ग़ालिब - 106.
क्या आबरू ए इश्क़, जहां आम हो जफ़ा,
रुकता हूँ, तुमको बेसबब आज़ार देख कर !!
Kyaa aabaroo e ishq, jahaan aam ho jafaa,
Ruktaa hun, tumko besabab aazaar dekh kar !!
- Ghalib
जब जगत में बेवफाई ही स्थायी भाव हो चुका हो, तो वहां प्रेम का सम्मान और मान कौन करे। तुम्हे बिना कारण के दुःख पहुंचते देख मैं चुप हो जाता हूँ।
ग़ालिब जगत को बेवफाई से भरा पाते हैं। हो सकता हो उन्हें कदम कदम पर यही अनुभव हुआ हो। बेवफाई के इस आलम में भला इश्क़ का क्या ठिकाना। ग़ालिब इस शेर में उदास दिखते हैं। यह उदासी प्रेम में भरोसे का अभाव या उसे एक व्यापार समझ कर देखने की बदलती हुयी रवायत का परिणाम है। उनका कहना है दुनिया मे कौन है जिसे प्रेम के बदले प्रेम ही मिला हो। कुछ खुशकिस्मत होंगे पर अक्सर और अधिकतर लोगों को वफ़ा के बदले बेवफाई ही मिली है। जब सारा संसार ही धोखा, प्रपंच, स्वार्थ और आडम्बर से भरा हो तो फिर सच्चा इश्क़ या प्रेम की कीमत किसे है।
अब सौदा का एक शेर जो इसी थीम पर है, पढ़ें।
मेरी आँखों मे तू रहता है, मुझको क्यों रुलाता है,
समझ कर देख लो, अपना भी कोई घर जलाता है !!
( सौदा )
© विजय शंकर सिंह
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