सरकार पहले ज़ी ( zee ) के मालिक सुभाष चंद्रा का पासपोर्ट ज़ब्त करे । भरोसा कुछ नहीं। यह वे लोग है जो भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलते हुए, चार्टर्ड प्लेन से अचानक पलायन कर जाते है और फिर सागरपार से सुभाषित पढ़ने लगते है। विजय माल्या का अचानक पलायन याद है न ? जाते वक्त अरुण जेटली से मिलकर, माल्या के ही शब्दों में कहें तो, वे वित्तमंत्री को बताकर लंदन गये थे। संसद के सेंट्रल हाल में दोनों मिले थे। जब पत्रकारों ने वित्तमंत्री को इस मुद्दे पर घेरा तो याद कीजिये, लजाते हुये उन्होंने कहा भी था, हाँ वे कुछ कह तो रहे थे पर मैंने सुना नहीं। यही कहा कि अपनी बात बैंकों से कहिये। खैर विजय माल्या तो अब आ ही रहे हैं वापस।
और भी देशभक्त भगोड़े हैं। एक नीरव मोदी है और एक मेहुलभाई । मेहुलभाई भी भागने के पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास में एक समारोह में दिखा था। उसे पीएम से हमारे मेहुलभाई कह कर के सम्बोधित भी। जब सख्ती की गयी तो मेहुलभाई ने कह दिया कि चालीस घंटे की थकाऊ, उबाऊ और पकाऊ यात्रा कौन करे। नीरव मोदी ने तो यह भी कहा कि भारत मे सब चींथ देते हैं, यानी मॉब लिंचिंग का डर है तो आने से मना कर दिया। मेहुलभाई भी तो अब हमारे रहे भी नहीं। भारत माता की जय बोलते बोलते वे एंटीगुआ के हो गए। कोई बात नहीं हम तो विश्व बंधुत्व के पक्षधर है। सबै भूमि गोपाल की मानते हैं।
अरुण जेटली को अब भी देखें। अमेरिका में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं पर चिंता उन्हें चंदा कोचर की सता रही है। कह रहे हैं सीबीआई को उनके मामले में अधिक सख्ती, उन्हीं के शब्दों में इन्वेस्टिगेटिव ऐडवेंचरिज़्म से बचना चाहिए। 34 साल की नौकरी में मैंने इन्वेस्टिगेशन का यह प्रकार तो पहली बार सुना, जबकि ट्रेनिंग में मुरादाबाद और हैदराबाद दोनों जगह गया था। उनका ताज़ा ब्लॉग पढिये तो यह प्रसंग पता लग जायेगा। कमाल की अंग्रेजी लिखते हैं वे। हम जैसे भोजपुरी बेल्ट के लोग जो यूपी कॉलेज में पढ़े हैं उनकी अंग्रेज़ी के हिज्जे से ही आतंकित हो जाते हैं। यहीं पर अंग्रेज़ी के मास्टर साहब की नसीहत याद आती है कि, अंग्रेजी अखबार का एडिटोरियल पढ़ा करो। पढ़ने में ठीक ठाक था तो पढ़ भी लेते था पर कहाँ जेटली जी की अंग्रेजी कहां मेरी।
अरुण जेटली, ज़िंदगी भर तो कॉरपोरेट की वकालत किये। और हम लोग जब वे वित्तमंत्री बने थे, तो पांच साल से यह उम्मीद उनसे पाल बैठे रहे, कि, जनहितकारी, पीपुल्स फ्रेंडली बजट वे पेश करेंगे। पर दुर्भाग्य देखिये, वे बीमार हो गए। फिलहाल वे जल्दी स्वस्थ हों और वापस आये, यही कामना है। चुनाव में उन्हें ही जनता को उपलब्धियां बतानी भी है। बात भी सही है। उपलब्धियां भी कम थोड़े ही हैं। हम, वी द पीपुल हैं। बांग्ला कवि सुकांत भट्टाचार्य के शब्दों में ' हम सब तो सीढियां हैं !' तो सरकार कुछ तो कार्पोरेटी बाजीगरी से सबक ले और ज़ी ग्रुप में जो कुछ भी घट रहा है उस पर नज़र रखे। हम आप को होम सिकनेस अक्सर होती रहती है, पर इस कॉरपोरेटी जमात को कोई व्याधि नहीं व्यापती, सिवाय हाही के।
अब ज़ी समूह की व्यथा कथा भी पढ़ लें।
जी समूह की कंपनियों पर म्यूचुअल फंड और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का करीब 12,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जिसमें 7,000 करोड़ रुपये एमएफ कर्ज और 5,000 करोड़ रुपये एनबीएफसीज का कर्ज है। इसके कारण देश में एक और IL&FS संकट का खतरा पैदा हो गया है। बताया जा रहा है कि एमएफ कर्ज जोखिम पूरी तरह से जी के प्रमोटर के स्तर पर है। इसमें से बिरला एएफ से 2,900 करोड़ रुपये, एचडीएफसी से 1,000 करोड़ रुपये और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल से 750 करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है, जिसके फंसने का संकट है। वहीं, एनबीएफसी के मोर्चे पर माना जा रहा है कि एचडीएफसी लि. और एलएंडटी फाइनैंस का कर्ज फंसेगा।
जीन्यूज के सुभाष चंद्रा ने एक पत्र भी अपने निवेशकों को लिखा है । उस पत्र के अनुसार,
" सबसे पहले तो मैं अपने वित्तीय समर्थकों से दिल की गहराई से माफी मांगता हूं. मैं हमेशा अपनी ग़लतियों को स्वीकार करने में अव्वल रहता हूं. अपने फैसलों की जवाबदेही लेता रहा हूं. आज भी वही करूंगा. 52 साल के करिअर में पहली बार मैं अपने बैंकर, म्यूचुअल फंड, गैर बैकिंग वित्तीय निगमों से माफी मांगने के लिए मजबूर हुआ हूं. मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा हूं. कोई अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए मुकुट का हीरा नहीं बेचता है. जब प्रक्रिया चल रही है तब कुछ शक्तियां हमें कामयाब नहीं होने देना चाहती हैं. यह कहने का मतलब नहीं कि मेरी तरफ से ग़लती नहीं हुई है. मैं उसकी सज़ा भुगतने के लिए तैयार हूं. मैं हर किसी का क़र्ज़ चुकाऊंगा.’
यह उस पत्र का हिस्सा है जिसे सुभाष चंद्रा ने अपने निवेशकों और बैंकरों को लिखा है। रवीश कुमार के एक लेख के अनुसार,
" उनकी एस्सल इंफ्रा चार से पांच हज़ार करोड़ के घाटे में है। शेयर बेच कर कर्ज़ लेकर ब्याज़ और मूल चुका रहे हैं। "
सुभाष चंद्रा ने लिखा कि बंटवारे के बाद ज़्यादातर नए बिजनेस घाटे में रहे हैं। IL&FS का मुद्दा सामने आने पर स्थिति और बिगड़ गई है। "
रवीश कुमार ने पिछले साल सितंबर में कस्बा ब्लॉग में लिखा था कि
"इसमें पेंशन फंड और भविष्य निधि का पैसा लगा है। अगर आईएल एंड एफएस डूबती है तो हम सब प्रभावित होने वाले हैं। "
सुभाष चंद्रा भी यही बात कह रहे हैं कि इसके संकट ने उन्हें संकट में डाल दिया है। उनके पत्र की यह बात काफी महत्वपूर्ण है। आईएल एंड एफएस से कर्ज़ लेकर कई संस्थाएं अपना कर्ज़ चुकाती थीं। जब इन्होंने कर्ज़ नहीं चुकाया तो यह कंपनी ब्याज़ नहीं दे सकी और बाज़ार में संकट की स्थित पैदा हो गई।
सुभाष चंद्रा ने अपने पत्र में आगे लिखा है कि
" उनके खिलाफ नकारात्मक शक्तियां प्रचार कर रही हैं। उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस से शिकायत की है मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ये नकारात्मक शक्तियां बैंकों को पत्र लिख देती हैं जिनका असर उनके वित्तीय लेन-देन के अवसरों पर पड़ता है। आज जब ज़ी एंटरटेनमेंट को बेचने की प्रक्रिया सकारात्मक मोड़ पर है और मैं लंदन से लौटा हूं तो नकारात्मक शक्तियों के कारण किसी ने हमारे शेयरों की कीमतों पर हमला कर दिया है। "
एक ही दिन में एस्सल ग्रुप की कंपनियों के शेयर 18 से 21 प्रतिशत गिर गए और निवेशकों ने अपना 14,000 करोड़ निकाल लिया। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि नोटबंदी के तुरंत बाद 3000 करोड़ रुपये जमा करने के मामले की जांच की बात सामने आई है। यह जांच एसएफआईओ, सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन आफिस ( THE Serious Fraud Investigation Office) कर रहा है।
अब जब कई भगोड़े अपनी कम्पनियों के दिवालिया होने के कारण अरबों रुपए लेकर रातोंरात यहां से भाग गए हैं तो हो सकता है सुभाष चंद्रा की नीयत ऐसी न हो पर सरकार को एहतियात बरतना ज़रूरी है। नोटबंदी के समय 3000 करोड़ रुपये की राशि बैंकों में इस ग्रुप द्वारा जमा करायी गयी थी। पर यह समूह सरकार के बेहद करीब है तो सरकार और सभी तँत्र इनके प्रति सहानुभूति ही रखते रहे। पर अब जब आएल एंड एफएस कंपनी डूबने के कगार पर है तो यह भी उसी भंवर में है।
ज़ी ग्रुप के सुभाष चंद्रा की एस्सल इंफ्रा कंपनी भी चार से पांच हज़ार करोड़ के घाटे में है। शेयर बेच और कर्ज़ ले कर ब्याज़ और मूल चुका रहे हैं। IL&FS में पेंशन फंड और भविष्य निधि का पैसा लगा है। अगर IL&FS डूबती है तो हम सब प्रभावित होने वाले हैं। अब सुभाष चंद्रा भी लिख रहे हैं कि इसके संकट ने उन्हें संकट में डाल दिया है। उनके पत्र की यह बात काफी महत्वपूर्ण है। IL&FS से कर्ज़ लेकर कई संस्थाएं अपना कर्ज़ चुकाती थीं। जब इन्होंने कर्ज़ नहीं चुकाया तो IL&FS ब्याज़ नहीं दे सकी और बाज़ार में संकट की स्थित पैदा हो गई।
2014 के बाद सरकार ने जिन आर्थिक नीतियों को लागू किया है उनसे केवल कॉरपोरेट घरानों को ही लाभ मिला है। कॉरपोरेटी विकास का मूल मंत्र ही यह होता है बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। और जो मात्सन्याय कि गलाकाट, अविश्वसनीय, अनैतिक और अमर्यादित, पूर्णतः सर्वे गुणा कांचनमाश्रयन्ति पर आधारित समाज बनता है वह सीधे विनाश की ओर ले जाता है।
© विजय शंकर सिंह
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