राफेलसौदा को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। यह विवाद है कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के आपसी मुलाकात का। राहुल गांधी अभी कुछ दिनों के लिए गोवा में थे और वे मनोहर पर्रिकर जो बीमार हैं उन्हें देखने गए थे। मनोहर पर्रिकर लंबे समय से बीमार हैं और इसी बीमारी की हालत में ही वे अपने पद का निर्वाह भी कर रहे हैं। उक्त मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें मनोहर पर्रिकर ने बताया कि , उनका राफेल मामले में कुछ भी लेना देना नहीं है। यह बात जब प्रेस में और सोशल मीडिया में आयी तो, राफेल पर फिर आरोप प्रत्यारोप लगने शुरू हो गए। सरकार, विशेष कर प्रधानमंत्री इससे ज़रूर असहज हुये होंगे। तुरन्त मनोहर पर्रिकर साहब का खंडन एक पत्र के रूप में आ गया कि उनकी राहुल गांधी से हुयी मुलाकात बस पांच मिनट की थी और उस मुलाक़ात में राफेल की कोई चर्चा नहीं हुयी थी।
मनोहर पर्रिकर का पत्र भावुक कर देने वाला है। उनकी गम्भीर बीमारी और राफेल जैसे संवेदनशील मामले पर उद्धृत करना और जब यह बात ही नहीं उठी हो तो, उन्हें क्या किसी को भी असहज कर सकती है। वैसे भी अगर बात दो व्यक्तियों के बीच हो तो, उनमें से किसी भी एक व्यक्ति का बिना दूसरे की सहमति के उस बातचीत का रहस्य खोलना शिष्टाचार के विरुद्ध माना जा सकता है । पर जब बात खुल गयी और वह निजी नहीं देश, सरकार और जनता से जुड़ी है तो उस पर बात होगी ही।
राहुल गांधी ने अगर बिना चर्चा के ही मनोहर पर्रिकर को उद्धृत करते हुये यह कहा तो यह निश्चय ही निजी मुलाकातों की परम्परा और नीति के विरुद्ध है। पर दूसरे ही दिन, राहुल गांधी का भी एक पत्र आ गया जिसमें उन्होंने यह लिखा कि वे समझते हैं कि मनोहर पर्रिकर पर दबाव बहुत है ऐसे मामले में। अब जब दो ही लोग मिलने वाले हों, और दोनों में से एक कोई इस मुलाकात के एजेंडे को सार्वजनिक कर देता है और दूसरा यह आपत्ति उठाता है कि पहले ने वह कहा जिसकी चर्चा ही नहीं हुयी थी तो किसका कहना सच है, यह कैसे जाना जाय ? यह मान कर एक तयशुदा धारणा बनाना उचित नहीं है कि राहुल झुठ बोल रहे हैं या पर्रिकर झूठ नहीं बोल रहे हैं। मुलाक़ात तो हुयी है यह सच है पर क्या बात हुयी, दुविधा इस पर है।
राफेल मामले में दोनों ही रक्षामंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और वर्तमान रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर कोई आरोप और आक्षेप नहीं है। भले ही मन्त्री रहे और होने के कारण हस्तिनापुर से जुड़ाववश वे सरकार का बचाव करें। वे बचाव करेंगे भी। पर सबसे अधिक सन्देह अगर किसी पर है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद मोदी पर है। अगर घटनाक्रम को संक्षेप में देखें तो प्रधानमंत्री के ही इर्दगिर्द सारी कहानी घूमती है। सच और झूठ क्या है जब तक सभी सन्देहों की जांच और उनपर उठते सवालों का शमन नहीं हो जाता है तब तक यह संदेह बना रहेगा।
25 मार्च 2015 तक जब डसाल्ट कम्पनी के सीईओ बैंगलोर में एचएएल में एक समारोह में यह कहते हैं कि एचएएल के साथ उनका सौदा पूरा हो गया है और अब बस हस्ताक्षर होने शेष हैं। यह अनुबंध 126 राफेल लड़ाकू विमानों का था। अचानक 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद मोदी का पेरिस दौरा होता है और उसी दौरे में 126 विमानों का सौदा रद्द हो जाता है और 36 तैयार लड़ाकू विमानों के सौदे पर सहमति होती है। 126 के पुराने अनुबंध में 18 बने बनाये और शेष एचएएल में तकनीक हस्तांतरित करके जहाज बनाने की बात थी। कीमत लगभग 600 करोड़ थी प्रति विमान की। अब यह सौदा 36 बने बनाये विमान, प्रति विमान 1600 करोड़ रुपये के, बिना किसी तकनीकी हस्तांतरण के, और ओफ़्सेट कंपनियों में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट बनाने की बात तय हुई। ज़ाहिर है, विमानों की संख्या कम होने, कीमत अचानक 1600 करोड़ हो जाने, सॉवरेन गारंटी का क्लॉज़ खत्म कर दिए जाने और एचएएल के बजाय अनिल अंबानी की केवल पन्द्रह डिन पहले गठित अनुभवहीन कम्पनी को ठेका दिए जाने पर सवाल तो उठेंगे ही। वही सवाल अब भी बार बार उठ रहे हैं।
गोवा में मुलाक़ात के बाद मनोहर पर्रिकर ने राफेल मामले में कोई चर्चा न होने की बात कही है। यह अगर मान भी लिया जाय सच है तो यह नाम आया कैसे ? संसद में राफेल पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने एक ऑडियो टेप का उल्लेख किया था जिसमें एक गोवा सरकार के एक मंत्रीे यह कह रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने बताया है कि उन्हें गोवा के मुख्यमंत्री के पद से नहीं हटाया जा सकता है,क्योंकि उनके पास राफेल सौदे की फाइल है जो उनके शयन कक्ष में सुरक्षित है। यह ऑडियो टेप अधिकृत है या नहीं यह तो राहुल गांधी ने नहीं बताया हालांकि इसी अधिकृत होने या न होने के संशय पर लोकसभा स्पीकर ने इस टेप को सदन में प्रस्तुत नहीं करने दिया। हैरानी की बात है कि आज तक उस टेप की फोरेंसिक जांच नहीं हुयी और न ही मंत्री का खंडन ही आया। पर्रीकर साहब को खुद सामने आकर इस प्रकार के टेप की जांच की मांग करनी चाहिये थी जो उन्होंने नहीं की। क्योंकि उनके नाम पर यह झूठ फैल रहा है, अगर यह झूठ है तो।
गोवा के सीएम मनोहर पर्रिकर की चिट्ठी के बाद अब राहुल गांधी ने भी उन्हें चिट्ठी लिखी है. पर्रिकर के नाम लिखी चिट्ठी में कांग्रेस अध्यक्ष ने सफाई दी है। राहुल गांधी ने लिखा कि
उन्होंने कुछ भी अपने मन से नहीं कहा. पर्रिकर साहब के साथ मुलाकात के दौरान हुई बातों का जिक्र भी नहीं किया, बल्कि सिर्फ वही कहा जो पब्लिक डोमेन में है। राहुल गांधी ने कहा,
"पर्रिकर जी, मैं समझता हूं. आप पर भारी दबाव है.'
इसी पत्र में वे लिखते हैं,
" कल के मुलाकात के बाद आपने मेरे नाम जो चिट्ठी लिखी है, उसके बारे में जानकर मैं आहत हूं. हैरानी की बात ये है कि आपकी चिट्ठी मुझ तक पहुंचने से पहले मीडिया में कैसे लीक हो गई ?
आपसे मेरी मुलाकात पूरी तरह से व्यक्तिगत और सहानुभूतिपूर्ण थी. मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि जब आप अमेरिका में इलाज करा रहे थे, उस समय भी मैंने आपकी सेहत के बारे में पूछा था. एक लोकतांत्रिक प्रतिनिधि होने और लोगों द्वारा उनकी सेवा के लिए चुने जाने के चलते मैं राफेल डील में हुए भ्रष्टाचार के कारण पीएम पर हमले करने का अधिकार रखता हूं । "
पत्र का यह अंश भी पढ़ें,
हालांकि, ये फैक्ट है कि अप्रैल 2015 में जब आप गोवा में एक मछली बाजार का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय पीएम मोदी फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति हॉलैंड के साथ फ्रांस में राफेल सौदा कर रहे थे. इस डील के बाद आपने कहा था कि इसके बारे में आपको कोई जानकारी नहीं है. यह भी फैक्ट है कि आप ही के मंत्री का कैबिनेट मीटिंग के दौरान का एक ऑडियो रिकॉर्डिंग आया है. इस ऑडियो में आप दावा कर रहे हैं कि आपके बेडरूम में राफेल से जुड़ी फाइल है । "
उन्होंने कुछ भी अपने मन से नहीं कहा. पर्रिकर साहब के साथ मुलाकात के दौरान हुई बातों का जिक्र भी नहीं किया, बल्कि सिर्फ वही कहा जो पब्लिक डोमेन में है। राहुल गांधी ने कहा,
"पर्रिकर जी, मैं समझता हूं. आप पर भारी दबाव है.'
इसी पत्र में वे लिखते हैं,
" कल के मुलाकात के बाद आपने मेरे नाम जो चिट्ठी लिखी है, उसके बारे में जानकर मैं आहत हूं. हैरानी की बात ये है कि आपकी चिट्ठी मुझ तक पहुंचने से पहले मीडिया में कैसे लीक हो गई ?
आपसे मेरी मुलाकात पूरी तरह से व्यक्तिगत और सहानुभूतिपूर्ण थी. मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि जब आप अमेरिका में इलाज करा रहे थे, उस समय भी मैंने आपकी सेहत के बारे में पूछा था. एक लोकतांत्रिक प्रतिनिधि होने और लोगों द्वारा उनकी सेवा के लिए चुने जाने के चलते मैं राफेल डील में हुए भ्रष्टाचार के कारण पीएम पर हमले करने का अधिकार रखता हूं । "
पत्र का यह अंश भी पढ़ें,
हालांकि, ये फैक्ट है कि अप्रैल 2015 में जब आप गोवा में एक मछली बाजार का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय पीएम मोदी फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति हॉलैंड के साथ फ्रांस में राफेल सौदा कर रहे थे. इस डील के बाद आपने कहा था कि इसके बारे में आपको कोई जानकारी नहीं है. यह भी फैक्ट है कि आप ही के मंत्री का कैबिनेट मीटिंग के दौरान का एक ऑडियो रिकॉर्डिंग आया है. इस ऑडियो में आप दावा कर रहे हैं कि आपके बेडरूम में राफेल से जुड़ी फाइल है । "
उपरोक्त पत्र और मुलाकात में जो सबसे महत्वपूर्ण विंदु है वह है ऑडियो टेप। उस पर न तो मनोहर पर्रिकर कुछ बोल रहे हैं, न गोवा के मंत्री, और न ही सरकार कोई जांच करा रही है। अगर वह टेप झूठा और डॉक्टर्ड है तो राहुल गांधी से पूछा जाना चाहिये कि उन्होंने यह गलत बयानी क्यों की ? और अगर सच है तो फिर यह जिम्मेदारी मनोहर पर्रिकर और गोवा के मंत्री की है कि वे सच को सामने लाएं। मैं एक ऐसी सेवा में रहा हूँ जहाँ हर बात, व्यक्ति, सूचना, परिस्थिति, बयान और दस्तावेज पर स्वाभाविक रूप से सन्देह उठाया जाता रहा है। जब तक कि उसकी पुष्टि किसी और श्रोत से न हो जाय तब तक विश्वास का कोई कारण नहीं है।
अक्सर यह कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में क्लीन चिट दे दी है। सच तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की कोई जांच ही नहीं कराई और न जांच की। सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में जो फैसला था, सरकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में बिना किसी अधिकारी के हस्ताक्षर के प्रस्तुत किये गए दस्तावेजों पर आधारित है। जबकि सरकार ने झूठा हलफनामा दिया है। सरकार ने हलफनामा देकर कहा कि सीएजी महालेखाकार ने कीमतों की ऑडिट कर ली है और रिपोर्ट नियमानुसार लोकलेखा समिति पीएसी को भेज दी है। पर जब सीएजी और पीएसी के अध्यक्ष ने इस तथ्य का खंडन किया तो सरकार ने इसे टाइपो त्रुटि बतायी और संशोधित हलफनामा दिया। मिथ्या तथ्यों पर आधारित निर्णय चाहे वह कितनी भी बड़ी अदालत का हो, अविश्वसनीय होगा ही। अगर वह टाइप की गलती थी तो हलफनामा दायर करने वाले, उसे जांचने वाले, उस पर हस्ताक्षर करने वाले और उसे टाइप करने वाले अधिकारी और कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नही की गयी ? बिना हस्ताक्षर के हलफनामे का क्या औचित्य है ?
इसी मामले में पूर्व फ्रेंच राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का यह बयान कि अनिल अंबानी का नाम भारत सरकार ने सुझाया था। इस बात पर भी सरकार की तरफ से कोई खंडन नहीं आया और न ही औलांद साहब से ही यह प्रतिवाद किया गया कि वे अपनी बात का खंडन करें। लेकिन इसकी भी कोई जांच नहीं की गयी। कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी महत्वपूर्ण हो, वह सन्देह से परे और कानून के ऊपर नहीं होता है। यहां भी केवल यह मान कर कि प्रधानमंत्री सन्देह के परे हैं और वे जो कुछ भी कह सुन और कर रहे हैं पर सवाल उठाना गलत है तो यह न केवल एक गलत परम्परा की शुरुआत होगी बल्कि इससे निरंकुश और अधिनायकवादी सत्ता की जड़ें और मज़बूत होंगी। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी सवालों की जांच कराए और सच को सामने लाये। यह सरकार का संवैधानिक दायित्व और कर्तव्य है यह कोई याचना नहीं है।
© विजय शंकर सिंह
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