Thursday 23 May 2019

जनादेश 2019 - भाजपा के मित्रों को विजय की बधाई / विजय शंकर सिंह

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की यह विजय अनेक मामलों में महत्वपूर्ण है। सबसे पहले तो इसने यह भ्रम तोड़ा कि, जनता से जुड़े मुद्दे जिन पर जनता का जीवन अवलंबित है, वह चुनाव में उलट फेल करने में सफल हो सकते हैं। इन मुद्दों को जनता राजकाज समझ कर बहुत ध्यान नहीं देती है। इसीलिए इस चुनाव में आर्थिक मंदी की आहट, बेटोज़गारी, गिरता औद्योगिक उत्पादन आदि वे मुद्दे जो जनता को सीधे छूते हैं चुनावी हारजीत के लिये मुद्दे नहीं बने। महाराष्ट्र जहां पर सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या की है वहां भी किसान त्रासदी कोई प्रभावी मुद्दा नहीं बन पाया। यह वही महाराष्ट्र है, जहां नाशिक से मुम्बई या पुणे से मुम्बई तक किसानों ने दो लंबे लांग मार्च निकाले जिनकी देश भर में इसकी चर्चा हुयी। पर इसी महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में में किसानों से जुड़ी सारी समस्याएं कोई मुद्दा नहीं बनी।

इन सब मूल समस्याओं के बाद मुद्दा बनती हैं, नेता का धार्मिक पर्यटन, खानपान की निजी आदतें, महंगे और प्रायोजित रोड शो। लाल कालीन और गुलदस्ते । रघुवीर सहाय की एक कविता की पंक्ति उद्धरित करूँ तो,
राष्ट्रगीत मैं कौन भला वह भारत भाग्य विधाता है,
फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है।
यह कीचड़ में खड़े होकर निरभ्र आकाश में खूबसूरत पर अप्राप्य चांद को निहारने जैसा है।

अगर विजय की आतिशबाजी की चकाचौंध से मुक्त होकर भाजपा के मित्र ही यह आत्मावलोकन करें कि आखिर उन्होंने पिछले पांच सालों में क्या देख कर इस सरकार को जनादेश दिया है तो खुद को भी एक शून्य में पाएंगे। अब यह तो वही बता पाएंगे कि उन्होंने दुबारा जनादेश दिया क्यों है। आर्थिक मुद्दों को दरकिनार कर वह पाकिस्तान और बालाकोट तथा पुलवामा पर आ जाएंगे। हम बालाकोट को एक उपलब्धि मान लेते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक को भी सरकार की उपलब्धि मानते हुए प्रधानमंत्री का साहसिक कदम मान लेते हैं। पर यह सारी उपलब्धि, पिछले पांच साल की अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट को देखते हुए सरकार को जवाबदेही से मुक्त नहीं करती है।

डॉ राममनोहर लोहिया, देश के बड़े समाजवादी नेता थे। 1937 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना के बाद से 1967 में अपने अवसान तक, वे जवाहरलाल नेहरू के प्रखर आलोचक रहे। जब कांग्रेस कहती थी कि वह लैम्पपोस्ट को खड़ा कर दे तो वह चुनाव जीत सकता है, तब भी डॉ लोहिया ने नेहरू की प्रखर आलोचना की थी। लेकिन वही लोहिया 1952,57 और 62 तीनों सामान्य चुनाव हार जाते हैं। इसमे से एक चुनाव तो उन्होनें जवाहरलाल नेहरू के ही खिलाफ फूलपुर से लड़ा था और वे पराजित हुए थे।

लगातार तीन चुनावो में हारने के बाद जब उनसे पूछा गया कि क्या संसदीय लोकतंत्र में अब भी उनकी आस्था है ? लोहिया 1962 के चुनाव में अपनी पराजय से खिन्न थे। उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक वाक्य कहा कि सफलता सदैव महत्ता का मापदंड नहीं होती। तभी उन्होंने अपना कालजयी उद्धरण दिया था, ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती हैं। 1962 की हार के बाद, डॉ लोहिया फर्रुखाबाद से एक उपचुनाव में 1963 में जीते और जब तक सांसद रहे, वे देश के सबसे चर्चित सांसद रहे। देश के संसदीय इतिहास में जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव उन्होंने ही पेश किया था। उस अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में की गई उनकी बहस, संसद का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। 1952, 57, और 62 में भी उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दे उठाए थे, पर नेहरू के विराट और वैश्विक व्यक्तित्व के आगे वे सारे मुद्दे हवा बन गए।

यह जनादेश स्पष्ट है और प्रधानमंत्री तथा भाजपा के पक्ष में है। जनता ने चाहे जिस मुद्दे के कारण यह जनादेश भाजपा को दिया है उस पर अब नहस बेमानी है। यही सरकार नए कलेवर में अपना काम शीघ्र ही शुरू करेगी। लोकतंत्र में पक्ष विपक्ष दोनों ही प्रासंगिक होते हैं। सरकार के कामकाज की समीक्षा पहले की ही तरह अपने अपने दृष्टिकोण से की जाएगी। राम मंदिर, धारा 370, समान नागरिक संहिता आदि आदि जो बीजेपी के कोर मुद्दे हैं, उन पर सरकार का अब क्या रुख रहता है यह देखना दिलचस्प होगा।

आज विजय की रात है। विजय का आनन्द अनोखा होता है। भाजपा के सभी मित्रों को, प्रधानमंत्री, भाजपा अध्यक्ष और सभी विजयी सांसदों को बहुत बहुत बधाई। जनादेश का जो भी कारण हो लोकतंत्र में जनादेश का स्वागत सदैव किया जाना चाहिये। सरकार से यह आशा की जानी चाहिये कि वह संकल्पपत्र 2014 के शेष वादों सहित 2019 के वादों को भी पूरा करेगी।
सभी को शुभकामनाएं !

© विजय शंकर सिंह

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