की आज़ादी का सारा श्रेय दे दिया जाय। ऐसा करना सभी ज्ञात अज्ञात स्वाधीनता के लिये अपना बलिदान करने वालों के पुरुषार्थ को नकारना होगा। निश्चित ही गांधी जी आज़ादी के लड़ाई का प्रमुख और सर्वस्वीकृत चेहरा थे। इसका कारण असहयोग और सत्याग्रह की उनकी अनोखी शैली थी। अगर एक वाक्य में कहा जाय कि गांधी जी का देश की आज़ादी में क्या योगदान है तो उसका एक ही उत्तर होगा,उन्होंने सत्याग्रह, असहयोग और अपने अहिंसक आंदोलनों से आभिजात्य समाज के ड्राइंग रूम में आज़ादी पर जो बहस चल रही थी, उसे गांधी जी ने जन जन तक पहुंचा दिया । पिटिशन, शिष्टमंडलों द्वारा आज़ादी या खुदमुख्तारी के कुछ कानून मांगने के बजाय उन्होंने जनता को उद्वेलित और संगठित कर अपने समय मे दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य के सामने खड़ा कर दिया। अंग्रेज जिस समाज और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से आते थे, उनके लिये असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, नमक कानून उल्लंघन और भारत छोड़ो आंदोलन एक अजूबे की तरह थे। वे सोच भी नहीं सके थे एक अस्थिशेष मनुष्य के निर्देश पर पूरा भारत खड़ा हो जाएगा।

यह फ़िल्म पूरी दुनिया मे प्रदर्शित हुयी और चर्चित भी हुयी। बेन किंग्सले ने गांधी की भूमिका के दौराम वैसा ही हाव भाव और असल चरित्र में दिखने के लिये गांधी जी की तरह वेशभूषा, निरामिष भोजन और उनके चाल ढाल की नकल की। बेन किंग्सले ने कोई अजूबा नहीं किया, यह सभी महान कलाकार अपने अभिनय को अधिक से अधिक वास्तविक दिखने के लिये मूल चरित्र के गुणों अवगुणों को अधिकतम आत्मसात करने की कोशिश करते हैं। फ़िल्म के बन जाने पर लगातार गांधी की ही वेशभूषा, चाल ढाल, खान पान आदि में रहने के कारण बेन किंग्सले पर गांधी जी का जादुई असर पड़ा और बेन किंग्सले ने फ़िल्म के दौरान शराब और सामिष भोजन तो छोड़ा ही था, बल्कि फ़िल्म के बाद भी उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हीने अपने शेष जीवन मे भी मांसाहार और मदिरा का लगभग त्याग कर दिया है और अपने जीवन को जितना वे सादा और सरल बना सकते थे वैसा कर लिया। बेन किंग्सले का जीवन इस फ़िल्म के बाद बहुत कुछ बदल गया था।

आप जिस पात्र का अभिनय करते हैं, जिसके जीवन को जीने की कोशिश करते हैं, उसका आप पर प्रभाव पड़ता है। धीरे धीरे वास्तविक जीवन में भी वैसा ही होते जाते हैं। पर यह उस पर निर्भर करता है कि आप किसका जीवन कितनी शिद्दत से जीते हैं। अभिनय नकल नहीं है अभिनय उस पात्र और चरित्र को ओढ़ लेना होता है, उसे जी लेना होता है, जिसे पर्दे या रंगमंच पर उतारा जाता है। बेन किंग्सले आज अचानक याद आ गए।

© विजय शंकर सिंह

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